छोटे-छोटे हाथ
छोटे-छोटे पांव
छोटी-छोटी ऑखे
मुख पर निर्मल हंसी
न जात न पात
न धर्म न पंथ
जिससे प्यार मिला उसी को अपना मान लिया
न दिखावा न बनावट
जब मन आया रो लिया
जब मन आया हंस लिया
लडे - झगड़े
थोडी देर में फिर एक
दौड़ते दौड़ते गिर पडे
फिर तुरंत उठ खडे हुए
भोलापन
मासूमियत
निश्छल
यही तो है बचपन
भेदभाव से परे
न किसी से डर
न किसी बात की शर्म
जो है जैसा है
वह हैं
जो मन में आया वह बोल दो
ईष्या- द्वेष से कोसों दूर
हर जगह एक समान
कुत्ता, बिल्ली , चिडियाँ, पोपट सबसे प्यार
दोस्ती में वफादार
अमीरी-गरीबी का अंतर इन्हें नहीं पता
भोलाभाला और प्यारा होता है बचपन
तभी तो बच्चे कहलाते है
ईश्वर का स्वरूप
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