Sunday, 31 March 2019

मौन की ताकत

बहुत दिल दुखता है
जब दुनिया दुखती रग पर उंगली रखती है
बोल है मीठे मीठे
है विष भरे
कड़वा जहर शब्द द्वारा उगलते
मजा लेते हैं
चर्चा करते हैं
जाने क्या मिलता है??
फितरत है ऐसी ,कुछ की
शब्दों का बाण छोड़ आहत करना
क्या करें
नजरअंदाज करें
प्रत्युत्तर दे
तब तो उनके जैसा ही बन जाएंगे
बढ़ावा भी देना उचित नहीं
तब किनारा कर ले
ऐसे मासूम भेडियों से
उनको उनकी औकात बता दे
बिना बोले भी
बहुत कुछ कर सकता है इंसान
मौन वह शस्त्र है
जो परेशान कर सकता है
बिना बोले उत्तर दे सकता है
मौन की भी अपनी ताकत होती है।

हमारे शब्द

*महाभारत के युद्ध के बाद*....

18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को
80 वर्ष जैसा कर दिया था... शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी !

शहर में चारों तरफ विधवाओं का बाहुल्य था..  पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और, उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को ताक रही थी ।

तभी, * श्रीकृष्ण* कक्ष में दाखिल होते है !

द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है ... कृष्ण उसके सर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं !
थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं ।

*द्रोपती* : यह क्या हो गया *सखा* ??
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

*कृष्ण* : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !
हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है..
तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी !

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए !
तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !

*द्रोपती*: सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या, उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं ।
हमारे कर्मों के परिणाम को हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं.. तो, हमारे हाथ मे कुछ नहीं रहता ।

*द्रोपती* : तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण ?

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो...
लेकिन, तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

*द्रोपती* : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

*कृष्ण*:- 👉जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ...
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती
और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का
एक अवसर देती तो, शायद परिणाम
कुछ और होते !

👉इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया...
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती
तो भी, परिणाम कुछ और होते ।
             और
👉उसके बाद तुमने अपने महल में  दुर्योधन को अपमानित किया... वह नहीं करती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता... तब भी शायद, परिस्थितियां कुछ और होती ।

*हमारे *शब्द* भी हमारे *कर्म* होते हैं द्रोपदी...

और, हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है... अन्यथा, उसके *दुष्परिणाम* सिर्फ स्वयं को ही नहीं... अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।

संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है... जिसका " जहर " उसके " दांतों " में नही, *"शब्दों " में है...

इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करिये।
ऐसे शब्द का प्रयोग करिये... जिससे, किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे।

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Thursday, 28 March 2019

एक लघुकथा

एक लघु कथा

ये कहानी आपके जीने की सोच बदल देगी!

एक दिन एक किसान का बैल कुएँ में गिर गया।
वह बैल घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं।
अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि बैल काफी बूढा हो चूका था अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।। 
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी।
जैसे ही बैल कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया। 
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया..
अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह बैल एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था। 
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एक सीढी ऊपर चढ़ आता जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह बैल कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया ।  

ध्यान रखे आपके जीवन में भी बहुत तरह से मिट्टी फेंकी जायेगी बहुत तरह की गंदगी आप पर गिरेगी जैसे कि , 
आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा
कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण आपको बेकार में ही भला बुरा कहेगा  
कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे...
ऐसे में आपको हतोत्साहित हो कर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हर तरह की गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख ले कर उसे सीढ़ी बनाकर बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

सकारात्मक रहे.. सकारात्मक जिए!

इस संसार में....
      सबसे बड़ी सम्पत्ति "बुद्धि "
      सबसे अच्छा हथियार "धैर्य"
      सबसे अच्छी सुरक्षा "विश्वास"
      सबसे बढ़िया दवा "हँसी" है
और आश्चर्य की बात कि "ये सब निशुल्क हैं "

सदा मुस्कुराते रहें। सदा आगे बढ़ते रहें

COPY PEST

Wednesday, 27 March 2019

भारतीय राजनीति के बहुमूल्य सितारे

चुनाव है
चुनौतियाँ भी है
नेता दलबदल मे लगे हैं
जिसका पलड़ा भारी
उसी के हम साथी
याद आ रहे हैं कुछ ऐसे नेता
जिन्हें काल ने असमय ग्रस लिया

