Thursday, 24 July 2025

नया कुछ करना है

मैं तो चल रहा था अकेले
लोगों की भीड़ देखी
शामिल हो लिया 
अब तो भीड़ का हिस्सा बन चुका था 
कभी आगे तो कभी पीछे तो कभी बीच में 
धक्के भी लगते रहे 
घायल भी हुआ कई बार 
वजूद खत्म होने की कगार पर
सोच लिया निकलना है 
बड़ी मशक्कत करनी पड़ी 
किसी तरह ठेलठाल कर बाहर निकला 
अब नहीं फिर उसमें घुसना है 
अकेले ही सही 
राह तो अपनी होगी 
सोच तो अपनी होगी 
बंधन तो न होगा 
स्वतंत्रता तो होगी 
अब अकेले ही चल पड़ा हूँ 
विश्वास और आशा के साथ 
नया कुछ करने की चाह 

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