सूरज ने भी डाला डेरा
रोशनी आने लगी छन - छन कर
कोयल गीत गाने लगी मन भरकर
कौआ कहाँ पीछे रहता
वह कांव-कांव करता रहा
कान सोचने लगे
किसकी आवाज सुने
मीठी बोली या कर्कश स्वर
तब तक चीं चीं करती चिड़िया आई
दाना - पानी ले फुर्र से उड़ी
उसको अपने से ही फुर्सत नहीं
इस पचड़े में वह क्यों पड़े
अपने में ही रहना
न कोई बंधन न कोई टंटा
सबको बोलो टा टा
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