पेड़ पौधों से सीखो
हर मौसम में फल फलता है
पकने पर तोड़ा
कच्चा भी तोड़ा
कभी खाने के लिए
कभी भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए
कभी अचार तो मुरब्बा कभी
हर रोज फूल खिलते हैं
उसने क्या कभी हक जताया
उसने तोड़ने से मना किया
हर रोज पौधे का सुंदर फूल तोड़ा
कभी ईश्वर के अर्पण के लिए
कभी पितरों के तर्पण के लिए
कभी सौंदर्य बनाये रखने के लिए
कभी महकाने के लिए
उसकी लकड़ी भी तोड़ी
कभी चूल्हें के लिए
कभी हवन के लिए
कभी झूले के लिए
कभी चिता के लिए
वह देता गया
देता रहा
तब तक
जब तक जिंदा रहा
तुम मानव कुछ उससे सीखो
जन्मदाता हो विधाता नहीं
एहसान कुछ नहीं है अपेक्षा भी मत रखो
तुम किसी की वजह से इस दुनिया में
तुम्हारी वजह से कोई इस दुनिया में
एहसान मानो उसका
उसने तुम्हें चुना
आने के लिए
इस भ्रम में मत रहो
उनके आभारी रहो
तुम्हारें जीने का उद्देश्य बने
बच्चें जीवन में वो अमृत धारा है
जो पीढ़ियो में बहती रहती है
उनकी वजह से नाम जिंदा रहता है
खुशी- खुशी अपना धर्म निभाया जैसे
अब क्यों मन में दुराव
क्यों अपेक्षा
वे क्या देंगे तुम्हें
देने के लिए तो तुम हो वे नहीं
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