Monday, 20 March 2023

गौरैया

आंगन में आती गौरैया
ची ची करती 
सुबह-सुबह हमको जगाती
खिडकी दालान में घोसले बनाती
कुछ ज्यादा की चाह नहीं
बस कुछ दाने ही काफी
घर के आसपास मंडराती 
आज जाने कहाँ गुम हो रही
यह नाजुक सी चिडियाँ
गाँव - घर की पहचान चिडिया
इनको भी रहने का है अधिकार
कहीं हो न जाएं 
विकास की चकाचौंध में इनकी ची ची गायब
इनका भी घर रहने दो
इनको भी मुक्त विचरने दो

मैं मिट्टी हूँ

पैरों को मिट्टी की आदत नहीं है
यह पैर चले हैं मार्बल पर टाइल्स पर
इसलिए तो मिट्टी भाती नहीं है
वह शहर है
यह गांव है
गाँव की मिट्टी भी बडी जिद्दी है
न चाहते हुए भी गाहे - बगाहे लिपट ही जाती है
मानो कहती हो
कितना भी पीछा छुड़ाओ
मैं छोड़ने वाली नहीं हूँ
जडे तो यहीं हैं
कितना भी उखाड़ो 
फिर भी मैं तो पकड़े ही रहूंगी
सच ही तो है
ऊपर से कुछ भी कैसा भी हो
अंदर तो मिट्टी ही है
वह नीचे बैठी है जम कर
तब यह टाइल्स चमक रहे हैं
हमारी जडे भी तो गाँव में ही है
कितना भी बदलाव आ जाएं
कहीं न कहीं मन के किसी कोने में 
एक गांव समाया रहता है
जिसकी पूर्ति हम फार्म हाउस , रिसोर्ट से करते हैं
हरियाली की तलाश में
सुकून और शांति की खोज में
शहर की आपाधापी से दूर
माटी से हम कितना भी दूर भागे
वह अपनी महक तो भर ही देती है हममें
वह शहर की चकाचौंध कुछ समय के लिए भूला ही देती है
माटी की सौंधी सौंधी महक खिंचती है
कहती है कब तक दूर रहोंगे मुझसे
मैं तो माटी हूँ 
मुझमें ही जन्म
मुझमें ही मृत्यु
मुझसे भाग कर जाना इतना आसान तो नहीं

मैं कुत्ता हूँ

मैं कुत्ता हूँ
बेजुबान हूँ
अच्छा है न
केवल भौकता हूँ
किसी को अपशब्द तो नहीं कहता
अपमानित तो नहीं करता
निंदा तो नहीं करता
शब्दों के व्यंगबाण तो नहीं चलाता
जब आप कहते हैं
यह कुत्ते की तरह भौकता है
तब मुझे दुख होता है
मैं आप जैसा बिल्कुल नहीं हूँ
मैं मनुष्य नहीं कुत्ता हूँ

मुझे कहा जाता है 
मैं मालिक के पीछे दूम हिलाता है
सही है
मैं नमकहराम नहीं हूँ
स्वामीभक्त हूँ
मालिक के पीछे जान दे सकता हूँ
मनुष्य जैसा नहीं
खाए किसी का और गाए किसी का
अपनों की पीठ में ही पीछे से छुरा घोंपे
यह तो मैं नहीं करता
मैं मनुष्य नहीं कुत्ता हूँ

कहा जाता है
कि कुत्ते की दुम टेढ़ी ही रहती है
कुछ भी कर लो
सही है
मैं दलबदलू नहीं हूँ
जैसा हूँ उसी पर कायम हूँ
शेर की खाल में छुपा भेडिया नहीं हूँ
मैं मनुष्य नहीं कुत्ता हूँ

हर दम साथ निभाता हूँ
मरते दम तक
एक बार किसी का हो लिया
तब अंत तक उसका
सडकों से लेकर महलों तक में निवास
फिर भी घमंड का नामो-निशान नहीं
मैं मनुष्य नहीं कुत्ता हूँ

जमीन से जुड़ा हूं
पर स्वर्ग तक पहुंचा हूँ
धर्मराज युधिष्ठिर का सहचर हूँ
उनके साथ स्वर्ग के द्वार तक पहुंचा हूँ
तभी तो मैं अपने धर्म पर अडिग हूँ
धर्म और जाति के बंधनों से परे
स्वामिभक्ति ही धर्म मेरा
मैं मनुष्य नहीं कुत्ता हूँ .

