Thursday, 20 February 2025

विश्राम की बेला खत्म

अंधेरा भागा
सुबह हुई 
रोशनी ने डेरा डाला
धीरे - धीरे पैर पसारा
भोर की किरण मुस्कराई 
ओस की बूंदों पर झिलमिलाई 
चिड़ियां भी चहचहाई 
पत्ते भी सरसराए 
मुर्गे ने भी बाग लगाई
कौवा भी इस डाली से उस डाली डोला 
कबूतर की गुटरगूं से घर - आंगन गूंजा 
चारों ओर चहल-पहल 
कहीं गाड़ी का हार्न 
कहीं बस की पौं पौं
कहीं रेल की छुकछुक 
सूरज दादा ने जब घेरा 
सब उठकर भागे 
हर जगह हुई हलचल 
सब हुए गतिशील 
उठो , चलो 
काम पर लगो 
विश्राम की बेला खत्म 

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