कितना खोदोगे
मेरा हक छीनोगे
मैं चुपचाप देखती रहूंगी
यह कैसे समझ लिया
माना कि देना मेरा स्वभाव है
सदियों से दाता हूँ
तुम्हारा भी तो फर्ज है
छाया देने वाले को ही काट रहे हो
पानी देनेवाले को ही पाट रहे हो
प्राण देने वाले को ही प्रदूषित कर रहे हो
कितना स्वार्थी हो गए तुम
यह तो तुम्हें ले डूबेगा
किसको निहारोगे
किसके साथ लहराओगे
क्या खाओगे क्या पीओगे
कभी मेरी पूजा करने वाले
मुझे मान सम्मान देने वाले
अभी भी समय है
मैं तो माता हूँ
मेरा आंचल मत खाली करो
मुझे लहू-लुहान मत करो
मैं तो तुमको जी भर दुलराना चाहती हूँ
तुमको दुखी नहीं देखना चाहती
अगर खुशी चाहिए
अपनी सलामती चाहते हो
तो मुझे छेड़ों मत
यह सलाह भी है
चेतावनी भी है
न माना तो दंड भी निश्चित है
संभल जाओ
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