Wednesday, 24 September 2025

अपेक्षा क्यों

वृक्ष से सीखो 
पेड़ पौधों से सीखो 
हर मौसम में फल फलता है
पकने पर तोड़ा 
कच्चा भी तोड़ा 
कभी खाने के लिए 
कभी भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए 
कभी अचार तो मुरब्बा कभी 
हर रोज फूल खिलते हैं 
उसने क्या कभी हक जताया 
उसने तोड़ने से मना किया 
हर रोज पौधे का सुंदर फूल तोड़ा 
कभी ईश्वर के अर्पण के लिए 
कभी पितरों के तर्पण के लिए 
कभी सौंदर्य बनाये रखने के लिए 
कभी महकाने के लिए 
उसकी लकड़ी भी तोड़ी 
कभी चूल्हें के लिए 
कभी हवन के लिए 
कभी झूले के लिए 
कभी चिता के लिए 
वह देता गया 
देता रहा 
तब तक
जब तक जिंदा रहा 
तुम मानव कुछ उससे सीखो 
जन्मदाता हो विधाता नहीं 
एहसान कुछ नहीं है अपेक्षा भी मत रखो 
तुम किसी की वजह से इस दुनिया में 
तुम्हारी वजह से कोई इस दुनिया में 
एहसान मानो उसका 
उसने तुम्हें चुना 
आने के लिए 
इस भ्रम में मत रहो 
उनके आभारी रहो 
तुम्हारें जीने का उद्देश्य बने 
बच्चें जीवन में वो अमृत धारा है 
जो पीढ़ियो में बहती रहती है 
उनकी वजह से नाम जिंदा रहता है 
खुशी- खुशी अपना धर्म निभाया जैसे 
अब क्यों मन में दुराव
क्यों अपेक्षा
वे क्या देंगे तुम्हें 
देने के लिए तो तुम हो वे नहीं 

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