गर्भ से बची
बलात्कारियों के हत्थे चढ़ी
बेटी सुरक्षित नहीं
घर ,बाहर ,समाज
दिन पर दिन
दिल दहला देने वाली घटनाओं मे बढ़ोतरी
एक अभी भूली नहीं
दूसरी घटना घटित
राजनीति भी हो रही
धर्म से जोड़कर देखना
बेटी ,बेटी है
वह किसी भी धर्म की हो
रक्षा की जिम्मेदारी है सबकी
देश की बेटी है
उसका अपमान सबका अपमान
सर से शर्म झुक रहा
इतनी हैवानियत कहाँ से आ रही
क्यों बढ़ रहे नराधमों के मनोबल
इनकी तह मे जाना है
इनको वह दंड मिले
कि दूसरों को भी सबक मिले
सरकार ,समाज सबकी जिम्मेदारी बनती है
बेटी न बचेगी
समाज कैसे बचेगा
आसिफा को अभी भूले भी नहीं
तब तक मंदसौर मे यह घटना
निर्भया को तो ऐसे ही मारा जा रहा
उसे या तो मार डाला जा.रहा
या मरने की हालत मे छोड़ दिया जा रहा
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Saturday, 30 June 2018
मंदसौर की बेटी देश की बेटी
Happy doctors day
डॉक्टर जीवन दाता है
ईश्वर के बाद अगर किसी से जीवन की आशा तो वह डॉक्टर
मरीज और बीमार का सहारा
बिना भेदभाव के हर किसी का इलाज
यह उसका कर्तव्य है
क्योंकि उसने यह पेशा इसलिए अपनाया है
सेवा की भावना
उसे देख अपना दर्द कम हो जाय
विश्वास हो जाय
उसकी एक मुस्कराहट बीमारी को दूर भगाने मे मदद
डॉक्टर को सम्मान देना हर व्यक्ति का फर्ज
जीवन और मरण के बीच झूलते
परिजनों को सांत्वना
अपने डॉक्टर पर विश्वास रखें
वह बना ही इसलिए है
ऊपर भगवान
नीचे डॉक्टर
यह अमूल्य देन है
बूढा ,बच्चा या जवान
औरत हो या मर्द हो या किन्नर
गरीब हो या अमीर
नवजात हो या अपाहिज
देशी हो या विदेशी
सर्दी हो या कैंसर
हर बीमारी का इलाज
सबकी सेवा मे तत्पर
वह है डॉक्टर ।
Pay _ Rent to your Parents
Pay-RENT TO YOUR PARENTS
By Priya Tandon
This article was first published in The Hindustan Times, a leading national daily, and is being republished here with the author’s permission with suitable edits.
A very distressed neighbour shared that he had driven home after a long day at work. As he entered, he saw his wife in bed with fever. She had laid out his dinner on a tray.
Everything was there just as he wanted it. The dal, vegetables, salad, green chutney, papad and pickles... "How caring," he thought, “Even when she is unwell, she finds the strength to do everything for me.”
As he sat down to eat, he realised that something was missing. He looked up at his grown up daughter who was watching TV and said, "Beta (child), can you get me my medicine and a glass of water, please?"
She rolled up her eyeballs to show her displeasure at being disturbed, but did the favour nevertheless.
A minute later he realised that salt was missing in the dal.
He said, "Sorry beta, can you please get me some salt?"
She said, "Ufff!" and got the salt but her stomping shoes made it clear that she did not appreciate the disruption.
A few minutes later he said, "Beta …”
She banged the TV remote on the table and said, "What is it now Dad? How many times will you make me get up? I too am tired; I had a long day at work!"
The man said, "I'm so sorry beta…" Silence prevailed.
The man got up and placed the dishes in the kitchen sink and quietly wiped the tear escaping his eye.
My heart wept... I often wonder; why is it that the youngsters of the so called modern world behave like this? Have we given them too much freedom to express? Have we failed to discipline and give them the right values?
Is it right to treat children as friends? Think of it this way, they have lots of friends. But they have only one set of parents. If they don't do 'parenting', who will?
Today the ‘self-esteem’ of even a new born or an infant is being talked about; but what about the self-esteem of the parents? Are they supposed to just fan the egos of their children, while the children don't care two hoots about theirs?
Often parents say, “Aajkal ke bachhe sunte kahaan hain (Where will you find obedient children in these times)?” Why?
If we need to teach children about self-respect, self-esteem and self-confidence, we also need to tell them that howsoever big and rich and famous they may be, their parents shall always be their parents… children can never be their equals, let alone be their bosses! Remember to Pay-RENT - Pay Respect, Empathy, Niceness, and Time!
