Saturday, 22 February 2025

नियति

कभी- कभी वसंत की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं
वसंत आता ही नहीं 
पतझड़ जाता ही नहीं
कभी - कभी किनारे पर पहुँचने की कोशिश नाकाम हो जाती 
लहरों से जूझते हुए भंवर में फंस जाते हैं
कभी- कभी मंजिल की तलाश में दूर निकल जाते हैं
फिर भी नहीं मिलती 
बस चलते जाते हैं
कर्म करते रहते हैं 
प्रतीक्षारत रहते हैं 
इसी को तो नियति कहते हैं 

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