Tuesday, 30 November 2021

36______63 का आंकड़ा

36  -----63
छत्तीस और तीडसठ
छत्तीस का आंकड़ा
एक दूसरे के विपरीत
एक उत्तर तो दूसरा दक्षिण
दोनों के विचार अलग अलग
पति- पत्नी में
दोस्तों में
जरूरी नहीं दुश्मनी में ही यह आंकड़ा हो
दोनों एक जगह ज्यादा देर नहीं रह सकते
वाद - विवाद अवश्यभांवी है

यौवन में जिनमें छत्तीस का आंकड़ा
वृद्धावस्था में वही तीडसठ का आंकड़ा
जो मुंह फेरकर रहते थे
वहीं बदल जाते हैं
अब एक - दूसरे की जरूरत बन जाते हैं
एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता
आज दोनों सामने और साथ बैठते हैं
एक नहीं हो तो दूसरा अविचलित हो जाता है
यह उम्र का तकाजा है
जो छत्तीस को तीडसठ में बदल डालता है

सकरात्मक दृष्टिकोण

एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पीछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पुछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पुछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?"
दुकानदार एक शांत व्यक्ती है, उसने जीवन के कई उतार चढाव देखे होते है। उन्होने बडे प्यार और अपनत्व से बच्चे से पुछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।
दुकानदार वो सब लेकर युं गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।
सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"
दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुड़िया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापिस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बडी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का नौकर देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पुछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सिपों के बदले मे दे दी ?"
दुकानदार हंसते हुये बोला,
"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?
पर जब वह बडा होगा ना...
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सिपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,
"यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भरा हुआ है।"
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।
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बीस का सौ पचास का ढेड सौ

बीस का सौ पचास का ढेड सौ
बालकनी का दो सौ
अभी शुरू होने वाला है
बस दो ही टिकट बची है
यह वह जमाना था
जब ब्लैक में टिकट मिलते थे
अगर पहले बुकिंग नही कराई
चार दिन दो दिन एक हफ्ता
अचानक फिल्म देखने का मन हुआ
टिकट खिड़की के बाहर लाईन में लगना
और ये ब्लैक वाले आसपास मंडराते रहते थे
कभी-कभी तो दो - चार लोग पीछे हो लेते थे
वैसे यह कानूनन सही नहीं था
तब भी होता ही था

आज हम घर बैठे टिकट बुक करा लेते हैं
टिकट खिड़की पर भी कोई भीड़ नहीं
कौन सी पिक्चर कब आई कब गई
यह भी पता नहीं चलता
थियेटर खाली पडे रहते हैं
उन दिनों एक ही थियेटर में महीनों एक ही पिक्चर चला करती थी
सुना है मुगलेआजम जब लगी थी तो लोगों ने टिकट खिड़कियों के शीशे तोड दिए थे
शोले तो हमारे समय में ही मिनर्वा  में लगी थी
खचाखच भरा रहता था
अंदर और बाहर
देखने वालों की भी टिकट लेने वालों की भी
अब वह बात नहीं रही
तब फिल्म देखना एक उत्सव से कम नहीं था
पूरा परिवार जाता था
नवविवाहिता जोड़े और प्रेमी - प्रेमिका
काॅलेज बंक कर छात्र और छात्राएँ
सब छुपते छुपाते
घर वालों को पता न चले
तब यही ब्लैक वाले काम आते थे
बीस का पचास देने के बाद भी खुशी मिलती थी जैसे कोई फतह हासिल कर लो
आज भी जाते हैं कभी कभार
तब वह
बीस का पचास
पचीस का सौ
बालकनी का दो सौ
यह आवाज गूंजती है

साजन का साथ

चूडियां कलाई में
झनझनाती है
शोभती है
टूटती भी है
उसका कोई गम नहीं
पहनते पहनते हाथ भी छिल जाते हैं
घाव भी हो जाता है
वह चुभता नहीं
दर्द नहीं देता
हर बार हाथ आतुर पहनने के लिए
नये नये फैशन के
नये नये रंग के
मैचिंग के कपडों की
उसके पीछे कुछ खास बात है
वह है साजन का प्यार
जब वह कलाई पकड़ते हैं
तब पहले हाथ में यही तो आती हैं
वह निहारते हैं
अच्छा लगता है
जब उनके होठों पर हंसी आ जाती है
यह खनखनाती है
तब ऐसा लगता है
साजन का मेरा हाथ पकड़ना इसे भी भाता है
यह निशानी है सुहाग की
साजन के प्यार की
यह बजती रहें
साजन का साथ रहे
हाथों में हाथ रहें।