मैं समुंदर हूँ

गहरा हूँ सब कुछ समाता हूँ अपने में
फिर भी शांत रहता हूँ
परीक्षा मत लो मेरी
अगर अपने पर आ जाऊं 
तब तो किसी की खैर नहीं 
मैं तो अपनी सीमा में रहता हूँ
विशालता ही मेरी पहचान
न जाने क्या क्या समेटे हुए अपने में
मैंने न जाने कितने युग देखे हैं
इतिहास गवाह है
मैं कभी अवांछित को अपने में समाता नहीं
बाहर किनारे पर फेंक देता हूँ
जब तक सहता हूँ तब तक ठीक
अन्यथा सुनामी आने में देर नहीं ।
मेरी क्षमता का आकलन करना मुश्किल
मेरी गहराई नापना असंभव
मैं अपने में अमृत और विष दोनों समाएं हुए 
सागर हूँ साग नहीं 
कि मुझसे कैसा भी व्यवहार हो 
मुझे बंधन में बांधा जाए
मेरी सीमा जानने से पहले अपनी सीमा जाननी होगी 
तभी सभी का कल्याण ।

Thursday, 16 March 2023

एक समय बाद सबको खत्म होना है

मजबूत भी एक वक्त बाद कमजोर पड जाता है
लोहे को भी जंग लग जाती है
पत्थर भी घिस जाता है
हरे भरे पेड़ भी ठूंठ हो जाते हैं 
मजबूत से दीवारों में भी दरार पड़  जाती है
कभी के शानदार महल खंडहर में तबदील 
कभी का रौनकदार आज वीरान
परिवर्तन तो होना ही है 
सदा एक सा नहीं रहना है 
यह तो सदियों से होता आया है
हम जो पहले थे आज वह नहीं है
सदा से तो ऐसे नहीं थे
जो हमें जानता होगा
जो हमें समझता होगा
वह ही हमें समझ पाएंगा 
बालों में सफेदी ऐसे ही नहीं आती
दांतों का टूटना ऐसे ही नहीं होता
दर्द शरीर में ऐसे ही नहीं होता
ऑखों में ऑसू भी ऐसे ही नहीं आते
मन उदास ऐसे ही नहीं होता
जिस जिंदगी से हमें बहुत प्यार होता है
वह एक दिन भार ऐसे ही नहीं लगने लगती
बहुत कुछ टूटता है
बहुत कुछ दरकता है
वह भी एक दिन में नहीं 
सालोसाल में 
कब तक मजबूत रहेंगे 
कब तक छत हमारा भार ढोती रहेंगी 
एक समय के बाद तो सब ही को खत्म होना है ।

Wednesday, 15 March 2023

कब तक दोषी ??