राजीव गांधी ,राजेश पायलट ,माधवराव सिंधिया ,विलासराव देशमुख
प्रमोद महाजन ,गोपीनाथ मुंडे ,आर आर पाटिल
यह नेता अपनी पार्टी के निष्ठावान थे
अगर शायद ये लोग होते
तो चुनाव का रंग ही कुछ और होता

उनकी पीढ़ी मैदान मे उतरी है
पर उनका मुकाबला??
क्या जुनून
क्या जज्बा रहता था
देखने और सुनने को बेताब रहते थे
जाना तो सबको है
पर भारतीय राजनीति के ये बहुमूल्य सितारे
असमय छोड़ गए
उस कमी को तो कोई नहीं भर सकता

जिंदगी हमारी है

जीवन परिपूर्ण नहीं होता
उसे बनाना पड़ता है
सब कुछ तो हमारी इच्छा से नहीं
इस जीवनरुपी गाड़ी मे कभी ब्रेक लगता है
कभी एक्सिडेंट हो जाता है
कभी ट्रेफिक मे अटक जाती है
पर चलना नहीं छूटता
गाड़ी को रोज धोकर -पोछकर चमकाना पड़ता है
उसका ख्याल रखना पड़ता है
उसे खरोंच भी नहीं आने दिया जाता
ऐसे ही नित नई ख्वाहिशें
नित नई परेशानियों का सामना
जीने की जद्दोजहद तो करनी ही पड़ती है
गाड़ी मंहगी है ,सस्ती है
पर जिसके पास है
वह उसे जान से ज्यादा संभालकर रखता है
जीवन का भी यही फलसफा है
जो है जैसा है
हमारी जिंदगी अनमोल है
हम जैसे भी है
ईश्वर की देन है इस पृथ्वी पर
हम स्वयं को बोझ न समझे
न कमतर आके
हर ट्रेफिक पर रुके
सिगनल खुलने पर आगे बढ़े
कभी ब्रेक लग भी जाए
तो फिर नये सिरे से स्टार्ट करें
एक्सीडेंट भी हुआ तो हुआ
मरम्मत कर फिर खड़े हो जाना है
अपना रास्ता खुद चुनना है
मंजिल पर पहुंचकर ही दम लेना है
जिंदगी हमारी है
जीने का तरीका भी हमारा ही होना चाहिए

Be positive

एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था।

वहां रोज मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक दूसरे की शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेलते थे।

*रोज कोई बच्चा इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते*

*इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल  जाते,* पर...

केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था।

*एक दिन मैंने कौतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा....

*"बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन या डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती ?"*

इस पर वो बच्चा बोला...
*"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे... और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा....?*
*इसीलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूँ।*

*"ये बोलते समय मुझे उसकी आँखों में पानी दिखाई दिया।*

*आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया...*

*अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरुर रहेगी....*

वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। परन्तु ऐसा न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।

*हम कितना रोते हैं?*
कभी अपने *साँवले रंग* के लिए, कभी *छोटे क़द* के लिए,
कभी पड़ौसी की *बडी कार,*
कभी पड़ोसन के *गले का हार,* कभी अपने *कम मार्क्स,*
कभी *अंग्रेज़ी,*
कभी *पर्सनालिटी,*
कभी *नौकरी की मार* तो
कभी *धंदे में मार*...

हमें इससे बाहर आना है....
*ये जीवन है... इसे ऐसे ही जीना पड़ता है।*

*चील की ऊँची उड़ान देखकर चिड़िया कभी डिप्रेशन में नहीं आती,*वो अपने आस्तित्व में मस्त रहती है,*