COPY PEST
जीवन की सांझ
जब अपने ही अंजान लगने लगे
तब शांतिपूर्ण पीछे हट जाय
कदमों को रोक ले
मन को वश मे कर ले
जिस वक्त सारे नाते-रिश्ते खत्म होने लगे
सकारण या बिना कारण
उस समय प्रमाण मत मांगे
बस शांतिपूर्ण पीछे हट जाय
वह भी दौर था जब किसी पर अपना हक था
कभी किसी की नजरों के आगे हर वक्त
वही आज नजरअंदाज करें
अनदेखा करें
तब शांतिपूर्ण पीछे हट जाय
कभी -कभी हम व्यर्थ मे ही किसी मोह मे बंध जाते
अपने असतित्व को कायम रखने
पर वह भी समय जब हमारे असतित्व की परवाह नहीं
बेदखल कर दिया जाता
भावनाओं को खंडित होते देख
तब शांतिपूर्ण पीछे हट जाय
उत्तर की अपेक्षा मे क्यों प्रश्नों के दंश सहे
नहीं प्राप्त होगा उन प्रश्नों के उत्तर
तभी शांति पूर्ण पीछे हट जाय
जब सब कुछ समाप्त होता
तब नियति दान देती
एक अनमोल उपहार
उसका नाम है ःःःअनुभव
तभी तो जब सब कुछ खत्म होने लगे
शांतिपूर्ण पीछे हट जाय
नियति नटी का खेल है यह
उगते हुए का स्वागत
डूबते हुए को अनदेखा
यह समय है बड़ा बलवान
उदयाचल के सूर्य को सांझ
को अस्ताचल का रास्ता दिखा देता है
इसलिए समय को पहचानना है
चुपचाप शांतिपूर्ण कदम पीछे कर लेना है
Friday, 29 June 2018
जब लिफ्ट मे फंसे
लिफ्ट होती है आराम से ऊपर जाय
सीढियां चढ़ने की जहमत न उठानी पड़ी
पर वाकया ऐसा कि एक बार लिफ्ट मे फंस गए
बिजली चली गयी
अब क्या करें
कुछ समझ नहीं आ रहा था
डर भी लग रहा था
आवाज लगाई पर कौन सुनता
सांस ऊपर नीचे होने लगी
क्या होगा??
पीटने पर किसी को सुनाई पडा
राहत महसूस हुई
बाहर आवाजें आ रही थी
घबराना मत
दिलाता दे रहे थे
आखिर किसी तरह दरवाजा खोला गया
बाहर लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी
यह थे तो अंजान
पर आज रक्षक बन आए थे
मशीन , मशीन ही होती है
वह इंसान की जगह नहीं ले सकती
ऊपर ले जाने वाली लिफ्ट कहीं सच मे ऊपर पहुंचा देती तो
घबराहट के मारे दिल की धडकन बंद हो गई होती तो
हम कितना गुलाम बन गए इन मशीनों की
इन्हीं के हिसाब से चलते हैं
टोपी
टोपी यह किसी न किसी रूप मे इंसान के साथ जुड़ी है
स्वतंत्रता काल मे गांधी टोपी बन अलख जगाया
केजरीवाल ने आप की टोपी पहनाई
हर पार्टी की अलग अलग टोपी
रंगबिरंगी टोपियां
समाज वादी टोपी
भगवा टोपी
व्यापारी टोपी
गर्मी से बचाने वाली टोपी
आजकल राजनीति मे भी गरमागरमी
हर कोई अपनी टोपी पहनाना चाहता है
न पहने तो बवाल
धर्म की भी टोपी
पर असली बात तो यह कि पहने क्यों
टोपीवाला और बंदर कहानी के बंदर जैसा तो कोई नहीं
देखा तो पहना
फेका तो फेका
जमीर जो कहता है वह करें
हमें कोई टोपी पहनने को विवश न करें
टोपी तो एक जरूरत है
जिसे ठीक लगे वह पहने
पता ही नहीं चला
*💙 समय चला, पर कैसे चला... 💙*
*पता ही नहीं चला...*
ज़िन्दगी की आपाधापी में,
कब निकली उम्र हमारी,यारो
*पता ही नहीं चला।*
कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे,
कब कंधे तक आ गए,
*पता ही नहीं चला।*
किराये के घर से
शुरू हुआ था सफर अपना
कब अपने घर तक आ गए,
*पता ही नहीं चला।*
साइकिल के
पैडल मारते हुए,
हांफते थे उस वक़्त,
कब से हम,
कारों में घूमने लगे हैं,
*पता ही नहीं चला।*
कभी थे जिम्मेदारी
हम माँ बाप की ,
कब बच्चों के लिए
हुए जिम्मेदार हम,
*पता ही नहीं चला।*
एक दौर था जब
दिन में भी बेखबर सो जाते थे,
कब रातों की उड़ गई नींद,
*पता ही नहीं चला।*
जिन काले घने
बालों पर इतराते थे कभी हम,
कब सफेद होना शुरू कर दिया,
*पता ही नहीं चला।*
दर दर भटके थे,
नौकरी की खातिर ,
कब रिटायर होने का समय आ गया
*पता ही नहीं चला।*
बच्चों के लिए
कमाने, बचाने में
इतने मशगूल हुए हम,
कब बच्चे हमसे हुए दूर,
*पता ही नहीं चला।*
भरे पूरे परिवार से
सीना चौड़ा रखते थे हम,
कब परिवार हमी दो पर सिमट गया।
*।।। पता ही नहीं चला ।।।*.