कब तक मैं दोषी बनती रहूंगी 
जब तक बचपन था 
अल्हड़पन था तब तक ठीक था
जैसे ही बडी हुई
सब सिखाने लगें 
बालों में सफेदी आ गई 
सीखना बंद नहीं हुआ 
पहले माँ ने सिखाया 
उसके बाद ससुराल वालों ने सिखाया 
खूब मीन मेख निकाला
कभी नन्द कभी सास कभी जेठानी 
कभी अडोसी पडोसी कभी रिश्तेदार 
पति की तो पूछो ही नहीं 
उनकी नजर में तो हर बात में मैं दोषी
फिर बच्चे बडे हुए
वह भी सिखाने लगे
दोष मढने लगे
आप ने कुछ किया ही नहीं 
माँ का फर्ज नहीं निभाया
हमारी कोई इच्छा पूरी नहीं की
हमको दबाया 
कोई छूट नहीं दी
न घूमने की न पहनने की 
हमसे काम करवया 
उसके बाद बहू की बारी
वह भी कहाँ पीछे रहनेवाली 
भतीजे - भतीजी,  भाभियाँ 
सब तोहमत लगाते हुए 
अब लगता है कि
मैं सच में मूर्ख हूँ 
किसी काम की नहीं 
कोई सहूर नहीं 
न अच्छी बेटी
न अच्छी बहन
न अच्छी बहू
न अच्छी पत्नी 
न अब अच्छी माँ 
और रिश्ते की बात ही छोड़ दे 
लगता है 
यह क्या हो रहा है मेरे साथ 
हमारे साथ ही कि हर औरत के साथ 
सुनना ही उसकी नियति है ??

Friday, 10 March 2023

जिंदगी की पुस्तक

जिंदगी एक पुस्तक जैसी ही है
जिसका ऊपरी कवर देख लोग आकर्षित होते हैं 
कैसी डिजाइन कैसा रंग कैसा टाइटल
कुछ लोग खोल कर देखना भी नहीं चाहते
कुछ ऐसे भी होते हैं 
जो मुखपृष्ठ पलट कर परिचय देख लेते हैं 
कुछ टिप्पणियां पढ लेते हैं 
पूरा पढने की जहमत कौन उठाएं 
कमोबेश कुछ ही होते हैं 
जो पूरी किताब पढते है
फिर चलता है
आलोचना- समालोचना का दौर
कुछ ही पूर्ण रूप से समझ पाते हैं 
दूसरे की जिंदगी को समझना इतना आसान नहीं 
हाँ राय बनाया जा सकता है
वह भी आधे - अधूरे जानकारी पर 
राय बनाना आसान है समझना मुश्किल 
तब जब तक पूरी किताब न पढी जाएं 
तब तक उस पर कुछ कमेंट भी न हो 
कहा जाता है जिंदगी एक खुली किताब है
सही भी है
पर पढने वाला पूरा पढे , समझे 
तभी मर्म समझ पाएंगा 
उसका मूल्यांकन कर पाएंगा ।

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ
मैं वह राधा हूँ जो जिसने कन्हैया को द्वारिकाधीश बनाया
मैं वह सीता हूँ जिसने राम को आदर्श राजा बनाया
मैं वह उर्मिला हूँ जिसने लक्ष्मण को महान व्रती तपस्वी बनाया
मैं वह यशोधरा हूँ जिसने सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बनाया
मैं वह कुंती हूँ जिसने राजा पांडु को पांच पांडवों का पिता बनाया
मैं वह द्रोपदी हूँ  जिसने पांचों पांडवों को एकसूत्र में बांध कर रखा
इनकी महानता के पीछे त्याग मेरा था
मैं टूटी
मैं बंटी
मैं परित्यक्ता बनी
मैं विरहणी बनी
मैं सिसकती रही
मैं ऑसू पीती गई
मैं समझौता करती गई
मैं त्याग की प्रतिमूर्ति बनती रही
मैं स्वयं बिखरती रही
दूसरों को संभालती रही
दर्द सहा मैंने तब ये महान बने
मर्यादा कभी नहीं लांघी तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम बने
प्यार को भी बांटा
पार्थ ने स्वयंवर में वरण किया
पत्नी बनी पांचों भाईयों की
जुआ खेले धर्मराज
दांव पर लगाया मुझे
आदर्श भाई बने लक्ष्मण
विरहणी बनी मैं
शांति का संदेश दिया बुद्ध ने
अशांत रही मैं
मथुरानरेश बने कृष्ण
प्रेम में पागल बन भटकती रही मैं
मेरा अस्तित्व 
मेरी भावना तार तार होती रही
मैं जोड़ती रही
संवारती रही
वह इसलिए कि मैं नारी थी
इनकी शक्ति थी
त्याग करना सबके बस की बात नहीं
वह तो स्त्री ही कर सकती है
धरती है 
धीरज है
सबकी धुरी है
वह डगमगाई तो प्रलय निश्चित
वह नारी है

