Tuesday, 29 July 2025

दुनिया का मेला

दुनिया का दस्तूर निराला 
कहीं धूप कहीं छाया
सबमें बसी है माया 
घूमती- घूमाती रहती यह काया
पेट का जंजाल है 
तभी तो सब परेशान हैं
भोर तड़के उठाती 
काम पर लगाती 
दिन - रात खटवाती 
कभी चैन से न बैठती - बैठाती 
आगे निकलने की होड़ मचाती 
चैन से न जीने देती 
सुकून और आराम तो न जाने कहाँ गायब करती 
बस भगाती और भगाती 
सब भाग रहे हैं 
दौड़ रहे हैं 
छलांग लगा रहे हैं 
गिर - पड़ रहे हैं 
यह अपने करतब दिखला रही है 
मकड़ी के जाल सा खुद के बनाए में खुद फंसा 
दुनिया का मेला 
मेले में हर कोई अकेला 

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