COPY PEST
घर का खाना और घर की बात
घर का खाना कुछ खास नहीं
घूम -फिर कर वही
कभी यह तो कभी वह
मन करता है होटल मे खाना
जाते हैं ,आराम से बैठते हैं
वेटर मेनूकार्ड लेकर आता है
हम आर्डर देते हैं
विभिन्न तरह के व्यंजन
आकर्षक नाम
सजावट बेहतरीन
स्वाद भी लाजवाब
पैसा भी कम नहीं
पर क्या सचमुच मन भरा
शायद नहीं
कुछ समय के लिए संतुष्टि
पर यही हर रोज खाना हो तो
ऊब जाएंगे
घर की दाल -रोटी भी मनभावन
घर तो घर ही होता है
चाहे वह खाना हो या रहना
वहाँ हम मुसाफिर नहीं होते
वहाँ प्रेम -अपनापन होता है
पाँच सितारा होटल हो या
मंहगे व्यंजन
घर की बात ही कुछ और.
Thursday, 28 June 2018
कर्ण
महाभारत का युद्ध चल रहा था
कृष्ण अर्जुन के रथ पर सवार थे
सारथी भगवान ही थे
कर्ण अर्जुन के रथ को कुछ ईंच पीछे कर रहे थे
तब श्रीकृष्ण उनको वाह कर्ण कहते थे
यह बात अर्जुन को नागवार लग.रही थी
उन्होंने कहा कि मैं कर्ण को इतना पीछे कर रहा हूँ
पर आप मेरी प्रशंसा नहीं करते
और वह सूतपुत्र कुछ ही इंच पीछे कर रहा है
तब भी
कृष्ण ने जवाब दिया
पार्थ , तुम्हारे रथ पर हनुमानजी सवार हैं
मैं तुम्हारे रथ का सारथी हूँ
तुम तो केवल कर्ण को पीछे कर रहे हों
पर वह तो तीन लोक के स्वामी को पीछे कर रहा है
तो यह.थे महाबली -दानी कर्ण
सूतपुत्र होने का दंश उन्हें आजीवन सहना.पड़ा
माता कु़ंती ने मां होते हुए भी कभी पहचाना नहीं
पहचाना तो अपने बेटों के जीवन दान के लिए
वे राजमाता होने के बावजूद असहाय बनी.रही
समाज का डर , राजकुल की मर्यादा वे पार नहीं कर सकी
उनकी विवशता का दंश कर्ण को सहना पड़ा
जाति हावी थी एक.वीर की वीरता पर
कुंवारी मां के गर्भ से जन्म लेना
यह किसी को स्वीकार नहीं होता
यह विडंबना ही थी
और इन विडंबनाओं के बीच कर्ण जीवन भर झूलते रहे
कबीर
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़
ताते या चाकी भली पीस खाय संसार
काकर पाथर जोर कर मस्जिद लिया बनाय
ता.चढ़ि मुल्ला बाग दे क्या बहिरा हुआ खुदा
यह कहने की ताकत कबीर मे ही थी
सारे रुढी का खंडन करना यह साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता
वे एक.ऐसा मजबूत पेड थे जो किसी थपेड़ों. से.नहीं डरा
मगहर मे मरना
काशी मे जीवन बिताने के बाद भी
निर्गुण निराकार मे विश्वास
ग्यान के आगे कुछ नहीं
अनुभव ही सबसे बड़ा
तू कहता कागद की लेखी
मैं कहता आँखिन की देखी
महात्मा कबीर से आजकल के महात्माओं को सीखना चाहिए
जो पैसे ,नाम के पीछे भागते हैं
धर्म के नाम पर नाटक करते हैं
स्वयं को भगवान बताते हैं
कबीर जैसे संत की आजकल बहुत जरूरत है
गोवर्धन धारण
"गोवर्धन" धारण !!!