Wednesday, 8 March 2023

माता तू सबसे महान

जीवन का आरम्भ ही मुझसे हैं 
जीवन का निर्माण मेरी ही कोख में 
दुग्धदायिनी हूँ,  जीवनदायिनी हूँ 
मेरी ही गोदी में जीवन खेलता है
मैं धरा हूँ 
सबका भार उठाती हूँ 
सब कुछ सहती हूँ 
अपना सब कुछ न्योछावर करती हूँ 
सारा प्रेम लुटाती हूँ 
हर नादानी सहती हूँ 
उन्नति के पथ पर अग्रसर करती हूँ 
उनको लहलहाते देख वारी जाती हूँ 
मेरी खुशी तो बच्चों की खुशी में ही है 
हाँ यह चाहती हूँ 
वे अनुशासित हो
सबके बदले बस
थोड़ा सा प्यार 
थोड़ा सा सम्मान 
भरपूर विश्वास 
इतना कि 
संतान कहें 
यह मेरी माँ है
इस पर मुझे गर्व है
उसकी परवरिश पर मुझे गर्व है 
आज मैं जो कुछ भी हूँ 
इसी की बदौलत 
यह माता है 
पुत्र कुपुत्र भले हो
      माता कुमाता हो ही नहीं सकती
मैथिली शरण गुप्त जी ने 
अपनी रचना साकेत में  स्वयं प्रभु राम से कहलवाया है
सच भी तो है
धन्य धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने जना  भरत सा भाई 
भरत जैसे बेटे को जन्म देनेवाली माँ कुमाता कैसे हो सकती थी 
अगर कैकयी कुमाता होती तो भरत अच्छे भ्राता न होते
जिनकी दुहाई आज तक दी जाती है 
भरत- राम के प्रेम की
माँ भी व्यक्ति है 
विवश हो सकती है
गलती कर सकती है
पर अपनी संतान का बुरा नहीं सोच सकती 
वह ईश्वर तो नहीं है पर ईश्वर के समकक्ष जरूर है
तभी तो माँ बनाया है 
ईश्वर को तो नहीं देख सकते
माँ को देख सकते हैं 
जिसकी ममता के ऑचल में सुकून मिलता है
सारा संसार भले दुत्कारे, धिक्कारे 
माँ कभी नहीं 
उसे तो सर्वोपरि अपनी संतान ही दिखती है 
हे माँ हे जननी 
     तेरा उपकार अपरम्पार 
     तेरा प्यार रहें बरकरार 
     सर पर तेरा हाथ हो
     यही दुआ बारम्बार 
     माता तू सबसे महान 

गृहिणी ही क्यों ???

बहुत सह लिया 
अब न सहेगे 
बहुत सहेजा 
अब न सहेजेगे 
बहुत सुना 
अब न सुनेंगे 
बहुत रिश्ते निभाया
अब न निभाएगे 
बहुत प्रताड़ित हुए 
डांट- मार खाई
अपमान सहा
मजाक उडा 
तब भी सब कर्तव्य निभाया 
यही सोच कर
ये सब तो अपने हैं 
अपनों से क्या गिला- शिकवा 
जो हुआ वह भूल जाओ
यह सब तो होता ही रहता है
धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएंगा 
सब पटरी पर आ जाएंगा
मन खुशी और उमंगों से लहराएगा 
इसी आशा में सबको पकड़ कर रखा
हर परिस्थिति को मात दिया
तब भी आज ऐसे लगता है
हालात जस के तस हैं
कोई नहीं बदला 
बस हम बदलते रहें 
अपने मन को समझाते रहें 
कब तक यह मन भी समझेगा 
वह भी थक चुका है
अकेला कोई क्या करेंगा 
घर - परिवार,  रिश्ते, प्रेम से  बनते हैं 
कुछ भूलना कुछ अनदेखा कुछ माफी की दरकार होती है 
सब की साझेदारी और भागीदारी होती है
सारी जिम्मेदारी केवल घर की गृहिणी पर नहीं 
सब की बराबर होती है
अगर यह नहीं तो बराबरी का अधिकार भी नहीं  ।

