वल्कलधारी सन्यासी
साथ में पत्नी और छोटा भाई
चल पडे बीहड़ राह पर
माँ को पिता का दिया हुआ
वचन पूर्ण करने को
तज दिया अयोध्या का राज
नहीं कोई मलाल
मुख पर मुस्कान
राह में साथी मिलते गए
जुड़ते गए
राम सबको गले लगाते रहें
ताडका को मारा मारीच को मारा
खर- दूषण का वध किया
त्रृषि- मुनी को संरक्षण दिया
राह में जो जन मिला
सबने उनको अपना समझा
भावी राजा भूमि पर पैदल चल रहा है
यह दृश्य भी अदभुत था
केवटराज निषाद मिले
उतराई भी मांगी संसार के खेवैया से
बदले में पूरे खानदान का उद्धार मांग लिया
अहिल्या का उद्धार हुआ
शबरी की इच्छा पूरी हुई
निर्वासित सुग्रीव मिले
दोस्ती निभाई बालि को मार
उपेक्षित भक्त विभिषण मिले
हनुमान जैसा सेवक मिला
पिता की मृत्यु हुई
पत्नी का हरण हुआ
एक विशाल साम्राज्य के मालिक रावण से युद्ध करना
न कोई साज - सामान न
न अस्र - शस्त्र न रथ
भालू और बानरो की फौज के साथ
लंकाधिपति रावण को पराजित करना
यह दृढ़ संकल्प के कारण संभव
ईश्वरीय रूप कभी नहीं दिखाया
मानव का हर रूप दिखा
सब खग - पेड़- पौधे से पूछते हैं
तुम देखी मेरी सीता मृगनयनी
लक्ष्मण को बाण लगने पर रूदन
समुंदर से प्रार्थना करना
रावण का सर फिर से जुड़ते देख विभिषण से सलाह
कहीं भी मर्यादा पुरुषोत्तम ने अपनी मर्यादा भंग नहीं की
वे मानव बने रहें
तभी जन मानस के करीब आए
भरत राजा बन भी जाते तब भी जनमानस उनको राजा नहीं मानता
तभी तो वनवास मांग लिया
वह मान भी लेंगे
यह बात महारानी कैकयी भलीभांति जानती थी
वनवास देकर भी वह कहाँ दूर कर पाई राम को जनता से
उत्तर से चले पश्चिम पहुंचे वहाँ से दक्षिण पहुंचे
एक छत्र भारत अखंड भारत के नायक बने
आज भारत का ऐसा कोई कोना नहीं
जो राम से परिचित न हो
विश्व भी राम को जानता है
राम ही में तो हिन्दुस्तान समाया है
हर दिल में राम समाएं
सीखना है तो प्रभु राम से सीखो
रामायण जहाँ होगी वहाँ स्वर्ग तो होगा ही ।
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