तुझे ऐसा लगता है कि यह किया
लोगों को लगता है कुछ नहीं किया
उन्हीं लोगों को जिनके लिए किया
त्याग और बलिदान किया
इच्छाओं का दमन किया
दिन रात एक किया
न चैन से खाया न सोया
न मौज - मजा किया
बस कर्तव्यों के बोझ तले दबे रहे
माता-पिता, भाई - बहन , पत्नी - बच्चे
सबका उलाहना सुनता रहा फिर भी करता रहा
आज स्वयं पर आ पडी है
मुझमें दस कमियां निकाली जा रही है
आज लग रहा है
मैं क्या हूँ
मेरा अस्तित्व क्या है
कहने को तो मर्द हूँ
यह तो मेरा कर्तव्य बनता है सब करते हैं
मैं अकेला और अनोखा तो नहीं
मर्द और पुरुष भी इंसान है
भावनाएं हैं
हर मर्द की लगभग यही दास्ताँ
जिंदगी भर चलता रहा तब भी यही सुना
चले ही ना दौडे कहाँ
कुछ किया ही नहीं।
No comments:
Post a Comment