ऐ खुदा रहम कर

देने को तो बहुत कुछ दिया है तूने ये खुदा
तब भी कुछ ऐसा है
जो अब तक मिला नहीं
कभी-कभी लगता है
यह हो जाता तो
लेकिन मैं खुदा तो हूँ नहीं
जब तक तेरी नियामत नहीं
तब तक कुछ हासिल नहीं
फिर भी मन में विश्वास है
एक आस है
कभी तो तू मुझ पर रहम करेंगा
मेरी झोली में खुशियाँ डाल देगा
बडी शिद्दत से इंतजार है
उस वक्त का
जब तू अपनी कृपा बरसाएगा
मेरी खाली झोली भर देगा
मेरे बच्चों पर खुशियाँ बरसाएगा
एक माँ इससे ज्यादा और क्या मांग सकती है
तू तो जानता है न
माँ की खुशी बच्चों की खुशी में होती है
वे फले - फूले , लहलहाए
उन्हें सारे जहान की खुशियाँ मिले
मेरा वंश बेल आगे बढे
जीवन में उन्नति करें
यही सब चाहती हूँ
अपने और अपने बच्चों के लिए

गलती को स्वीकार कर लेना ही बडप्पन है

कभी-कभी गलती किसी और की
दोषारोपण किसी और पर
कैसा लगता होगा
व्यथा तो होती ही है
शायद जिसकी गलती है
वह भी तो चैन से नहीं बैठता होगा
कोई देखें  या न देखें
अंतरात्मा तो जरूर देखती है
वह शख्स खुश कैसे होता होगा
अगर हाड - मांस के शरीर में दिल है तो
दिल कोमल होता है
खूबसूरत होता है
वह किसी को दगा कैसे दे सकता है
किसी और के कंधे पर बंदूक रख चलाने से बेहतर अपने गिरेबान में झांक ले
गलती हो गई तो हो गई यार
क्या फर्क पड़ता है
भगवान नहीं इंसान है हम
गलती को स्वीकार कर लेना ही बडप्पन है ।

मर्द को भी रोना आता है

मैं रोना चाहता था जी भर कर
पर मुझे रोने नहीं दिया गया
सबके समान मैं भी तो बाहर आया था
माँ के गर्भ से रोते हुए
बस उसके बाद तो रोने ही नहीं दिया गया

छोटा बच्चा था
जब गिरता पडता था
तब कहा जाता था
बहादुर बेटा है
क्या लडकियों की तरह ऑसू बहा रहा है

जब थोड़ा बडा हुआ
कभी माँ - बाप की डाट
कभी टीचर की डांट
तब भी दोस्तों से यह सुनना
अरे । लडकी है क्या
जो ऑसू बहा रहा है

नौकरी की
बातें सुनी
तब भी नहीं
ऑसू को पी जाना था
दूसरों को नहीं दिखाना था

ब्याह हुआ
बिदाई वक्त पत्नी फूट फूट कर रो रही थी
उस वक्त भी मैं संजीदा हुआ
तुरंत संभल उसको संभाला
सबको संभालने और ऑसू पोछने की जिम्मेदारी मेरी
वह माँ हो या पत्नी

बेटी की बिदा की बेला
तब भी न रो सका
तैयारियों में व्यस्त
चिंतित और परेशान
सब ठीक-ठाक निपट जाए
चैन की सांस लूं

रोना भी सबके नसीब में नहीं
हमारे नसीब में तो
हर गम पी जाना
क्योंकि हम मर्द है
धारणा है समाज की
मर्द को दर्द नहीं होता
दर्द  तो हमें भी होता है
ऑसू तो हमारे भी निकलते हैं
पर हम उसे दिखाते नहीं
नहीं तो सुनना पडेगा
मर्द का बच्चा होकर भी
औरत की तरह ऑसू बहा रहा है

