Saturday, 6 April 2024

तन्हाई

तन्हाई में बैठे तो सोचा
कुछ अपने बारे में 
कुछ गुफ्तगु की 
बहुत समय बाद खुद से खुद की मुलाकात हुई 
ये तन्हाइयां इतनी भी बुरी नहीं 
जैसी लगती है
स्वयं से रूबरू कराती है
प्रकृति से साक्षात्कार करवाती है
पहाड़ों और समुंदर से परिचय करवाती है
कंदराओं में बैठे बैठे ही देवों के पास ले जाती है
भक्ति का मर्म समझाती है
कहने को यह बस तन्हाई है
पूरे जग को अपने में समेटे 
बस ढूढना है खोजना है
सब अंतर्मन में ही समाया है
किसी और संग की क्या जरूरत 
तन्हाई ही हमारी सबसे अच्छी संगी है 

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