जिंदगी ने ऐसा धकियाया
सब रह गए धरे के धरे
जब रूबरू हुए उससे
समझ आया
सब वैसा नहीं होता जैसा हमने चाहा
ऐसा नहीं कि ख्वाब देखना बंद कर दिया
नहीं जनाब
इतनी जल्दी कहाँ हार मानेंगे
कभी अपने लिए देखा था
आज अपनों के लिए देख रहे हैं
न रूके हैं न थमे हैं
अभी भी दो दो हाथ करने में लगे हैं
चलते रहो चलते रहो
हमारे न सही अपनों के ही सही
उनमें ही हम सुकून पा लेंगे
एक ही जिंदगी थोड़ी ही है हमारी
ना जाने कितनी साथ लिए चलते हैं
ख्वाब तो अभी भी हैं और रहेंगे भी
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