भगवान् ने गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठा (हाँथ की अंतिम उँगली) के नख पर उठाया था। कनिष्ठा शरीर का सबसे कमजोर सजीव हिस्सा है और उसके भी निर्जीव हिस्से (नख) पर धारण किया था। गोपों ने अपनी-अपनी लाठी/डंडे गोवर्धन पर्वत के नीचे लगा कर कहा कि हमने अपने-अपने लाठी/डंडों से गोवर्धन पर्वत को रोक रखा है।भगवान् मंद-मंद मुस्कुराए।
आप विचार करें तो पाएँगे कि कनिष्ठा सरलता से ऊपर की ओर सीधी नहीं होती है। दूसरे, सभी उँगलियों के नखों में कनिष्ठा का नख सबसे कमजोर है। भारी वस्तु/पदार्थ को हमारे द्वारा इस प्रकार से उठाना तो असंभव ही है। यदि हम हल्की से हल्की और छोटी से छोटी वस्तु/पदार्थ को कनिष्ठा के नख पर उठाने का प्रयास करें तो उसे भी असंभव ही पाएँगे।
गोवर्धन पर्वत "संसार" का द्योतक है। भगवान् हमें संदेश दे रहे हैं कि उन्होंने संपूर्ण संसार को सरलता और सहजता के साथ धारण कर रखा है और संपूर्ण संसार के सभी प्राणी उनके ही द्वारा रक्षित हैं। संसार भ्रमित है - जो गोपों द्वारा गोवर्धन पर्वत को लाठी/डंडे से रोक सकने के समान ये समझ रहे हैं कि संसार हम मनुष्यों द्वारा ही रक्षित है।
प्राणीमात्र को अहंकारवश यह प्रतीत हो रहा है कि अत्यंत सरल, सहज, कठिन बल्कि सभी कार्य उसके द्वारा ही संपन्न हो रहा है। कनिष्ठा की नख पर किसी भी प्रकार के भार को हमारे द्वारा न उठा सकने के समान, सत्य - पूर्वोक्त वाक्य के विपरीत है।
जय श्री कृष्ण !! COPY PESY
सुरिक्षत क्यों नहीं??
रावण सीता को हर ले गया
यह उनको शोभा नहीं दिया
परिणाम पूरे खानदान का विनाश
जिद थी
बहन के अपमान का बदला लेना था
एक का अपमान
दूसरे का हरण
सीता को अशोक वन में रखा
पूरी सुरक्षा के साथ
पर उनको हाथ नहीं लगाया
अबला 'अकेली औरत पर सम्मान बरकरार
रावण को हम राक्षस की संज्ञा देते हैं
पर आज तो रावण की प्रंशसा करनी पड़ेगी
सीता सुरक्षित थीं
त्रिजटा उनकी पहरेदारी कर रही थीं
आज तो न जाने लोग कितने मुखौटे ओढे है
मन मे कुछ ,अंदर कुछ
विश्वास की धज्जियां उड़ाते हुए
भारत मे औरतें सुरक्षित नहीं-सर्वे
नया सर्वे - देश मे औरतें सुरक्षित नहीं
देश बदनाम हो रहा
विश्व पटल पर छवि खराब हो रही
बलात्कार बढ़ रहा
हर व्यक्ति शक की नजर से देखा जा रहा
पर्यटकों का.आना कम
सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे
क्या यह वही देश है
जहाँ नारी देवी -शक्ति का रूप है
परदे मे नारी को रखने वाला
सुरक्षा मुहैया कराने वाला
इतना कैसे बदल गया
सर्वेक्षण सही है या गलत
यह तो सोचना है
पर स्वयं के गिरेबान मे झांके
क्या हर दिन किसी न किसी कोने मे यह घटना??
दूधमुंही बच्ची से ले वृद्धा
नैतिकता खत्म हो रही
संस्कार मर रहे
मुहल्ले की बेटी -बहन अपनी इज्ज़त
अब तो घर वालों पर भी विश्वास नहीं
यह बदलाव कैसे हो गया??
अब यह परिवार को ही शुरू करना है
पुरूषों को मर्दानगी नहीं
नैतिकता का पाठ पढ़ाए
What a story
WHY DOGS LIVE LESS THAN HUMAN
Here's the surprising answer of a 6 year old child.
Being a veterinarian, I had been called to examine a ten-year-old Irish Wolfhound named Belker. The dog’s owners, Ron, his wife Lisa, and their little boy Shane, were all very attached to Belker, and they were hoping for a miracle.
