Saturday, 18 November 2023

बच्चे मन के सच्चे

छोटे-छोटे हाथ 
छोटे-छोटे पांव 
छोटी-छोटी ऑखे
मुख पर निर्मल हंसी 
न जात न पात
न धर्म न पंथ
जिससे प्यार मिला उसी को अपना मान लिया 
न दिखावा न बनावट
जब मन आया रो लिया
जब मन आया हंस लिया
लडे - झगड़े 
थोडी देर में फिर एक
दौड़ते दौड़ते गिर पडे
फिर तुरंत उठ खडे हुए 
भोलापन
मासूमियत 
निश्छल 
यही तो है बचपन
भेदभाव से परे
न किसी से डर
न किसी बात की शर्म 
जो है जैसा है
वह हैं 
जो मन में आया वह बोल दो
ईष्या- द्वेष से कोसों दूर 
हर जगह एक समान 
कुत्ता,  बिल्ली , चिडियाँ,  पोपट सबसे प्यार 
दोस्ती में वफादार
अमीरी-गरीबी का अंतर इन्हें नहीं पता 
भोलाभाला और प्यारा होता है बचपन
तभी तो बच्चे कहलाते है
ईश्वर का स्वरूप

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