Tuesday, 16 December 2025

गम किस बात का

झुकाने की कोशिश तो बहुत हुई 
न मैं झुकी न मैं रुकी 
न जाने कौन सी मिट्टी की बनी हुई 
आपदा को भी आसान बना लेना 
उसके अनुसार ढल जाना 
अपने अनुसार उसको बना लेना 
हर हाल में संतुष्ट 
ईश्वर से कभी ज्यादा कुछ मांगा नहीं 
वह तो हर राह आसान करता गया 
रास्ता दिखाता गया 
मदद के लिए किसी को भेजता रहा 
उससे कोई शिकायत नहीं 
पहले कभी-कभार होती भी थी 
अब नहीं होती 
शिकायत तो लोगों से थी 
अब वह भी नहीं रही 
समय के अनुसार हर कोई चला 
साथ- साथ चला 
जरूरत पर चला 
उनका कर्तव्य नहीं था 
उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती थी 
फिर भी किया 
क्योंकि जिनकी बनती थी उन्होंने नहीं किया 
शून्य से यात्रा शुरू हुई 
अब चल रही है 
किससे नाराज रहूं 
समय बदला लोग भी बदले 
हम भी तो बदले 
सबकी अपनी अपनी जिंदगी 
अपना अपना भाग्य 
गलतियां तो हर किसी से 
माने या न माने 
अब तो छोड़ना है पीछे 
नयी डगर नयी राह 
भूत को पकड़कर रखना बुद्धिमानी तो नहीं 
जिनसे दिल से प्यार किया 
उसका बुरा सोचे कैसे 
तब भी तो दुखी हम ही 
बस किनारा कर ले 
अपनी नैया का मुख मोड़ ले 
नये राह पर चल पड़े 
जो अब तक साथ रहा है 
वह ईश्वर तो अब भी साथ है 
गम किस बात का 

Monday, 15 December 2025

भय

मैंने तो तुमको हाथ दिया था 
विश्वास था इसको थामे रखोगे 
बात का क्या 
वह तो आती - जाती है 
आज कहा कल भूला 
उसको क्या पकड़कर रखना 
लेकिन वास्तविकता तो यह
लोग बात पकड़कर रखते हैं 
हाथ छोड़ देते हैं 
वही तो तुमने किया 
तुम भी तो इसी दुनिया के 
कुछ अलग तो नहीं 
गलतफहमी में तो हम थे 
गलत तो हम भी थे 
हम ने क्यों विश्वास किया 
भरोसा उस पर क्या करना 
जो हर बात- बात पर बुरा मानता हो
वहाँ विश्वास नहीं भय का वास होगा 
जहाँ भय वहाँ प्रेम कहाँ  

Sunday, 14 December 2025

समय की धारा

क्या सही क्या गलत
अब भला पीछे मुड़कर क्यों देखना 
जो लगा उचित वह किया 
जितनी समझ उतना समझा 
परखा कितना 
धोखा कितना 
इस्तेमाल कितना 
गलती कितनी 
निर्णय कहाँ सही कहाँ गलत 
लेखा - जोखा से क्या होगा 
उससे सबक तो सीखा 
वहीं तो नहीं दोहराया जाएंगा 
कल कोई दूसरा मसला 
उससे सब अंजान 
पछता कर हासिल क्या 
ऐसा होता तो 
वैसा होता तो 
जिंदगी अनिश्चित 
यहाँ मौसम का मिजाज कब बदले 
कोई नहीं जानता 
अचानक क्या हो जाए 
कुछ वश में नहीं 
समय के अनुसार चलना है 
वह पल पल बदलता है 
ऐसा लगता है 
सब ठीक है 
करवट ले लेता है 
कुछ सही नहीं हो रहा है 
सही होने लगता है 
बस रौ में बहते जाओ 
तैरते रहो 
मझधार में फंसो तो हाथ- पैर मारो 
किनारे पर पहुंचो 
खुश हो जाओ 
बस चलो समय की धारा संग 

