कुछ अपने बारे में
कुछ गुफ्तगु की
बहुत समय बाद खुद से खुद की मुलाकात हुई
ये तन्हाइयां इतनी भी बुरी नहीं
जैसी लगती है
स्वयं से रूबरू कराती है
प्रकृति से साक्षात्कार करवाती है
पहाड़ों और समुंदर से परिचय करवाती है
कंदराओं में बैठे बैठे ही देवों के पास ले जाती है
भक्ति का मर्म समझाती है
कहने को यह बस तन्हाई है
पूरे जग को अपने में समेटे
बस ढूढना है खोजना है
सब अंतर्मन में ही समाया है
किसी और संग की क्या जरूरत
तन्हाई ही हमारी सबसे अच्छी संगी है
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