सब कुछ
सबसे छुटकारा पाना चाहती हूँ
पाना भी चाहती हूँ
भूलना भी चाहती हूँ
चाहती भी हूँ
नहीं भी चाहती हूँ
यही तो बडा कन्फ्यूजन है
कभी-कभी लगता है
अब बस
अब बहुत कर लिया
छोड दो
सब अपने आप कर लेंगे
पर छोड़ा भी नहीं जाता
ये तो मेरी जिंदगी से जुड़े हैं
उनके बिना तो जिंदगी, जिंदगी नहीं
जब तक जीवन है
तब तक तो इन सब से मुक्त होना संभव नहीं
ये तो जान है मेरी
प्राण है मेरी
मेरी आत्मा में ये ही समाएं
ईश्वर से भी दुआ मांगते हैं तो इनके लिए
अपनी परेशानी को झेल लेते हैं
इनकी नहीं
कहाँ जाएं
इनके बिना तो स्वर्ग में भी शांति नहीं मिलेंगी
अपनों के बिना रहना
यह तो सोचा नहीं
उनके लिए कुछ करना
तब खुशी दुगुनी
माँ जब अपने मुख का कौर
बाप अपनी पीठ पर बोझ लादते
वह भूख और बोझ महसूस ही नहीं होता
नहीं भूलना बस उनके बारे में सोचना
इनके बिना नहीं रहना ।
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