Wednesday, 10 December 2025

ऐ सुबह

ऐ सुबह 
तुम हर रोज आती हो 
आशा की किरण साथ लाती हो 
नव जीवन का संचार करती हो 
प्रकृति का संचालन करती हो 
सब में स्फूर्ति भरती हो 
नव निर्माण का आवाहन करती हो 
नीरव शांति को गुंजायमान करती हो 
सबको कर्म के लिए प्रेरित करती हो 
हर जीव को तुम्हारी प्रतीक्षा
भोर हुई प्रकाश फैला 
सब नींद से जागो 
यह संदेश लाती हो 
उजायमान करती हो 
हर कोने में उजाला 
नही रहता कहीं अंधेरा 
हर जीवन में प्रकाश
कण कण में जीवन 
तुम ही तो संबल
तुम से ही तो संसार 

Tuesday, 9 December 2025

रिश्ते - नाते

रिश्ते नाते प्यार वफा सब
नाते हैं नातों का क्या
कोई किसी का नहीं है 
यह गाना सुना था

यह सही है
फिर भी संसार तो इन्हीं से चलता है
बिना रिश्तों के
बिना अपनों के जिंदगी की कल्पना 

नहीं वह तो नीरस हो जाएगी 
जीने का मजा ही खत्म 
हाँ रिश्तों की भी मियाद होती है
जो किसी समय अजीज होते हैं 
एक समय भार लगने लगते हैं 

फिर भी सोचो तो जरा
उस पल को याद करों 
जब ये साथ थे
कितनी खुशियाँ थी
कितना समय हमने सुख दुख बांटा है
गमी और खुशी बांटी है
मजा और मजाक किया है

हो सकता है
आज रिश्तों में वह बात नहीं रही 
पर जीवन का अभिन्न अंग है वे
वे साक्षी है हमारे संबंधों का
इसलिए इन्हें पूरी तरह झुठला नहीं सकते
उसी पर जीवन की नींव मजबूत खडी है

वक्त बदलता है
विचार बदलते हैं 
सबंध भी बदलता है
जो बात पहले थी अब नहीं रही
तब भी संसार तो आज भी इन्हीं से चलता है ।

Monday, 8 December 2025

पिता

पिता का आधार
नहीं कोई दूजा उस समान
माता माता सब करें
पेट का जुगाड़ पिता करें
दर दर भटके 
दिन रात एक करें
तब जाकर घर खडा करें
मालिक की बातें सुने
समाज के उलाहने सुने
तब जाकर हमें बोलने लायक बनाएं
स्वयं अनपढ़ रहे
बच्चों को शिक्षित करें
स्वयं फटेहाल रहे
बच्चों के तन पर कपड़े धरें
ऊपर से कठोर दिखे
अंदर से प्रेम हिलोरे ले
स्वयं बेहाल रहें
सबको हर हाल में खुश रखें
पिता बिना परिवार अधूरा
उसकी छत्रछाया में आसमान समाया
नहीं किसी का हो एहसान
जब पिता का हो साथ
जो करता है 
दिखाता नहीं
जिस पर हो हमारा पुर्ण अधिकार
जो हमारी मनुहार और जिद पूरी करें
एक उसका होना ही
दे देता हो निश्चिंतता का आभास
उसके रहते ले सकते सुकून की सांस
जब तक पिता तब तक नहीं जिम्मेदारी का एहसास
न बडप्पन  का 
पिता का आधार 
नहीं कोई दूजा उस समान

Sunday, 7 December 2025

मत कहो

मत कहो किसी से कुछ 
अकेले में रो लो
ईश्वर के आगे प्रार्थना कर लो 
मत बताओ मन की पीड़ा 
मन हल्का नहीं होता 
आप हल्के हो जाएंगे  
परिस्थित बदल भी जाएंगी 
लोग याद दिलाएंगे 
आप शायद भूल गए होंगे 
वे नहीं भूलते 
ये दुनिया है साहब 
यहाँ दुआ देने वाले कम
द्वेष रखने वाले बहुतायत 

रहिमन मन की व्यथा 
मन ही राखे कोय
सुन इठलैहे लोग 
बांट न लैहे कोय 

बस ईश्वर साथ रहें 
उसकी कृपा बनी रहें 


Saturday, 6 December 2025

बच्चें हैं कर्जदार नहीं

उडने दो इन परिंदो को
करने दो मनमानी
जितनी भी ऊँची उडान भरना चाहे भरने दो
मत डालो 
इनके पैरों में
कर्तव्य की
प्यार की
ममता की बेडियाँ
जीना इनका अधिकार है
उस अधिकार पर हावी होने का प्रयास मत करो
अपनी इच्छा नुसार करने दो
कभी ऊपर कभी नीचे कभी बीच में 
यह तो होता ही रहेंगा
पंखों को मत कतरे