*मगर इंसान, इंसान की ऊँची उड़ान देखकर बहुत जल्दी चिंता में आ जाते हैं।*

*तुलना से बचें और खुश रहें ।*
*ना किसी से ईर्ष्या, ना किसी से कोई होड़..!!!*

*मेरी अपनी मंजिल, मेरी अपनी दौड़..!!!*
           
                 ¸.•*""*•.¸
                       🌹
        😊*Be positive*😊
        COPY PEST

Tuesday, 26 March 2019

ब्रेक दे जीवन को ब्रेकअप के बाद

ब्रेकअप हो गया
यानि जीवन खत्म
निराशा के भंवर मे गोते लगाते
आत्महत्या को उतारू
जीवन इतना सस्ता है क्या??
जीवनशैली बदल रही है
विचार बदल रहे हैं
सात जन्म का रिश्ता निभाने के लिए तिल तिल मरे
किसी से प्यार की भीख मांगे
अपमान सहे
इससे तो अलग होना बेहतर है
फिर चाहे वह प्यार मे हो
विवाह जैसे पवित्र बंधन मे हो
जीवन नारकीय बने
इससे पहले ही ब्रेकअप कर ले
जीवन को नया ब्रेक दे
नया आयाम दे
बहुत मुश्किल से पैरेंट्स ने बड़ा किया है
उनका ध्यान रखें
उनके सच्चे प्यार को किसी दूसरे के फरेब की बलि चढ़ाएं
जीवन जीने के लिए है
बहुमूल्य है
उसे व्यर्थ न करें
नये सिरे से जीए
फिर उठ खड़े हो
यह तो सामान्य बात है
जीवन इस पर भारी है
वह खिलौना नहीं है
कोई भी खेल ले
फिर तोड़ दे
टूटना नहीं है
मजबूत बनना है ,मजबूर नहीं

सक्षम बनाया जाय आलसी नहीं

गर्म फिजा
हवा गर्म
तापमान उच्च डिग्री पर
इन सबसे बड़ी चुनावी सरगर्मी
वह जादू चढ़कर बोल रहा है
नित रैलियां
नित नये वादे
जनता को लुभाने की हरसंभव कोशिश
कुछ भी बाकी न रहे
लोकलुभावन वादे की भरमार
पैसे की गर्मी भी सर चढ़ कर बोल रही
खाते मे डालने को तैयार
जीवनशैली सुधारेंगे
हर गरीब की पीड़ा  को हरेंगे
इसके बदले रोजगार दे
गरीब को मुफ्तखोरी का पाठ न पढ़ाए
अगर बैठे ही सब प्राप्त
तब मेहनत क्यों ??
जीने के लिए जद्दोजहद क्यों ??
किसान का बेटा खेतों मे काम नहीं करना चाहता
पंरपरागत व्ययसाय बंद हो रहे
उन्हें बढ़ाया जाय
काम के प्रति रूचि निर्माण की जाय
उनपर खर्च किया जाय
बेकारी तो है
पर यह भी सच है कि लोग काम नहीं करना चाहते
उन्हें आरामदायक और कुर्सी वाला जाँब चाहिए
किसान का बेटा शहर मे आकर चौकीदारी करेगा
किन्तु किसानी नहीं
खेत -खलिहान मे काम करने को कोई तैयार नहीं
मजदूर मुश्किल से मिलते हैं
भारत का सबसे बड़ा व्यवसाय
खेती की यह दुरवस्था किसी से छिपी नहीं है
उसे बढ़ाने की जरुरत है
वह तो रोजगार दे सकती है
लेकिन स्वयं तो समृद्ध हो
हरियाली और दूध की नदी जब बहेगी
तब पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ेगी
वह तो खुद सक्षम होगा
यह सक्षमता कैसे लाई जाय
इस विषय पर मंथन की जरूरत है
सक्षम बनाया जाय आलसी नहीं

सक्षम बनाया जाय आलसी नहीं

गर्म फिजा
हवा गर्म
तापमान उच्च डिग्री पर
इन सबसे बड़ी चुनावी सरगर्मी
वह जादू चढ़कर बोल रहा है
नित रैलियां
नित नये वादे
जनता को लुभाने की हरसंभव कोशिश
कुछ भी बाकी न रहे
लोकलुभावन वादे की भरमार
पैसे की गर्मी भी सर चढ़ कर बोल रही
खाते मे डालने को तैयार
जीवनशैली सुधारेंगे
हर गरीब की पीड़ा  को हरेंगे
इसके बदले रोजगार दे
गरीब को मुफ्तखोरी का पाठ न पढ़ाए
अगर बैठे ही सब प्राप्त
तब मेहनत क्यों ??
जीने के लिए जद्दोजहद क्यों ??
किसान का बेटा खेतों मे काम नहीं करना चाहता
पंरपरागत व्ययसाय बंद हो रहे
उन्हें बढ़ाया जाय
काम के प्रति रूचि निर्माण की जाय
उनपर खर्च किया जाय
बेकारी तो है
पर यह भी सच है कि लोग काम नहीं करना चाहते
उन्हें आरामदायक और कुर्सी वाला जाँब चाहिए
किसान का बेटा शहर मे आकर चौकीदारी करेगा
किन्तु किसानी नहीं
खेत -खलिहान मे काम करने को कोई तैयार नहीं
मजदूर मुश्किल से मिलते हैं
भारत का सबसे बड़ा व्यवसाय
खेती की यह दुरवस्था किसी से छिपी नहीं है
उसे बढ़ाने की जरुरत है
वह तो रोजगार दे सकती है
लेकिन स्वयं तो समृद्ध हो
हरियाली और दूध की नदी जब बहेगी
तब पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ेगी
वह तो खुद सक्षम होगा
यह सक्षमता कैसे लाई जाय
इस विषय पर मंथन की जरूरत है
सक्षम बनाया जाय आलसी नहीं

