जनकदुलारी को कर्तव्य निभाना था
मायका और ससुराल का मान रखना था
क्या बीती होगी
उस नवयौवना पर
भावी महारानी जिसको बनना था उसे वन वन घूमना पडा
जमीन से जन्मी जमीन में समाई
कौन दोषी था
भाग्य की लेखनी क्या यही थी
पग पग पर मुसीबत का घेरा
चली नंगे पैर और थकने पर पूछा पति से
और कितनी दूर
न कोई शिकवा और शिकायत
कैकयी को तो कभी कोसा ही नहीं
पर्णकुटी में रही
रसोई बनाई
हर काम किया
हाँ वहाँ भी गृहस्थ धर्म निभाया
देवर की लक्ष्मण रेखा पार की क्योंकि द्वार पर संन्यासी खडा था उसे कैसे भिक्षा दिए खाली हाथ लौटाती
सूपर्णखा की नाक - कान देवर ने काटा था परिणाम भुगता था सीता ने
हाँ एक गलती हो गई
स्वर्ण मृग को देख स्त्री स्वभाव के कारण ललचा गई
सीधे वहाँ से स्वर्ण की नगरी पहुँच गई
अपनी गलती तो समझ ही गई होगी
ऐसे चुकाना पडेगा यह नहीं सोचा होगा
रावण की अशोक वाटिका में रही सुरक्षित
महाज्ञानी- महाबलशाली को भी उन्हें स्पर्श करने की हिम्मत नहीं हुई
एक अपहरण की हुई दूसरे की पत्नी किस तरह से उसी के राज में रही होगी
मन कितना मजबूत होगा और कितना विश्वास अपने वनवासी पति पर
अग्नि परीक्षा देनी पडी अपने सतीत्व को सिद्ध करने
अतिसुंदरी मंदोदरी का पति और शिव भक्त रावण जो स्वयं
सबका ज्ञाता था
शत्रु पक्ष से लक्ष्मण शिक्षा लेने के लिए गए
राम को जिसने अपने सामने खडा कर प्राण त्यागा
जिसको पता था कि यह मेरे आराध्य के आराध्य है इतना नादान तो था नहीं
साक्षात जगतमाता जगदम्बा है सीता
लेकिन क्या विधाता ने सीता को ही चुना उसके उद्धार के लिए
अयोध्या आई
गर्भवती हुई
लांछन लगा
जबकि दोष उनका नहीं था
राम ने निकाला ।राजा को ऊपर रखा पति से
अश्वमेघ के समय मूर्ति बना कर यज्ञ किया लेकिन सीता तो मूर्ति नहीं थी
बाल्मीकि के आश्रम में बच्चों का जन्म और पालन - पोषण
वनदेवी बनकर रही
लेकिन यहां भी चैन से न रह पाई
वहाँ भी अयोध्या के राजा पहुंच ही गए
अब कहाँ जाती
बस माता की गोद बाकी थी
वह तो जरूर अपनाएगी
माँ तो माँ होती है
सीता ने उन्हीं का आश्रय लिया
धरती की बेटी धरती में समा गई।
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