कुछ खत्म नहीं होता
जिंदा रहते हैं किसी न किसी रूप में
कोई यादों में कोई किताबों में
कोई खंडहर में कोई इमारत में
कोई किसी के चेहरे में कोई किसी के हाव भाव में
कोई बातों में कोई कहकहों में
कोई किस्से कहानियों में कोई विरासत में
खत्म कैसे होगा
पानी भी अपना निशान छोड़ जाता है
पता नहीं पत्थर को कौन कौन सा रूप दे जाता है
हम ढूंढते रहते निशानियां मंदिरों में
ईश्वर भी तो रहता गीता - रामायण में
सब कुछ यही से उपजा यही समाया
मिट्टी गवाह है
उसका हर कण-कण गवाह है
मिट्टी को मिट्टी में मिलना है
यह सर्वविदित है
कर्म तो करना है
जन्म- मृत्यु का चक्र चलता रहेगा
ना जाने कितनी योनियों में हम आते रहेंगे
इतिहास भी रहेगा भूगोल भी रहेगा
विज्ञान भी रहेगा
यह जब तक तब तक हम भी जिंदा रहेंगे
किसी न किसी रूप में धरती का हिस्सा रहेंगे ।
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