अपनी आशा आंकाक्षा उन पर मत लादे
माना तुमने जन्म दिया है
पालन पोषण किया है
इसका यह मतलब तो नहीं
कि उसका जीवन गिरवी रख दिया
अंजाने में ही सही
अपना गुलाम बना दिया
जो तुमने किया 
वह कर्तव्य था तुम्हारा
अपनी खुशी के लिए किया
अपना घर गुलजार होने के लिए किया
कोई एहसान नहीं किया
तब एहसास भी नहीं दिलाना है
हमने तुम्हारे लिए इतना किया
और तुम हो कि ' '' '' 

सब बच्चों को पालते हैं
पशु-पक्षियों से सीखो
वह भी दाना ला चोंच में डालती है
अपने बच्चे के लिए मुर्गी , चील से लड जाती है
वही जब ये बडे हो जाते हैं तब छोड़ देते हैं
कोई अपेक्षा नहीं

कोई कर्ज नहीं है कि
वह सूद समेत अदा करें
इसीलिए जन्म दिया कि 
मेरे बुढापे की लाठी बनें
सहारा बनें
मेरी इच्छानुसार चले
तब तो यह निरा स्वार्थ हुआ

अपेक्षा सदा दुख ही देता है
आपने अपना कर्म किया
वह उसका धर्म है
वह करें या न करें
करें तब भी ठीक
नहीं तब भी ठीक
कोई मलाल नहीं पालना है
किसी पर भार नहीं बने
अपनी लाठी अपना सहारा स्वयं बनना है
अपने लिए भी सोचना है
भविष्य को तो बडा करना है
साथ में अपना भविष्य भी सुनिश्चित करना है

Friday, 5 December 2025

सबसे वाकिफ हैं

मुझे अपने बारे में सब पता है 
मैं कहाँ सही कहाँ गलत 
इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूँ 
मुझे क्या करना चाहिए 
क्या नहीं करना चाहिए 
क्या किया 
उससे भी अंजान नहीं 
अंजाम भी भुगता है 
कोई शिकवा - शिकायत नहीं 
कर्म किया मैंने फल भी तो भुगतनी पड़ेगी मुझे 
किसी और को बताने और जताने की जरूरत नहीं 
अपनी जिंदगी अपने हाथ 
नहीं किसी का चाहिए साथ 
साथ मिला तो भी ठीक 
न मिला तो भी ठीक 
हर कंकरीले- पथरीले रास्तों पर चली हूँ 
हर आग में तपी हूँ 
फूल बिछे नहीं मिले थे राहों में
चलती रही अब भी चलना जारी है 
गिरने से डर नहीं 
हारने की परवाह नहीं 
सब मुझे समझे यह संभव नहीं 
वह क्या समझे मुझे जो इन रास्तों पर चले ही नहीं 
मंजिल उनको आसानी से मिल गई 
सब लोग इतने खुशनसीब नहीं होते 
न कोई वरदहस्त न किसी का गुरुर 
तब भी कोई गम नहीं 
हम अकेले ही चले 
बीच-बीच में रुक भी गए 
फिर चल पड़े 
ईश्वर का हाथ और साथ रहा हमेशा 
तभी तो हर राह आसान होती गई 
अपनी राह ही नहीं दूसरों की भी राह में उनके साथ रही 
वे आगे निकल गए 
हम वहीं ताकते रह गए 

ऐ धरती

धरती कितनी सहनशील है तू 
कितना कुछ होता है 
तब भी सबको समेटे रखती है 
अपनी संतानों का अतिक्रमण सहती रहती है
तेरे प्यार को ये समझ नहीं पाते 
कभी-कभार गुस्सा हो जाती है 
कुछ संकेत दे देती है 
फिर भी ये नहीं सचेतते 
अपने ही नाश पर ऊतारु रहते हैं 
ये सोचते नहीं है 
कि क्या कर रहे हैं 
किसमें इनकी भलाई है 
तू भी कब तक इनकी मनमानियों को बर्दाश्त करती रहेगी 
हर बार चोट पहुंचाते हैं 
हर समय तकलीफ देते हैं 
तू फिर भी उफ्फ नहीं करती 
अपना प्यार बरसाती रहती है 
ये बम - बारूद बरसाते हैं 
तुझे छलनी करते रहते है 
आखिर कब तक 
होता रहेगा 
ऐसा 

खुशी का पैमाना क्या ???