Monday, 25 March 2019

याद आई उन दिनों की

वसंती हवा चल रही है
पत्ता -पत्ता डोल रहा है
डाली -डाली झूम रही है
मन भी यादों के भंवर मे गोते लगा रहा है
वह शमां याद आ रहा है
जब हम -तुम घंटों बैठे रहते थे इसी बगीचे में
वह चुपचाप शांत रहता
हम भी एक -दूसरे को निहारते रहते
कभी खड़खड़ाहट होती
तब हम भी सचेत हो जाते
शब्द तो होते नहीं थे
मौन की भाषा होती थी
पर उसमें प्रेम टपकता था
इसलिए बिना कहे समझ आ जाती थी
इजहार की जरुरत नहीं पड़ती थी
न इकरार न इजहार
बस नजरों का नजराना
खिले चेहरे रहते
लाख पहरा होता
कभी बगीचा
कभी समुंदर
यही आशियाना होता
वक्त की तो खबर नहीं रहती थी
आज भी वही हम है
वही वक्त है
बस थोड़ी उम्र बढ़ गई है
प्यार भी और गहरा गया है
सरसराती हवा झोंके देती जाती है
ठंड का एहसास करा जाती है
फिर उन्हीं दिनों की याद दिला जाती है

लालकृष्ण अड़वाणी का राजकीय अस्त

भाजपा के भीष्म ,लालकृष्ण अड़वाणी
दो सीट से पार्टी को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने वाले
उनका राजकीय अस्त हुआ है
गांधी नगर की सीट भी ले ली गई
पूरी तरह से किनारे कर दिया गया
मोदी राज आते ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए थे
पार्टी का निष्ठावान सेवक का इस तरह निष्कासन
उगते  सूर्य की  सब पूजा करते हैं
पर सूर्यास्त भी अपनी लालिमा बिखेरते ही जाता है
सूर्यास्त का सौंदर्य सब कैमरे मे लेने को बेताब
पर अड़वाणी जी की बिदाई इस तरह
भाजपा रथ को देश भर पहुंचाने वाले को रथ से पूरी तरह उतार दिया गया
मार्ग दर्शक मे शामिल कर उनको मौनी बाबा बना दिया
पार्टी और लोग उनके योगदान को भूल गए
या सत्ता के लालच मे मुंह बंद हो गया
सही भी है
कुर्सी की खातिर सब संभव है
जमीर की तो बात ही नहीं आती
बूढ़े हो गए लोग
समाज से परिवार से उपेक्षा
तब पार्टियां इससे अलग तो नहीं

पाक जैसा पडो़सी किसी को न दे

एक कहानी सुनी थी
एक आदमी था ,ईश्वर उसकी भक्ति से प्रसन्न हो उससे वरदान मांगने को कहे
पर यह शर्त थी कि जो उसे मिलेगा उसके पड़ोसी को दूगुना मिलेगा
वह तो सोच मे पड़ गया
बहुत सोच विचार कर उसने अपनी एक आँख फोड़ने को कहा
ताकि उसके पडो़सी की दोनों आँख न रहे
संपत्ति या और कुछ मांगता तो घाटे मे रहता
इस सोच को बदलनी है
पडो़सी खुशहाल रहेगा
तभी वह हमें शांति से रहने देंगा
भूखा और लाचार होगा
तब भी हमें ही परेशानी
उधार ही मांगता रहेगा
जलता रहेगा
परेशान करता रहेगा
झगड़ता रहेगा
पडो़सी बहुत मायने रखता है
तभी तो येसु मसीह ने कहा है
पड़ोसी से प्यार करो
सही भी है
यह ,वह है
जो हमेशा हमारे आसपास ही रहता है
हमसे अवगत रहता है
इसलिए अगर मांगना है
तो अच्छा और खुशहाल पड़ोसी मांगे
आज अगर पाकिस्तान अच्छा होता
पडो़सी धर्म निभाता
तब हमारे लोगों का जीवन नहीं जाता
प्रेम और सौहार्द्र रहता
तब हम भी शांतिपूर्ण तरीके से विकास करते
हमारी शक्ति युद्ध के लिए नहीं होती
मानव कल्याण के लिए होती
पर मजबूरी है
करें क्या??
वाजपेयी जी ने एक बार कहा था
हम पडो़सी तो नहीं बदल सकते
भारत बार -बार कोशिश करता है
पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता
तभी तो यह कहना पड़ता है
भगवान ऐसा पडो़सी किसी को न दे

