कुछ सपने सजाए थे
उनको साकार करना था
उसी चक्कर में चक्कर पर चक्कर लगते रहे
हम उसे अपने इर्द-गिर्द लपेटने में लगे रहे
खुश भी होते रहे
कुछ टूटे भी कुछ पूरे भी
अब कुछ नहीं दिखता
देखना जो छोड़ दिया है
अब लगा ऐसा
इसमें तो कुछ भी नहीं रखा है
जो होना है वह होना ही है
No comments:
Post a Comment