जितना हो छलांग लगाओ
सफर को आसान बनाओ
गढ्ढे और खाई को लांघ डालो
कीचड़ से मत डरो उससे पार निकल जाओ
धूल उड कर आएंगी
उसको माथे का गुलाल बना दो
मिट्टी का शरीर
मिट्टी से क्या घबराना
कर्म करना है तो डरना क्यों
रूकना क्यों
मन में दृढ़ निश्चय हो
मंजिल मिल ही जाएंगी
मंजिलें भी तो उसी की
जिसको जीवन के समुंदर में तैरना आता हो
किनारा उससे कैसे दूर रहेंगा
जिसने कर्म की पतवार थाम ली हो ।
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