अविश्वास की दुनिया

यह दुनिया बड़ी जालिम है साहब
न सीधे चलती है
न चलने देती है
उल्टे भी नहीं चल सकते
तब भी छोड़ती नहीं
हर वक्त तलाश करती रहती है
मौका ढूढ़ती रहती है
कब किसमें क्या ऐब ??
बुराई करने मे पारंगत
बात का बतंगड़ बनाने मे महारथी
न जानती है
न समझती है
बस तोहमत लगाने को तैयार
कब किस बात को क्या से क्या बना दें
कब किसको नीचा गिरा दे
कब किसपर दोषारोपण कर दे
विश्वास नहीं किया जा सकता
जबान मे मिठास भर कर सब उगलवा लेंगे
फिर ढिंढोरा पीटेंगे
सहानुभूति के नाम पर
संभल कर रहना है
यहां कदम -कदम पर भेडिये घात लगाए बैठे रहते हैं
वार करने के लिए
जो दिखता तो नहीं है
पर खतरनाक साबित हो जाता है
बचे ऐसे लोगों से
जल्द विश्वास न करें
कब धोखा देंगे
कब दामन छोड़ेंगे
कब फब्तियां कसेंगे
आप का हितैषी बन दूर खड़े तमाशा देखेंगे
मजा लेंगे
हंसेंगे -मुस्कराएंगे
सतर्क रहे
प्रेम सबसे करें विश्वास नहीं

दिल मानता नहीं

दिल कुछ कहता है
दिमाग कुछ कहता है
इन दोनों के बीच दंव्द्ध चलता रहता है
एक कहता है मेरी सुनो
दूसरा कहता है मेरी मानो
कब कौन किस पर भारी पड़ जाय
यह तो वक्त पर निर्भर है
कब दिल ,दिमाग पर हावी हो जाय
भावना के वश मे हो जाय
कहा नहीं जा सकता
अक्सर होता वही है
हम जानते हैं
समझते भी हैं
फिर भी भावनाओं के वशीभूत हो जाते हैं
एक गलत निर्णय सारी जिंदगी को बदल देता है
तब पछतावा होता है
पता था हमें
फिर भी वह कदम उठाया
अंजान बने रहे अंजाम से
फिर रो रहे हैं
कुढ़ रहे हैं
अब भी दिल की ही सुन रहे हैं
दिमाग कह रहा है
छोड़ो जो हुआ सो हुआ
अभी बहुत कुछ बाकी है
सब खत्म तो नहीं हुआ
जिंदगी नये सिरे से शुरू हो सकती है
पर दिल क्यों माने यह बात
वह तो इमोशनल फूल है
हमें भी बना रहा है
हमें उलझा रहा है
रोक रहा है
आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा
उसी मे अटका रखा है
इन दोनों के बीच फंस जाते हैं लोग
एक कहता है छोड़ो
दूसरा जकड़ रखा है
अब क्या करें ??
जब दिल मानता ही नहीं

अकेलापन V/S एंकात

Pls read this.. it's a beautiful piece..

*Akelaapan*
v/s
*Aikaant* from the Gita

Here goes a humble translation

Loneliness v/s Solitude

*'अकेलापन'* इस संसार में सबसे बड़ी सज़ा है.!
                 और *'एकांत'*
   इस संसार में सबसे बड़ा वरदान.!!

Loneliness is the biggest punishment in this world!
And Solitude is the biggest gift/blessing!!

       ये दो समानार्थी दिखने वाले
               शब्दों के अर्थ में
    . आकाश पाताल का अंतर है।

These two words appear so similar, yet cannot be more apart, like heaven and hell!

        *अकेलेपन* में छटपटाहट है
          तो *एकांत* में आराम है।

Loneliness is suffering, and Solitude is relaxing!

         *अकेलेपन* में घबराहट है
             तो *एकांत* में शांति।

Loneliness is fear and solitude is Shanti/peace!

           जब तक हमारी नज़र
      बाहरकी ओर है तब तक हम.
       *अकेलापन* महसूस करते हैं

Till we look for solace in the outer world we will experience Loneliness!