I examined Belker and found he was dying of cancer. I told the family we couldn’t do anything for Belker, and offered to perform the euthanasia procedure for the old dog in their home.
As we made arrangements, Ron and Lisa told me they thought it would be good for six-year-old Shane to observe the procedure. They felt as though Shane might learn something from the experience.
The next day, I felt the familiar catch in my throat as Belker‘s family surrounded him. Shane seemed so calm, petting the old dog for the last time, that I wondered if he understood what was going on. Within a few minutes, Belker slipped peacefully away.
The little boy seemed to accept Belker’s transition without any difficulty or confusion. We sat together for a while after Belker’s Death, wondering aloud about the sad fact that dogs' lives are shorter than human lives. Shane, who had been listening quietly, piped up, ”I know why.”
Startled, we all turned to him. What came out of his mouth next stunned me. I’d never heard a more comforting explanation. It has changed the way I try and live.
He said, ”People are born so that they can learn how to live a good life — like loving everybody all the time and being nice, right?” The six-year-old continued,
”Well, dogs already know how to do that, so they don’t have to stay for as long as we do.”
Live simply.
Love generously.
Care deeply.
Speak kindly.
Remember, if a dog was the teacher you would learn things like:
• When your loved ones come home, always run to greet them.
• Never pass up the opportunity to go for a joyride.
• Allow the experience of fresh air and the wind in your face to be pure Ecstasy.
• Take naps.
• Stretch before rising.
• Run, romp, and play daily.
• Thrive on attention and let people touch you.
• Avoid biting when a simple growl will do.
• On warm days, stop to lie on your back on the grass.
• On hot days, drink lots of water and lie under a shady tree.
• When you’re happy, dance around and wag your entire body.
• Delight in the simple joy of a long walk.
• Be faithful.
• Never pretend to be something you’re not.
• If what you want lies buried, dig until you find it.
• When someone is having a bad day, be silent, sit close by, and nuzzle them gently.
That's the secret of happiness that we can learn from a good dog🐕 🐶
.. COPY PEST
राधा नाम तारन हार
राधा नाम तारन हार
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एक बार व्यक्ति अपनी समस्या लेकर पास के ही एक संत के पास जाता है, और संत से कहते है, संत जी मेरा एक पुत्र है, वह न तो कभी पूजा करता है, और न ही कभी भगवान का नाम लेता है, मैंने बहुत प्रयत्न किया पर वह मेरी बात नहीं मानता है। कृपया कर अब आप ही कुछ कीजिये जिससे उसके मन में बदलाव आ सके।
उस व्यक्ति की सारी बात सुन संत जी कहते है - ठीक है आप कल अपने पुत्र को यह लेकर आ जाईये। दूसरे दिन वह व्यक्ति अपने पुत्र को लेकर संत के पास आता है। संत उस बालक से कहते है - बेटा एक बार राधे राधे बोलो।
वह बालक कहता है - मैं यह क्यू बोलु?
संत जी कहते है - मैं तुम्हें राधे राधे बोलने से क्या लाभ होता है यह अवश्य बताऊंगा, लेकिन पहले तुम राधे राधे तो बोलो।
संत की बात मान वह बालक एक बार राधे-राधे कहता है। और कहता है अब मुझे यह कहने का क्या लाभ है, मुझे बताये।
तब संत जी उस बालक को विस्तार से बताते है - सुनो बेटा समय के चक्र अनुसार जब तुम युवास्था में जाओगे और उसके बाद वृद्ध अवस्था ममें और फिर उसके बाद जब तुम मृत्यु को प्राप्त कर यमलोक जाओगे। तब तुमसे यमराज पुछेंगे कि क्या कभी तुमने पूजा की, क्या कभी तुमने भगवान का नाम लिया। तब तुम कह देना हाॅ मैंने एक बार राधे राधे कहा था।
समय बीतता गया और वह बालक युवा से वृद्ध अवस्था और फिर मृत्यु को प्राप्त कर, जैसे ही वह यमलोक पहुचा, यमराज ने कहा - क्या तुमने कभी कोई अच्छा कार्य किया है, कभी भगवान का नाम लिया है।
तब वह व्यक्ति कहता है - हाॅ मैंने अपने पूरे जीवनकाल में एक बार राधे राधे कहाॅ था। लेकिन किसी ने मुझे इसकी महिमा व वास्तविकता कभी नही बताई। क्या आप मुझे इस शब्द की महिमा बता सकते है।