कहाँ जाएँ बेटियां

खून से लथपथ
जली हुई
बलात्कार
सडक पर फेंकी हुई
हद है हैवानियत की
शैतानियत की
पाशविकता की
किस तरह से यह इंसान है
एक युवती के साथ इस तरह का दुष्कर्म
यह साधु और संतों का देश
मानसिकता इतनी विकृत
कहाँ जाएँ बेटियां
क्या करें
फिर घूंघट में कैद हो जाए
औरते घर से बाहर न निकले
डरती रहे कि
पता नहीं किस वेष में ये नराधम मिल जाएं
कब कोई उनकी हवस का शिकार हो जाए
कहीं न कहीं तो कमी है संस्कारो में
माता पिता की परवरिश में
समाज की मानसिकता में
औरतों को देखने के दृष्टिकोण में
सोच और विचार में
जब तक इस पर प्रहार नहीं होगा
इनको जड से खत्म नहीं किया जाएगा
तब तक यह होता रहेगा
भारतीय बदलाव नहीं चाहते
बेटा है घर का चिराग है
लडका है पुरूष है
वह कैसा भी है चलेगा
घी के लड्डू टेढे भी भले
नालायक ,आवारा ,शराबी ,नशेडी
फिर भी वह पुरुष है
कहाँ है इन हैवानो के माता-पिता
कहाँ है इनका परिवार
कहाँ है इनका इज्जतदार समाज
बहिष्कृत करें
कानून तो सजा देगा ही
इसके पहले यह दे
हाथों में मोमबत्तियाँ नहीं मशाल होना चाहिए
ताकि वही पर उनको जला दिया जाए
जिस तरह से इन्होंने कैरोसीन डाल एक
होनहार ,निरपराध युवती को जलाया है
उसको मौत दी है वह भी नृशंस
ये पापी तो नरक के भी हकदार नहीं
शर्म आती है
ऐसी सोच और ऐसे लोगों पर
घृणा उत्पन्न होती है
मानव जाति पर कलंक हैं

Monday, 29 November 2021

Who Can Forget Her -- Anjali Kanthe

Who can forget her ?

This lady with nerves of steel is none other than Anjali Kanthe, a staff nurse at Cama and Albless Hospital for women and Children who was doing night shift from 8pm to 8am at the ante-natal care ward, where 20 pregnant women were due for their delivery.

However, the night of 26th November in 2008 changed drastically as two terrorists - one of them Ajmal Kasab - had entered the hospital premises. They shot two guards, who lay in a pool of blood at the entrance and injured a nurse.

Realising that they were climbing up to the first floor, Anjali  jumped into action and shut the heavy double doors of the ward, sealing the room from harm.

She somehow managed to move the 20 pregnant women and some of their family members to the pantry at the far end of the ward and shifted the injured nurse to the casualty ward. She then made a call to the duty doctor to alert the police.

The building reverberated with every grenade explosion as the terrorists exchanged fire from the terrace with the police force below the building.

Meanwhile, one of the two hypertensive women in the ward went into labour. Anjali with her quick thinking and timely action, shifted the patient to the delivery ward on the second floor and helped doctors deliver the baby in a quiet room, lit by only one tubelight.

After the terrorist attacks ended on November 28th,  Anjali was summoned after a month to help identify Kasab, the lone terrorist survivor.. After initial reluctance, she agreed and recognised him.

She also testified against Kasab in the trial, wearing her nurse uniform and declaring that she derives her strength from the uniform.

A year after the attacks, she realised she had to live to look after her patients and keep them safe. She was in charge of them. But she couldn't forget the incident.  For almost a month, even the slightest noise would disturb  her and she would wake up with a start at night. She was counselled by the matron at the hospital, not given heavy cases or night shifts after the attacks.

What was commendable about her was the fact that when she was on duty, she didn’t for a moment panic, break down or feel scared. The patients were her responsibility and she had to care for them. So she  behaved as the uniform demanded of her!

People idolize the wrong people. They find inspiration in cricketers, film stars and even politicians. People fail to recognize those who truly deserve the respect and recognition in our society. There are so many stories of courageous Indians who worked towards the betterment of the society but have remained untold and unheard by society.  Their life is an inspiration for all of us and it’s time that we give them the recognition they deserve.
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*Forwarded as received*