                       और
   जैसे ही नज़र भीतर की ओर मुड़ी
   तो *एकांत* अनुभव होने लगता है।

But when you look for it within you, you start experiencing solitude!

          ये जीवन और कुछ नहीं
                     वस्तुतः
      *अकेलेपन* से *एकांत* की ओर
              एक यात्रा ही है.!!

This life is nothing but a journey from loneliness to solitude!

              ऐसी *यात्रा* जिसमें
    *रास्ता* भी हम हैं, *राही* भी हम हैं
       और *मंज़िल* भी हम ही हैं.!!

A journey, in which the path is us, the traveller is also us and so is the destination !
             COPY PEST

Sunday, 24 March 2019

जनता हमेशा बातों मे आ जाती है

चुनाव आ गए हैं
नेता जग गए हैं
जनता सबको याद आ रही है
फेरी लगना शुरू है
हर गली और नुक्कड़
सभाओ का दौर चल रहा
नेताजी दिन रात दौड़ लगा रहे
घर -घर जा रहे
हाथ जोड़ रहे हैं
वादे कर रहे हैं
जो पहले वाले नहीं हुए
उसका कारण बता रहे हैं
विपक्षी को जम कर कोस रहे हैं
जो मन मे आया वह बके जा रहे हैं
जबान फिसली जा रही है
काम को छोड़ सब बातें हो रही है
विकास दूर खड़ा हंस रहा है
सोच रहा है
हर पांच साल बाद यही सब होता है
जनता भी बातों मे आ जाती है
वह भी उनके वादे भूल जाती है
सारा दोष नेता पर ही क्यों??
जनता क्यों बात मे आती है
क्यों जाति -धर्म पर जाती है
खाने -पीने की लालच मे पहले वाला हिसाब करना भूल जाती है
देखती - परखती नहीं
बस बातों मे आ जाती है
असली मकसद तो भूल ही जाती है
उलझ जाती है
वोट दे आती है
नेताजी जीत जाते हैं
मजे करते हैं
गाड़ी मे घूमते हैं
मलाई खाते हैं
भोली जनता देखती रह जाती है
फिर उल्लू बन गई
यह सोच पछताती है
फिर पांच साल इंतजार करती है
जैसे ही चुनाव आता है
फिर भूल जाती है
नेता फिर जीत जाते हैं
ऐश करते है
अपना विकास करते हैं
पहले वह हाथ जोड़े
अब जनता हाथ जोड़ती है
उसके ही वोट से वह मालिक बन बैठा है
यह वह समझ  नहीं पाती
ठगी जाती है हमेशा
फिर भी बात मे आ जाती है

जिंदगी

कुछ अपनी कहो
कुछ हमारी सुनो
एक -दूसरे के सुख -दुःख. बांटो
जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं यारों
कब साथ छोड़ जाय
कब धोखा दे जाय
उससे पहले ही साथ हो ले
हंस ले
गा ले
मुस्करा ले
मौज मजा कर ले
जी भर कर अपनो पर प्रेम लुटाए
हर पल का लुत्फ उठाए
जब तक है साथ यह
तब तक जीने का आंनद तो उठा ले

Saturday, 23 March 2019

चुनाव सर पर है

चुनाव का माहौल
रैलियों की भरमार
हर नेता की सभा मे भीड़
हर नेता के पीछे चलते लोग
आखिर इतने लोग कहाँ से आते हैं
नेता जी सड़क पर गाड़ी मे
भीड़ उनके साथ
पता चलता है
लोग वही है
नेताजी अलग हैं
पार्टी अलग है
पैसा मिला
खाना पीना मिला
बस मे भरकर ले गए
बस हमको और क्या चाहिए
तब चुनाव के दिन जो मीट मछली खिलाएंगे
शराब पिलाएंगे
वोट उनको जाएगा
वोटर को नेता इस तरह खरिदते हैं
राज करते हैं
वोटर शायद जानता भी नहीं
हमारा वोट इतने सस्ते मे खरिदा गया
और मलाई कोई और खाएगा
पांच साल तक मौज करेगा
फिर चुनाव आएगे
फिर हमारे हाथ जोड़े जाएंगे
हम इस तरह सालों साल बेवकूफ बनते रहेंगे
और यह बेवकूफ बनती है जनता
जीत कर नेता गाड़ी में घूमते हैं
जनता सड़क किनारे हार लेकर स्वागत में खड़ी रहती
यह है भीड़तंत्र का सच