नींद खुली और ली अंगड़ाई
जरा नजर बाहर को डाली
पसरी थी नीरव शांति
सब थे प्रतीक्षारत
कब हो सूर्योदय
कब हम लगे काम पर
धीरे - धीरे आने लगे
प्रकाश फैलाने लगे
होने लगी हलचल
हवा मदमस्त हो चलने लगी
पत्तों सरसराने लगे
चिड़ियों की चीं चीं
कौओ की कांव-कांव
कबूतर की गुटरगू
गाय का रंभाना
गाड़ी की पौ पौ
रेल की छुकछुक
दूध और अखबार वालों की भागम-भाग
मानो कह रहे हो
छोड़ो आलस
हटाओ रजाई और चादर
नींद को कहो बाय - बाय
कमर कसकर कर लो
आज दिन भर की तैयारी
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