Thursday, 19 December 2024

हरि हरि हरि

मैं चलता रहा
कभी-कभार कंकड़ भी धंसे 
कांटें भी चुभे
गिर भी पड़ा 
ऑखों में ऑसू भी आए 
चलना नहीं छोड़ा 
हार नहीं मानी 
मायूस नहीं हुआ 
विश्वास जो था 
स्वयं पर 
ऊपर वाले पर
कुछ न कुछ तो करेगा ही
देर हो सकती है 
ऊपर वाला सुनता रहा
अपनी कृपा दृष्टि बरसात रहा 
कभी - कभी कोफ्त भी हुई 
गुस्सा भी आया
उसको कोसा भी 
एक बार नहीं 
अनगिनत बार
आज हंसना आता है 
खैर देर से ही सही
बात समझ तो आई 
देने वाले ने बहुत कुछ दिया
समय- समय पर संभाला 
वैसे मुसीबत तो मिली 
राह भी आसान किया 
अब तो कुछ इच्छा नहीं अपने लिए 
पता है चिंता कर क्या होगा 
उसका ही चिंतन कर लूं 
करेंगा न वह सब कुछ 
कब   तब
जब उस पर हो विश्वास 
छोड़ दो 
भज लो 
हरि हरि हरि 

No comments:

Post a Comment