खुशी का पैमाना क्या ??
ढूँढने चली 
बात नहीं बनी 
वहाँ नजर आई 
जहाँ मैं खुश होकर भी खुश नहीं थी 
शांति ढूंढ रही थी 
वह भी शांत जगह पर नहीं दिखी 
न महसूस हुई 
अशांति में ही शांति दिखी 
जीवन माया - मोह है 
व्यर्थ में जकड़े हुए हैं 
यहाँ कोई किसी का नहीं 
उस जकड़न में ही स्वतंत्रता दिखी 
बंधन में ही आनंद लगा 
इतनी उलझन 
सुलझाने बैठी 
सुलझा न पाई 
गुस्सा भी उन्हीं से प्यार भी उन्हीं से 
निराशा भी उन्हीं से आशा भी उन्हीं से 
उपेक्षित भी उन्हीं से अपेक्षित भी उन्हीं से 
लगता है सबसे संबंध खत्म कर दूं 
संन्यास ले लूं 
दुनियां से संबंध तोड़कर मुक्त हो जाऊ 
मुक्ति भी आसान नहीं 
जीवन भी चाहिए 
मृत्यु भी स्वीकार नहीं 
जिनसे तिरस्कार वहीं जीवन आधार 
क्या गूढ़ रहस्य जीवन का 
नर्क में रहना नहीं चाहते 
स्वर्ग में शांति नहीं मिलेगी 
मोह - माया में जकड़ा इंसान 
मकड़ी के जैसे बुने अपने जाले में उलझा - पुलझा 
यह अपना ही जाल तोड़ नहीं पाता 
जाने क्यों वह जान बूझकर अंजान बना रहता है 
कहना चाहता है कह नहीं पाता 
सब कुछ जानते समझते चुप रहता है 
असत्य और गलत को स्वीकार करता है 
अपने को दोषी मान लेता है बिना दोष के 
न जी पाता है न खुश रह पाता है 
सबको खुश रखने की कोशिश में स्वयं को खत्म करता रहता है 
अपना वजूद मिटाता जाता है 
फिर भी वह ईश्वर से यही कहता है 
    रहने दो हे देव 
          मेरा मिटने का अधिकार 
स्वर्ग का सुख नहीं भाता मुझे 
          धरती की गोद में ही संघर्ष रत रहने दो 

आओ धरती का सम्मान करें

विश्व मिट्टी दिवस 
आओ अपनी मिट्टी का सम्मान करें
पेड़ लगाकर उसका श्रृंगार करें
इस मिट्टी में जन्मे हम
इस मिट्टी में खेले हम
इस मिट्टी ने हमको दुलराया
बडे प्रेम से गोदी में ले सहलाया
हमारा भरण-पोषण सब इसके जिम्मे
तभी तो है इसको बचाने की हमारी जिम्मेदारी
जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ निभाती
माता है यह हमारी
सबसे प्यारी 
इससे जीवन चलता हमारा
सांसों की डोर बंधी इससे
तब तो इसकी सांस भी चलती रहे
इस खातिर इसे संवारे और सजाए
पेड़ और पौधे लगाए

Thursday, 4 December 2025

पल को जीओ

मैं बैठी थी गुमसुम 
अतीत की यादों में खोई 
चिंतन - मनन करती 
तभी छोटा सा नन्हा सा आया 
अपनी डगमग चलती चालों से 
हंसता हुआ चला आ रहा था 
पैर उलझे गिर पड़ा 
जोर से रोना शुरू किया 
चुप कराया गोद में ले 
फिर मचला और उतरा 
गोद में बैठ रहना गंवारा नहीं 
ठुमक - ठुमक फिर चला 
हंसता - खिलखिलाता 
मानो कह रहा हो 
गिरा तो क्या 
उठने से क्यों डरना 
चलना क्यों छोड़ना 
छोड़ना हो तो अतीत को छोड़ो 
हंसते मुस्कराते आगे बढ़ो 
बैठना क्यों 
डर से चिंता से 
रुकावटे आती रहेगी 
चोट लगती रहेगी 
हम तब भी चलेगे 
न चला तो जिंदगी चल देंगी 
हम पीछे रह जाएंगे 
लोग धकियाते आगे निकल जाएंगे 
तो उठो 
तो चलो 
तो हंसो 
तो आगे बढ़ो 
तो अतीत को भूलो 
पल को जीओ 

