वैसे तो हर रोज देखती हूँ
कोई अनोखी बात नहीं
आज कुछ अलग निगाह से देखा
न जाने कब से खड़ा है
गर्मी की मार झेलता
ठंड की कहर सहता
बरसात में थपेड़ों का सामना करता
जलता रहा
ठिठुरता रहा
भीगता रहा
बिजली - तूफान को डटकर झेला
पतझर भी देखा
वसंत भी देखा
डिगा नहीं न हिला
देने में कोई कसर नहीं
जो पास था वह दिया
फूल , पत्तें , फल
छाह भी दी
हवा भी दी
गर्मी से निजात दी भले तपता रहा
बारीश में आसरा दिया भले भीगता रहा
अपने डालियों पर घरौंदा दिया
झूला भी झुलाया
पत्थर मारा उसे भी नहीं दुत्कारा
सबको प्रेम से गले लगाया
वह तो अपना काम करता रहा
कर्तव्य निभाता रहा
मेरे प्रति भी तो किसी का कर्तव्य
मैंने तो अपनी पारी पूरी की
अब तुम्हारी बारी
मैं भी वह पहले जैसा नहीं रहा
लगा ऐसे जैसे
जीवन दर्शन बता रहा हो
जीने के मायने समझा रहा हो
एक हल्की सी मुस्कान के साथ देखा उसे
धन्यवाद तो बनता है
कृतज्ञ है उसके
वह आदरणीय है उसका हर भाग का एहसान
इसका भी है एहसास
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