लोगों की भीड़ देखी
शामिल हो लिया
अब तो भीड़ का हिस्सा बन चुका था
कभी आगे तो कभी पीछे तो कभी बीच में
धक्के भी लगते रहे
घायल भी हुआ कई बार
वजूद खत्म होने की कगार पर
सोच लिया निकलना है
बड़ी मशक्कत करनी पड़ी
किसी तरह ठेलठाल कर बाहर निकला
अब नहीं फिर उसमें घुसना है
अकेले ही सही
राह तो अपनी होगी
सोच तो अपनी होगी
बंधन तो न होगा
स्वतंत्रता तो होगी
अब अकेले ही चल पड़ा हूँ
विश्वास और आशा के साथ
नया कुछ करने की चाह
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