मैंने नव महीने गर्भ में रखा
मैंने प्रसव पीड़ा भुगती
मैंने बडे करने में इतना त्याग किया
अपनी इच्छाओं का गला घोंटा
यह अक्सर सुनते हैं
उसके बदले में क्या मिला ??
बहुत कुछ मिला है
सारी खुशी एक तरफ बच्चे की हंसी एक तरफ
जिसके गुस्से में भी आपको हंसी आती है
उसके एक झलक देखने को ऑखें तरसती
ऊपर से गुस्सा मन में प्यार
बीमार हो तो भी उसे देख शरीर में स्फूर्ति
उसके नाज नखरे उठाने में भी मजा
ऐसा विरोधाभास
वह कहानी याद आती है
जब बुढ़िया का स्वार्थी बेटा उसे घर से निकाल देता है
जादू नगरी का राजा कहता है
तुमको जवान बना देंगे
स्वर्ग जैसा सुख देंगे
बस अपने बेटे को भूल जाओ
उत्तर मिलता है
मैं अपने बेटे की माँ कहलाना ही पसंद करूँगी
नहीं चाहिए मुझे कुछ
ऑसू को बहने दो
पतझड़ को आने दो
बादल को टूटने दो
बीज को फूटने दो
यौवन को ढलने दो
स्वर्ग की अप्सरा क्या जाने
माँ होने का सुख
ईश्वर का सबसे बडा वरदान
तब इससे बडा सुख भी तो कुछ नहीं
अपेक्षा क्यों
कर्जदार नहीं हैं वे आपके
आपका फर्ज है उनके प्रति
उनका जीवन आपकी देन
तब जिम्मेवारी भी ?
यही तो जीवन का मर्म है
यह समझना जरूरी है ।
महदेवी जी की पंक्तियां
रहने दो हे देव
मेरा मिटने का अधिकार
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