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मन तो नहीं बदला है

तुम जैसी भी हो
मुझे पहली जैसी ही लगती हो
उम्र का तकाजा है
बदलाव आना स्वाभाविक है
मन तो नहीं बदला
वह तो पहले जैसा ही है
यह बालों की सफेदी
यह चश्मा लगी हुई ऑखे
कुछ टूटे हुए दांत
लडखडाते हुए पैर
यह तुम्हारे अकेले का नहीं
हमारा भी यही हाल है
तब क्यों सोचना
न मैं वह रहा
न तुम वह रही
शरीर पर तो किसी का बस नहीं
मन तो नहीं बदला है
तुम्हारे बालों की सफेदी शुभ्र चांदी जैसी लगती है
ऑखों का चश्मा बताता है तुम कितनी जानकार हो
दांतों की पोपली हंसी मन भाती है
पैर की बात न पूछो
जब चलती हो
तब गाने का मन करता है
   तौबा यह मतवाली चाल
कभी-कभी हंसी आती है
तुम जब कहती हो
लगता है
बुढापे में सठिया गया हूँ
सठियाया नहीं हूँ
सच से रूबरू हूँ
यह साथ केवल जवानी तक का तो नहीं
जन्मों का साथ है
वह हर हाल में निभाना है

वह होता है लडका

लडका होना आसान नहीं
कहने को तो घर का लाडला
होता है जिम्मेदारियों से भरा
घर में कोई मेहमान आए
उसको लाने और ले जाने का काम
नाश्ता- मिठाई की दुकान पर जाना
खडे रह नाश्ता - पानी करवाना
नाज - नखरे उठाना
युवा बहन को की सुरक्षा का भार
उसकी शादी में बाहर खडे रहकर मेहमानों का स्वागत
उसकी ससुराल में बार-बार भेट  करने जाना
तीज - त्यौहार पर सौगात लेकर जाना
रिश्ते- नाते की शादी - ब्याह,  मरनी- जीनी अटैन्ड करना
अचानक धनिया - मिर्ची और दही खतम तब दुकान जाना
यह तो हुआ ही
कहीं गली - नुक्कड़ पर बैठना नहीं
मटरगश्ती नहीं करना
नहीं तो आवारा कहलाना
सर नीचे कर आओ और जाओ
माता-पिता की इज्जत का ध्यान रखो
नाम रोशन करने की जिम्मेदारी भी उसकी
बेकार नहीं बैठ सकता
नहीं तो घर वालों के साथ समाज के भी ताने
काम करना है
अपने पैरों पर खडा होना है
घर संभालना है
सब करना है
और सबसे दब कर रहना है
फिर वह कोई भी हो
बहन हो माँ हो पत्नी हो
हर किसी की जरूरत पूर्ण करने की जिम्मेदारी
कर्तव्य की बलिवेदी पर जो चढता है
वह होता है लडका

समय सबकी बोलती बंद करा देता है

कितना असहाय हो जाता है आदमी
जब बुढ़ापा घेर लेता है
शांत न बैठने वाला व्यक्ति
इधर-उधर डोलने वाला व्यक्ति
जोर जोर से चिल्लाने वाला व्यक्ति
किसी की बात न सुनने वाला
अचानक चुप हो जाएं
तब सचमुच बुढापा आ गया

आज एक ऐसे शख्स से मिली
जो बहुत प्रेमल स्वभाव के
रिश्ते में चाचा हैं
बहुत दिनों के बाद मिलना हुआ
घर के सब लोग बात कर रहे थे
वह भी कर रहे थे
पर हमारी सुन और समझ नहीं  पा रहे थे
मुझे पता चल रहा था पर अंजान बन रही थी
अचानक पीडा बाहर आ ही गई
क्या करू और क्या बोलूं
जब सुन ही नहीं पाता हूँ
बहुत लाचार हो गया हूँ

याद आया हमारी माता जी भी कम सुनती है
पर स्वीकार करने को तैयार नहीं
मशीन लगाने को तैयार नहीं
साथ रहने वाले को जोर जोर से चिल्लाना पडता है
इतना कि वह आदी हो जाता है
अचानक वह धीरे से कहती है
इतना चिल्ला क्यों रही है
तब अपने पर ही कोफ्त हो जाती है

यह समय है
किसी को नहीं छोड़ता
सबको किसी न किसी रूप में अपने फंदे में जकड़ ही लेता है
कभी लाठी का सहारा
कभी कान की मशीन
कभी दांत का डेंचर
कभी ऑख का चश्मा
कभी घुटनों पर नी कैप
और न जाने क्या क्या

जब अपना ही शरीर अपना साथ छोड़ना शुरू कर देता है
वह अनुभव कितना दुखदायी
समय सबकी बोलती बंद करा देता है

