जो मुझे कंपकंपा दे
यह तो हर साल आती- जाती है
मौसम बदलते ही भाग जाती है
इससे क्या डरना
यह तो रजाई - गद्दे में ही दुबक जाती है
बदरी कितने दिन की
सूरज को तो आना है
प्रकाश को तो इस बदरी की छाती फाड निकलना है
ठंड को लगता है
लोग दुबक कर बैठ गए
मुझसे तो इस कदर डर गए
नहीं हम तो अलाव ताप रहे हैं
घुंघुनी और मूंगफली का मजा ले रहे हैं
गर्म गर्म चाय और सूप पी रहे हैं
बाहर भी मफलर - कोट - स्वेटर में घूम रहे हैं
हम तो चाहते हैं
तुम ऐसे ही बने रहो
तुम हो कि भाग जाती हो
हमको तपने को छोड जाती हो
हम तो वह जीव है जो कभी बदलते नहीं
मौसम का क्या
आज कुछ तो कल कुछ
हमको भागना नहीं डटना आता है
हालात से लडना आता है
सर्दी- गर्मी- बरसात से घबरा जाएं
ऐसे नहीं हमारे मिजाज
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