औरत और समाज

दूसरी औरत 
यह तमगा आसान नहीं है 
दुनिया की नजरों में घर उजाड़ने वाली 
पुरुष को फंसाने वाली 
वह कितनी भी काबिल क्यों न हो 
सम्मान की अधिकारी नहीं हो सकती 
यह समाज है 
कुछ भी हो 
दोषी तो औरत ही होती है 
बलात्कार हुआ हो 
परित्यक्ता हो 
अविवाहित हो 
विधवा हो 
अंतरधर्मीय- अंतर्जातीय विवाह हो 
बस एक पक्ष की गलती 
कभी फंसा लिया 
कभी मनहूस कदम कि आते ही खा गई 
कभी कपड़े छोटे पहने 
कभी अकेली बाहर क्यों निकली 
कभी झगड़ालू इसलिए ससुराल में रह न सकी 
कभी बाहर चक्कर होगा 
ऐसे न जाने कितने 
पुरुष बेटा , पति , ससुर, जेठ 
और तो और 
तोहमत लगाने में महिलाएं भी कम नहीं 
गॉसिप का चर्चा भी यही 
फलां की बेटी 
फलां की तमाम - ढिकान 
सब स्वर्ग से उतरे हुए लोग 
दुध से धुला हुआ दुधिया चरित्र 
तभी तो किसी का भी ये चरित्र हनन कर सकते हैं 
जीना मुश्किल कर देते हैं 
मनगढ़ंत कहानियां बना डालते हैं 
वो भी जो आप अपने बारे में नहीं जानते 
अकेली औरत को तो किसी से बात करने में भी डर
समाज बदल रहा है ??
बदतर हो रहा है 
मौमबत्ती लेकर प्रतीक्षारत रहते हैं 
कब मातम मनाने जाएं  
कब कुटिल चर्चा को बल मिले 
धिक्कार है समाज को
वह भी तब जब 
सबके घरों में बहन - बेटियां है 
जब तक ऊंट पहाड़ के नीचे नहीं आता तब तक
खुदा न खास्ता अगला शिकार आप हो 
तब पीड़ा का पता चलेगा 
इंसान हो तो इंसान बनो 
ऊपर वाले से डरो 
इतना मजा मत लो कि ईश्वर सजा देने पर ऊतारू हो जाएं
आप अपनी जिंदगी जीओ 
दूसरे में दखलअंदाजी क्यों 
परमात्मा हैं 
समाज के  हर व्यक्ति को सोचना पड़ेगा 
नहीं तो दिशा और दशा दोनों बदलेगी 
दोषी भी आप ही होंगे 

Tuesday, 2 December 2025

बेटी बचाओ

बेटी बचा ली
आने दिया इस संसार में
उसे प्यार दिया
अपनापन दिया
बेटे के बराबर दर्जा दिया
कोई भेदभाव नहीं किया

बेटी पढा ली
उसको पंख फैलाना है
ऊंची उड़ान भरनी है
सपनों को साकार करना है
आत्मनिर्भर बनाना है

अब वह सक्षम है
अपने पैरों पर खडी है
अपने फैसले स्वयं ले रही है

फिर भी चिंता है
क्योंकि वह बेटी है
वह असुरक्षित है
घर से लेकर सडक तक
कहीं भी सुरक्षित नहीं है

सरकार का तो नारा है
बेटी बचाओ , बेटी पढाओ
पर इन राक्षसों से हैवानो से
कौन बचाएगा
इससे तो अच्छा होता
उसे इस बर्बर संसार में आने ही नहीं दिया जाता
जब जलना है
मरना है
बलात्कार होना है