राधा नाम की महिमा सुन यमराज भी सोच में पड़ जाते है, और कहने लगते है, राधा नाम की महिमा तो बहुत है, परन्तु मुझे ठीक से ज्ञात नहीं है। एक काम करते है हम चलकर इंद्र से राधे नाम की महिमा पुहचे है, वह व्यक्ति माना जाता है, और कहता है ठीक मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूॅ। लेकिन मेरे लिए एक पालकी की व्यवस्था करो मैं उसमें बैठकर जाऊंगा।
यमराज उसके लिए एक पालकी मंगवाते है। जब उस पालकी को चार कहार पालकी उठाने लगते है तब वह व्यक्ति कहता है, रूकिए और एक कहार को हटाकर यमराज से कहता है आप कहार उठाओं। इस असमंजस को देख यमराज पालकी उठा इंद्रलोक जाते है। वहाॅ इंद्र के पास पहुच राधा नाम की महिमा पूछते है। इंद्र भी इसका ठीक से जवाब नहीं दे पाते है। और कहते है चलो चलकर ब्रम्हा जी से पछते है, अब एक ओर यमराज और दूसरी ओर इंद्र पालकी उठा ब्रम्हलोक जाते है, वह पहुचकर ब्रम्हा जी से भी यही सवाल पुछते है, ब्रम्हा जी भी कहते है, राधा नाम की तो महिमा बहुत सारी है परन्तु वास्तविकता क्या है, यह तो मुझे भी ज्ञात नहीं है। एक काम करते हैं राधा नाम की महिमा की वास्तविकता चलकर भगवान शंकर से पुछते है, उन्हें अवश्य पता होगा।
ब्रम्हा जी, यमराज, इंद्र सभी पालकी उठाये भगवान शिव के पास आ पहुचते है। और भगवान शंकर से राधा नाम की महिमा के बारे में पुछते है, भगवान शिव भी राधा नाम की महिमा बताने में असमर्थता जताते है। और वे भी राधा नाम की वास्तविकता जानने पालकी की चौथा भाग पकड़ भगवान विष्णु के धाम की ओर चले जाते है।
सभी भगवान विष्णु के धाम पहुचते हैं, तब वह व्यक्ति भगवान विष्णु के राधा नाम की महिमा के बारे में पुछता है, तब भगवान विष्णु कहते है, जिस पालकी में तुम आये हो उसे स्वंय मृत्यु के राजा यम, देवताओं के राजा इंद्र, ब्रम्हांड के राजा ब्रम्हा और साक्षात भगवान शिव ने उठाया है, इससे बड़ी राधा नाम की और क्या महिमा होगी। अब तुम उस पालकी से उतरकर मेरे सिंहासन में विराजमान हो जाओं। ऐसी है राधा नाम की शक्ति, इसलिए भगवान ने स्वंय कहाॅ है, जो भी राधा शब्द का उच्चारण करता है, मैं स्वयं उसकी ओर चले आता हूँ, और उसे अपने शरणागत् कर लेता हूॅ।
दंत कथाये
!!जय जय श्री राधे!!
COPY PEST
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Monday, 25 June 2018
मैं प्लास्टिक
सब मुझे दोष देते हैं
मेरी वजह से शहर डूब रहा है
मुझ पर बंदी
उपयोग पर.जुर्माना
पर जरा अपने गिरेबान मे देखे
क्या आप लोगों ने अति नहीं की
कुछ चीजों की बात तो ठीक है
पर हर वक्त
दो रुपए का सामान ले तब भी
यहाँ-वहाँ सब जगह
यह भी तो ज्यादितीय है
मनुष्य की फितरत है अतिरेक की
जहाँ काम चल सकता है वहाँ भी
मैं तो कितना उपयोगी हूँ
सबके जीवन को आसान बना दिया
मै न खराब होता हूँ
न कीडे लगते हैं
सस्ता और टिकाऊ
किसी भी रूप मे ढाल लो
गरीब की तालपत्री से लेकर अमीरों की कुर्सी तक
अब मुझे भी बदनाम कर दिया
गंदगी और जलभराव मेरे माथे
पर यह तो आपको सोचना होगा
सरकार के निर्देश का पालन करें
मेरा इस्तेमाल करें
पर जीवन पर खतरे के साथ नहीं
जहाँ मेरे बिना काम चल सकता हो
सब्जी कपडों की थैली मे आ सकती है
चाय काँच और कुल्हड़ मे
दूध -दही बर्तन में
चम्मच ,डब्बे दूसरी धातु की
आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें
होटल का खाना या जन्मदिन की पार्टी
उसका मजा.जरूर ले
पर वहाँ. मेरी क्या जरुरत
आप केवल मुझे कुछ समय उपयोग कर
फेकने के लिए मत इस्तेमाल करें
बल्कि अपनी जरूरत के हिसाब से
तभी मैं आपके साथ रह पाऊँगा
पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी आपकी है
उससे भागिए मत
पंखा और विचार
बिस्तर पर लेटे नजर ऊपर गई
पंखा चल रहा था अनवरत
यह तब तक चलता रहेगा
जब तक स्वीच बटन बंद न कर दिया जाय
मन मे विचार चल रहा है
और चलता रहता है
यह कभी विश्राम नहीं लेता
रात-दिन ,सालोसाल
रात मे भी पीछा नहीं छोड़ता
नींद मे ,सपने मे
अतीत ,वर्तमान ,भविष्य का लेखाजोखा
चैन ही नहीं
करें तो क्या करें
बैचेनी बढ़ जाती है
सब भूलना चाहते हैं
पर यह तो श्वास जब तक चलेगी
तब तक
यह रूक गई तो
जिंदगी रुक जाएगी
Sunday, 24 June 2018
जय श्री कृष्ण
🕉 जय श्री कृष्ण शरणं ममह श्री कृष्ण शरणं ममह 🕉
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वृंदावन की एक गोपी रोज दूध दही बेचने मथुरा जाती थी,
एक दिन व्रज में एक संत आये, गोपी भी कथा सुनने गई,
संत कथा में कह रहे थे, भगवान के नाम की बड़ी महिमा है, नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते है.
