Thursday, 25 September 2025

भरपाई

मैं मंजिल की तलाश में निकली 
भटकती रही दर - दर
मंजिल नहीं थी जहाँ 
वहाँ भी तलाशा उसे 
न जाने क्या कुछ खोया 
कभी जाने कभी अंजाने 
हर उस पर भटकती रही 
जो राह वहाँ ले जाती थी 
कुछ आगे नहीं बढ़े 
कुछ बीच में ही रुक गए 
नयी की तलाश की 
उस पर भी चले 
चलने में ना जाने क्या-कुछ छूटा 
उसकी तो भरपाई मुश्किल 

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