मैं पुरूष हूँ

मैं पुरूष हूँ
यह बात तो सौ प्रतिशत सत्य
पर मैं और कुछ भी हूँ
एक पुत्र हूँ
एक भाई हूँ
एक पति हूँ
एक पिता हूँ
और न जाने क्या - क्या हूँ
मेरे पास भी दिल है
मैं कठोर पाषाण नहीं
जो टूट नहीं सकता
मैं बार बार टूटता हूँ
बिखरता हूँ
संभलता हूँ
गिरकर फिर उठ खडा होता हूँ
सारी दुनिया की जलालत सहता हूँ
बाॅस की बातें सुनता हूँ
ट्रेन के धक्के खाता हूँ
सुबह से रात तक पीसता रहता हूँ
तब जाकर रोटी का इंतजाम कर पाता हूँ
घर को घर बना पाता हूँ
किसी की ऑखों में ऑसू न आए
इसलिए अपने ऑसू छिपा लेता हूँ
सबके चेहरे पर मुस्कान आए
इसलिए अपनी पीड़ा छुपा लेता हूँ
पल पल टूटता हूँ
पर एहसास नहीं होने देता
मैं ही श्रवण कुमार हूँ
जो अंधे माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला था
मैं ही राजा दशरथ हूँ
जो पुत्र का विरह नहीं सह सकता
जान दे देता हूँ
माँ ही नहीं पिता भी पुत्र को उतना ही प्यार करता है
मैं राम भी हूँ
जो पत्नी के लिए वन वन भटक रहे थे
पूछ रहे थे पेड और लताओ से
तुम देखी सीता मृगनयनी
मैं रावण भी हूँ
जो बहन शूपर्णखा के अपमान का बदला लेने के लिए साक्षात नारायण से बैर कर बैठा
मैं कंडव  त्रृषि हूँ जो शकुंतला के लिए गहस्थ बन गया
उसको बिदा करते समय फूट फूट कर रोया था
मेनका छोड़ गई
मैं माॅ और पिता बन गया
मैं सखा हूँ
जिसने अपनी सखी की भरे दरबार में चीर देकर लाज बचाई
मैं एक जीता जागता इंसान हूँ
जिसका दिल भी प्रेम के हिलोरे मारता है
द्रवित होता है
पिघलता है
मैं पाषाण नहीं पुरुष हूँ

मैं किसान हूँ

किसान हूँ
किसी का दिया नहीं खाता हूँ
परिश्रम करता हूँ
खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ
धूप में पसीना बहाता हूँ
ठंडी और गर्मी के थपेडे  सहता हूँ
बारिश के अंधड - तूफान का सामना करता हूँ
प्रकृति के प्रकोप सहता हूँ
बंजर मिट्टी को उपजाऊ बनाता हूँ

मैं अन्नदाता हूँ
अन्न उगाता हूँ
पूरे संसार का पेट भरता हूँ
मैं किसी की दया नहीं
अपना हक चाहता हूँ
मुझे उचित मूल्य मिले मेरी फसल का
उचित मुआवजा मिले

मैं कोई सरकार का नौकर नहीं
वेतन और बोनस नहीं लेता हूँ
मेहनत मैं करता हूँ
लाभ दूसरे उठाते हैं
मुझसे टमाटर दो रूपये किलो
बाजार में चालीस रूपये
सब दूसरे की जेब में

मैं व्यापारी नहीं हूँ
पर किसान जरूर हूँ
मेरी जरूरत सभी को है
मैं मिट्टी में सोना उगाता हूँ
सोनार नहीं हूँ
तभी तो उस सोने को औने पौने दामों में बेच देता हूँ

अब तक तो मैं अंजान था
अब मुझे अपनी कीमत समझ आ रही है
अब मुझे फंसना नहीं है
ज्यादा नहीं पर
हक और उचित मूल्य जरूर चाहिए
अब मैं चुप नहीं बैठूगा
मुझे लाचार और कमजोर न लेखा जाए
मेरी काबिलियत का मूल्यांकन होना चाहिए