नाम तो भव सागर से तारने वाला है,
.
यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना.
कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली,
.
बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात याद आई, संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है,
*जिस भगवान का नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता ?*🤔
ऐसा सोचकर गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई.
अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई,
पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई, और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार जाने का,
रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे.
🤔एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये,
.
अगले दिन गोपी जब दही बेचने गई, तब संत से घर में भोजन करने को कहा संत तैयार हो गए,
.
अब बीच में फिर यमुना नदी आई.
संत नाविक को बुलने लगा तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है. हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे.
.
संत बोले - गोपी ! कैसी बात करती हो, यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?
.
गोपी बोली - बाबा ! आप ने ही तो रास्ता बताया था, आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है.
🤔तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते ?
.
और मै ऐसा ही करने लगी, इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती.
.
संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले चल ! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ,
.
गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई.
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*अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए, संत को बड़ा आश्चर्य,हुआ *
COPY PESY
हरि कथा
गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास
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पुरानी कथा है। एक खोजी ने विष्णु जी को खोजते—खोजते एक दिन पा लिया।चरण पकड़ लिए। बड़ा आह्लादित था, आनंदित था। जो चाहिए था, मिल गया था। खूब—खूब धन्यवाद दिए विष्णु जी को और कहा कि बस एक बात और: मुझसे कुछ थोड़ा सा काम करा लें, कुछ सेवा करा लें। आपने इतना दिया, जीवन दिया, जीवन का परम उत्सव दिया और अब यह परम जीवन भी दिया। मुझसे कुछ थोड़ी सेवा करा लें! मुझे ऐसा न लगे कि मैं आपके लिए कुछ भी न कर पाया, आपने इतना किया! मुझे थोड़ा सा सौभाग्य दे दें!* *जानता हूं, आपको किसी की जरूरत नहीं, किसी बात की जरूरत नहीं। लेकिन मेरा मन रह जाएगा कि मैं भी प्रभु के लिए कुछ कर सका!
विष्णु जी ने कहा: कर सकोगे? करना बहुत कठिन होगा।मगर भक्त जिद्द अड़ गया। तो कहा: ठीक है, मुझे प्यास लगी है क्षीरसागर में तैरते हैं विष्णु जी, वहां कैसी प्यास! पर इस भक्त के लिए कहा कि चल ठीक, मुझे प्यास लगी है। तू जाकर एक प्याली भर पानी ले आ। भक्त भागा। तुम कहोगे क्षीरसागर था, वहीं से भर लेता। लेकिन जो पास है, वह तो किसी को दिखाई नहीं पड़ता। चला। उतरा संसार में। एक द्वार पर जाकर दस्तक दी। एक सुंदर युवती ने द्वार खोला। उस भक्त ने कहा कि देवी, मुझे एक प्याली भर शीतल जल मिल जाए। उस युवती ने कहा: आप आए हैं, ब्राह्मण देवता! भीतर विराजें! मेरे घर को धन्य करें! ऐसे बाहर—बाहर से न चले जाएं। फिर मेरे पिता भी बाहर गए हैं। मैं घर में अकेली हूं। वे आएंगे तो बहुत नाराज होंगे कि ब्राह्मण देवता आए और तूने बाहर से भेज दिया! नहीं—नहीं, आप भीतर आएं!
