यह सोचा न था
जिसको जी जान से चाहा
उससे अलगाव कैसे
करना पड़ा
मजबूरी थी
आज भी मन उसी जगह है
जहाँ कभी छोड़ा था
आसान नहीं होता
कहने को तो अलविदा
लेकिन सच में कभी हुआ ही नहीं
जुड़ा है मन अभी भी
मन तो मजबूर है
कहना नहीं मानता
समझाया पर समझता नहीं
मन तो मन है ना
उस पर तो वश नहीं
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