हमारी पाठशाला

आओ- आओ हमारी पाठशाला ,अपनी पाठशाला
आज है पाठशाला की छटा निराली
मेला लगा है मनभावन
बच्चे ,बूढे ,जवान ,महिला ,सबका स्वागत
मौज- मस्ती करो,नाचो- गाओ
खाओ- पीओ ,धूम मचाओ ,झूले झूलो ,गेम खेलो
पाव- भाजी ,बिरियानी , सेव- पुरी ,भेलपुरी
देशी- विदेशी सब व्यंजन  , चाइनीज भी ,फ्रेंकी भी
गोला से लेकर थम्स तक
गर्म चाहे ठंडा ,सब है हमारे यहॉ
कडक गर्म चाय- कॉफी और ठंडी- ठंडी आईसक्रीम भी
रंगबिरंगी लाईट और गुब्बारों से सजा लॉन हमारा
हरियाली और बिजली का खेल
न देखा होगा ऐसा मेल
डी ं जें ं भी है ,गूंजती संगीत की लहरियॉ भी
अपनों के साथ आओ ,पुराने मित्रों को बुलाओ
मस्त महफिल जमाओ ,मेले की रौनक बढाओ.
खाओ - खिलाओ ,हुडदंग मचाओ
श्यामा भी आओ ,अफसाना भी आओ
रॉर्बट भी आओ ,रूस्तम भी आओ.
चिंकी - मिंकी ,भोलू- गोलू
सब मिलकर आओ ,मेले की शोभा बढाओ
मौज- मजा करो और खुशी- खुशी घर जाओ

Sunday, 28 November 2021

साथ अपनों का

वहाँ तुम  अकेले
यहाँ मैं अकेला
हैं साथ में दुनिया का रेला
हर तरफ है भीड़
उस भीड़ में भी हम अकेले
जब साथ हो कोई अपना
तब जहां भी लगता प्यारा
जब अपना ही कोई नहीं
तब हर कोई लगता बेगाना
यह दुनिया है
चलती रहेगी
हंसती रहेगी
खिलखिलाती रहेगी
बतियाती रहेगी
बस हमको रास नहीं आती
जब साथ अपना न हो
तब कैसी हंसी
कैसा मुस्कराना
कैसा बतियाना
उसका मजा तो साथ रहकर ही आता है ।

चुनाव के कारण तो नहीं

किसी ने न गोली चलाई
न किसी ने गाडी चढाई
दुर्घटना तो हुई
जान भी गई
उसकी भरपाई कैसे

उनकी मांग मान ली गई
कानून वापस ले लिया गया
सात सौ जाने गई
उसका क्या

साल भर होने को आ रहा है
अपना घर - बार छोड आंदोलन पर बैठे हैं
कोई खुशी में तो नहीं
ठीक है जो हुआ सो हुआ

पर एक बात समझ में नहीं आती
सरकार वास्तव में झुक गई
सरकार को अपनी गलती समझ आ गई
दवाब में आ गई
चुनाव सर पर है
कहीं असली वजह यह तो नहीं

अगर यह बात है तो यह लोकतंत्र के लिए घातक है
अगर कानून सही था भलाई के लिए था
फिर रद्द क्यों??
बहुत सी बातें पब्लिक समझ नहीं पाती
बाद में समझ आता है
करोना वैक्सीनेशन को ही देख ले
पहले क्या कोई तैयार था नहीं न

लीक से अलग हटकर भी काम करना पडता है
नोटबंदी भी कौन चाहता था
न जाने कितना झेलना पडा जनता को
परिणाम क्या
वहीं ढाक के  पात

यह महामारी कैसे कैसे दिन दिखाने वाली है

आज विजय घर आया है
वही विजय जो पहला युवक था जो हमारी बस्ती से विदेश गया था
बडा बनने , कमाने
सब उसको नुक्कड़ तक छोडने आए थे
जब तक टैक्सी में नहीं बैठा , टाटा - बाय - बाय करते रहे
बहुत ने फरमाइशे की थी
हमारे लिए यह लाना वह लाना
दोस्त और रिश्तेदारो ने भी
अचानक महामारी का आगमन
सब छोड़कर आना पडा
बडी मुश्किल से आ पाया
पर यह क्या
सबका रवैया बदला हुआ
कोई उससे बात नहीं करता
बात करने की तो छोड़ ही दो
देखते भी नहीं
दरवाजा बंद कर लेते हैं
दोस्त ऑखे चुराते हैं
ऐसा लगता है
जैसे वह कोई क्राइम कर आया हो
वह भी विदेश से
कितना खतरनाक है
वहाँ  का हाल बहुत विकट है
उसकी भी सब चाचणी हुई
निकला तो कुछ नहीं
बीमारी का कोई लक्षण नहीं
तब भी सबकी घूरती ऑखे
मानो वह बहिष्कृत है
क्या है न
अभी आगे और कौन-कौन से दिन देखने पडे
वह तो ऊपरवाला ही जानता है