एक क्षण को तो ब्राह्मण देवता डरे! युवती है, सुंदर है, अति सुंदर, ऐसी सुंदर स्त्री नहीं देखी। विष्णु जी भी एक क्षण को फीके मालूम पड़ने लगे। विष्णु जी के फीके हो जाने में देर कितनी लगती है! ऐसा दूर का सपना मालूम होने लगे। तो भक्त डरा, घबड़ाया। घबड़ाया इसीलिए कि विष्णु एक क्षण को भूलने ही लगे। आवाज दूर से दूर होने लगी। उसने कहा कि नहीं—नहीं। माथे पर पसीना आ गया। लेकिन युवती तो मानी न। उसने हाथ ही पकड़ लिया ब्राह्मण देवता का—कि आप आएं भीतर, ऐसे न जाने दूंगी। उसके हाथ का पकड़ना—ब्राह्मण देवता के विष्णु जी बिलकुल विलीन हो गए। वह भीतर ले गई। उसने कहा: जल तो आप ले जाएंगे, लेकिन पहले स्वयं तो जलपान कर लें। तो नाश्ता करवाया, पानी पिलाया।
एकांत! उस युवती का सौंदर्य! उस युवती का भाग—भाग कर ब्राह्मण देवता की सेवा करना! विष्णु जी धीरे—धीरे स्मृति से उतर गए। कभी—कभी बीच—बीच में याद आ जाती कि बेचारे प्यासे होंगे, फिर सोचता कि ठीक है, भगवान को क्या प्यास! वह तो मेरे लिए ही उन्होंने कह दिया है, अन्यथा उनको क्या प्यास! वे तो परम तृप्ति में हैं! तो ऐसी कोई जल्दी तो है नहीं। और दो क्षण रुक लूं। और युवती ने जब निमंत्रण दिया कि जब आप ही आ गए हैं, मेरे पिता भी थोड़ी देर में आते ही होंगे, उनसे भी मिल कर जाएं, तो वह सहज ही राजी हो गया। और युवती सेवा करती रही। और युवती का सौंदर्य और रूप मन को मोहता रहा। सांझ हो गई, पिता तो लौटे नहीं। युवती ने कहा: आप भोजन तो कर ही लें। अब सांझ को कहां भोजन करेंगे। भोजन बना, भोजन किया। रात हो गई। युवती ने कहा: इस रात में अब कहां जाएंगे!सोच तो ब्राह्मण देवता भी यही रहे थे कि रात अब कहां जाएंगे! सुबह—सुबह भोर होते, ब्रह्ममुहूर्त में निकल जाना राजी हो गए। फिर तो वर्षों बीत गए। फिर वह वहां से निकले नहीं।ब्राह्मण देवता रुके सो रुके। फिर उनके बेटे हुए, बेटियां हुईं, बड़ा फैलाव हो गया। कोई पचास—साठ साल बीत गए। बेटों के बेटे हो गए। तब गांव में बाढ़ आई। भयंकर बाढ़ आई! ब्राह्मण देवता बूढ़े हो गए हैं। लेकर अपने बच्चों को, नाती—पोतों को किसी तरह बाढ़ से निकलने की कोशिश कर रहे हैं। सारा गांव डूबा जा रहा है। भयंकर बाढ़ है! ऐसी कभी न देखी न सुनी। जैसे बाढ़ में से जा रहे हैं बचा कर, पत्नी बह गई। पत्नी को बचाने दौड़े तो जिस बच्चे का हाथ पकड़ा था, उसका हाथ छूट गया। उस किनारे पहुंचते—पहुंचते सारा परिवार विलीन हो गया बाढ़ में।
उस किनारे एक पत्थर की चट्टान पर ब्राह्मण देवता खड़े हैं और बाढ़ की एक बड़ी उत्तुंग लहर आती है। उत्तुंग लहर पर आते हैं विष्णु जी बैठे हुए और कहते हैं: मैं प्यासा ही हूं, तुम अभी तक पानी नहीं लाए? मैंने तुमसे पहले ही कहा था, तुम न कर सकोगे क्योंकि तुम संसार छोड़ कर भागे थे। जो छोड़ कर भागता है, उसका आकर्षण शेष रहता है। यह कथा बड़ी प्यारी है।...क्योंकि तुम संसार छोड़ कर भागे थे संसार से जाग कर ऊपर नहीं उठे थे। संसार की तरफ आंख बंद करके भागे थे। तो छोटे से काम के लिए भी संसार में जाओगे तो उलझ जाओगे। लेने गए थे जल और सारा संसार बस गया। गए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास! फिर जब कोई कपास ओटता है तो ओटता ही चला जाता है। कपास का ओटना ऐसा है, कभी पूरा नहीं होता।
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