बनाते समय कभी हाथ कभी कोहनी जल जाती है
वह सब्जी काटती है
सब्जी काटते समय कभी उंगली तो कभी हथेली कट जाती है
वह जलने के चटके
कटने की पीड़ा को
नजरअंदाज कर अपना काम करती है
मसाले की तीव्र महक
मिर्ची की झांक
सब सह लेती है
जब परिवार भोजन करता है
वह परोसती है उनको अच्छा
बचा - खुचा , बासा , जला
वह स्वयं खाती है
तत्पश्चात बर्तन की बारी
साफ सफाई किचन की
हाथ रूक्ष्ण हो जाते हैं
सब निपटा कर बैठती है
दोनों हाथों की तरफ देखती है
तेल या क्रीम मलती है
चेहरे पर एक सुकून
सबका पेट भर गया
यह सोच निश्चिंत
अपने बारे में न सोच
सबके बारे में सोचने वाली
यह हमारी गृहिणी
हमारी अन्नपूर्णा
इनके प्रति कृतज्ञता तो बनती है
बस एक छोटी सी प्रशंसा
उसको Thank you कह दो ।
No comments:
Post a Comment