वसंत आता ही नहीं
पतझड़ जाता ही नहीं
कभी - कभी किनारे पर पहुँचने की कोशिश नाकाम हो जाती
लहरों से जूझते हुए भंवर में फंस जाते हैं
कभी- कभी मंजिल की तलाश में दूर निकल जाते हैं
फिर भी नहीं मिलती
बस चलते जाते हैं
कर्म करते रहते हैं
प्रतीक्षारत रहते हैं
इसी को तो नियति कहते हैं
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