Saturday, 26 July 2025

भगवान भी ताकते रह जाते

ठोकर लगी मेरे पैर में 
वेदना हुई उसे 
आहत हुआ मैं 
तड़पी वह
पेट भरा मेरा 
तृप्त हुई वह
मैं मुस्कराया 
हर्षित हुई वह
मैं सफलता की सीढ़ी चढ़ा 
गर्व से माथा ऊंचा हुआ उनका 
मैं कुर्सी पर बैठा 
वह जमीन पर बैठे ही निहारते 
मैं घर में बैठ खुशियां मनाता 
वे बाहर ढिंढोरा पीटते 
अपने लिए कुछ न मांग 
सब मेरे लिए मांगते 
अपनी भी उम्र मुझ पर न्योछावर करते 
बिना स्वार्थ के अपनी सामर्थ्य से ज्यादा
जो कर जाते 
वे कोई साधारण लोग नहीं 
उन्हें माता - पिता की संज्ञा दी जाती है 
ईश्वर नहीं है 
लेकिन भाग्य लिखने का अधिकार उन्हें जो मिलता 
तब तो वे वह लिखते कि 
भगवान भी ताकते रह जाते 

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