वहीं तो होता है प्रेम का वास
जबरदस्ती तो इसमें होती नहीं
ना ही किया जा सकता
दिखावा हो सकता है
प्रेम में समर्पण होता है
उसमें अच्छाई- बुराई नहीं देखी जाती
माॅ के लिए उसके बच्चे से ज्यादा कुछ नहीं
यहां तो प्रेम की पराकाष्ठा ही नहीं होती
जितना भी हो कम लगता है
यह विश्वास अवश्य हो
हर हाल में यह मेरा है
उसकी सुरक्षा उसकी चिंता यह मेरा दायित्व
प्रेम में मजबूर नहीं मजबूत होता है
मजबूरी तो प्रेम हैं ही नहीं
अपना सर्वस्व लुटाए
फिर भी कहीं शिकन ना आए
वह होता है प्रेम
इसे सब नहीं समझ सकते
दिल होना चाहिए
वह भी खूबसूरत
प्रेम में पाने की अपेक्षा नहीं
वह बनिए की दुकान नहीं है
पैसा दिया सामान लिया
बिना लिए देना
बस एक खुशी के लिए
वह भी अपनी
उसे कहते हैं प्रेम
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