छांव में बैठने का
कुनकुनी धूप का मजा लेने का
बारिश की बूंदों को चाय की चुस्की से निहारने का
मन ही मन खुले आसमां के तले गुनगुनाने का
समंदर किनारे बैठ लहरों की आवाज सुनने का
यहाँ- वहाँ मटरगश्ती करने का
लेकिन यह सब हो न सका
हमारे हिस्से में कड़कड़ाती धूप आई
छांव तले सुस्ताना नहीं चलना लिखा था
हम चलते गए
कभी धीरे चले
कभी दौड़े
कभी गिरें और फिर अपने आप उठ भी गए
किसी ने कहा हमसे
आप बहुत मजबूत हैं
कैसे कहें उनको
हम मजबूर हैं
हम तो अपनी इच्छानुसार चल भी न सकें
जो करना चाहा वह कर भी न सकें
आज भी वही मजबूरी है
जो दिखता है वह होता नहीं
होने और दिखने में बड़ा फर्क होता है
हम जो दिखते हैं वैसे तो असल में हम हैं ही नहीं
जो लोग हमारे बारे में बोलते हैं
वह भी सही नहीं
ऐसा नहीं कि सबकी हमारे प्रति यही धारणा है
कुछ ऐसे भी हैं
जो मुझे सच में जानते हैं
बखूबी पहचानते हैं
हम क्या हैं
हमें भी पता है
ऊपर वाले को भी पता है
तभी तो निराश नहीं करता
मुश्किल को आसान बना देता है
देर से ही सही देता तो है
देने वाले ने बहुत दिया
जिसके काबिल हम थे भी नहीं
लोगों का क्या
उसका बस हाथ रहें
उसका बस साथ रहें
जो जाने वह जाने
जमाना नहीं
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