कहीं धूप कहीं छाया
सबमें बसी है माया
घूमती- घूमाती रहती यह काया
पेट का जंजाल है
तभी तो सब परेशान हैं
भोर तड़के उठाती
काम पर लगाती
दिन - रात खटवाती
कभी चैन से न बैठती - बैठाती
आगे निकलने की होड़ मचाती
चैन से न जीने देती
सुकून और आराम तो न जाने कहाँ गायब करती
बस भगाती और भगाती
सब भाग रहे हैं
दौड़ रहे हैं
छलांग लगा रहे हैं
गिर - पड़ रहे हैं
यह अपने करतब दिखला रही है
मकड़ी के जाल सा खुद के बनाए में खुद फंसा
दुनिया का मेला
मेले में हर कोई अकेला
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