सब उल्टी-सीधी है
समझ न आता
कब कौन सी चाल चलती है
जो लगते अपने वो भी शायद अपने नहीं
बेगाने तो बेगाने ही है
जिससे कुछ आशा नहीं वह कभी सही होता है
जो सोचा नहीं वह हो जाता है
जो सोचा वह होता नहीं
कब कौन सी करवट ले
यहाँ निश्चित कुछ नहीं
होने कुछ जा रहा था
होता कुछ है
क्या अनुमान लगाए
क्या अनुभव से सीखे
नित नये रंग बदलती है
आज कुछ तो कल कुछ और सीखा जाती है ।
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