वह साध्वी बनारस के तट पर

वह साध्वी थी
देखा था उसको मैंने बनारस के घाट पर
एक तेज था मुख पर
आभामंडल था चेहरा
वाणी मे  ओज
भाल पर चंदन का त्रिपुंड
दमकता हुआ व्यक्तित्व

सब नतमस्तक हो रहे थे
वह प्रवचन कर रही थी
बीच-बीच में राभधुन भी बज रही थी
गजब का सौंदर्य
रंग दूध सी सफेदी जैसा
विचार आया
ऐसा व्यक्तित्व तो संन्यासी बनने के लिए नहीं
कहीं न कहीं कोई बात तो है

एकांत में मिलने का समय मांगा
परमीशन मिलने पर अंदर दाखिल हुई
साष्टांग दंडवत कर जब पास ही नीचे बैठी
चेहरे पर एक अजब उदासी थी
एक लंबी आह भरी
क्या जानना चाहती हो

जानना चाहती तो हूँ
पर अपने बारे में नहीं
आपके बारे में
यह चोला क्यों पहना है
यह जीवन क्यों धारण किया है
थोडी सी सकुचाहट
पर मैं भी तो हठी
कहाँ छोडने वाली थी
मनोविज्ञान की स्टूडेंट
धीरे-धीरे खुलने लगी
पता चला
प्यार में धोखा खाया था
इसलिए विरक्त हो गई थी
इंसानो पर से विश्वास उठ गया था
भगवान से नाता जोड़ लिया था

शायद इसी को प्रेम कहते हैं

आप जैसे भी हैं अच्छे हैं
क्योंकि  आप संपूर्ण रूप से मेरे हैं
हमारे विचार मेल नहीं खाते
हमारी आदते अलग-अलग हैं
हमारा नजरिया अलग है
हमारी सोच अलग है
रहन सहन का ढंग भी अलग है
धारणा अलग है
यह सब तो होना ही था
जब दो विपरीत ध्रुव वाले मिलेंगे तो
तब भी कभी आप पर शक नहीं हुआ

कारण जानना चाहते हो
क्योंकि  ऐसा कोई दिन नहीं हुआ
जब मुझे याद नहीं किया हो
पहले पत्र का जमाना था तब भी
फोन का जमाना था तब भी
मोबाइल का जमाना है तब भी

आप बहुत अनुशासित हैं
आपको ज्यादा बोलना और लिखना नहीं आता
घंटों बातें  करना भी नहीं आता
फोन हो या मोबाइल
आठ बजे फिक्स है
वह तो तूफान हो या कुछ
आना ही है
तब इससे बडा प्रमाण क्या ?
यह तो तब जब साथ नहीं थे
आज तो साथ है फिर भी तुम मुझे कभी देखते नहीं
ऐसा मेरा मानना है
पर मेरे बिना घर में रहना भी तो तुम्हें सुहाता  नहीं
तुम भले मेरी बात मत मानो
पर मजाल किसी और की
तुम्हारे सामने मुझे बात सुना दे
फिर वह तुम्हारे घर वाले हो या रिश्तेदार

अब यह प्रेम नहीं तो क्या है
प्रेम करने वाला
जरूरी नहीं हर बात में हाॅ मिलाए
वह गुलाम नहीं है
उसका अपना व्यक्तिगत जीवन है
पर जीवन भर तुम्हारा हाथ छोड़ेगा नहीं
तुम्हारे सिवा किसी और को देखेगा नहीं
और इससे ज्यादा एक पत्नी को क्या चाहिए
पैसा वह कमाए
हिसाब तुम लो
तुम्हारे स्वयं के पैसे के बारे में पूछे भी नहीं
खर्च करना और मांगना तो दूर की बात
इतना समर्पण और निस्वार्थ वृत्ति का
यह उसका घमंड नहीं
स्वाभिमान है
जो उसकी जिम्मेदारी है वह उसकी है
ज्यादा पैसे न हो पर जो हो अपने दम पर हो
और क्या चाहिए
चिकनी चुपड़ी बात करने वाला ही प्रेम नहीं करता
खामोश रहकर भी प्रेम होता है

बिना आडम्बर के भी प्रेम होता है
बडी बडी बात करने से नहीं
जिंदगी हर हाल में  निभाने को प्रेम कहते हैं  ।