सृष्टि की संचालिका

नारी से नर
इसी से हैं संसार 
नारी ही सृष्टि की संपादिका
पूरा भार लेकर चलने वाली
वह पृथ्वी है
वह माता है
वह संसार की संचालिका है 
परिवार की धुरी है
वह बेटी है
वह बहन है
वह पत्नी है
वह माँ है
फिर भी वह परदे के पीछे है
उसका असतित्व?
उसका स्वाभिमान ??
उसकी महत्ता ?
शायद समझ नहीं पाया समाज
तभी तो गर्भ में ही हत्या 
इतना बडा पाप
एक जीव को 
एक सृष्टि की संचालिका को
अगर ऐसा व्यवहार होता रहा
तब संसार की
तब समाज की
सारी व्यवस्था ही गडबडा जाएंग
 वह बहुत घातक है
सम्मान कीजिए
हर उस औरत का
जो आपके साथ जुडी है
इसकी वह अधिकारी है

तुम नारी हो

तुम प्रेम हो
तुम आधार हो
तुम जीवनदायिनी हो
तुम ममता हो
तुम शक्ति हो
तुम सखी हो
तुम बेटी हो 
तुम बहन हो 
तुम माँ हो
तुम जीवनसंगिनी हो
तुम जग निर्मात्री हो
तुम बिना तो राधेश्याम ,सीताराम और गौरीशंकर भी अधूरे
वे तो ईश्वर तब सामान्य इंसान की क्या बात करे
घरनी बिना घर अधूरा
सारे जग का स्वामी भी माता बिना भिखारी
भाई का रक्षा कवच
पति की ढाल
बेटी का प्रेम
प्रेम ,विश्वास और श्रद्धा से लबालब 
साथ में शक्ति 
तुम तो अपने आप में संपूर्ण हो
स्वयं को पहचानो
तुम साधारण नहीं
संसार की धुरी हो
तुम नारी हो

Tuesday, 7 March 2023

होली का एक पहलू यह भी

होलिका महाराज हिरण्यकषिपु की बहन थी
एक राजा की बहन
एक राज्य की राजकुमारी 
एक ईश्वरीय वरदान से युक्त राजा
ईश्वर का कभी परम भक्त भी रहा होगा तभी तो वरदान प्राप्त हुआ 
किसी के हाथों नहीं मर सकता
न मानव न पशु 
न दिन न रात 
न घर में न बाहर
न अस्त्र न शस्त्र 
न दिन में न रात में 
आशीर्वाद और वरदान भी भक्त को दिया था भगवान ने
उसको कैसे जाने देते
भक्त का मान रखना जो था
हाँ अब वह घमंड के कारण राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया था
अन्याय की पराकाष्ठा चरम सीमा पर थी
उसको मारने के लिए नरसिंह का अवतार लिया
उसी का बेटा परम भक्त प्रह्लाद हुए 
नास्तिक के घर परम आस्तिक का जन्म 
उनको मारने के तमाम उपाय
नहीं सफल हुआ
होलिका बहन की याद आई
बैठा दिया बुआ की गोद में अग्नि में 
प्रह्लाद पर ईश्वर की कृपा थी वह तो बच आए
होलिका जल गई
उस दिन भी एक नारी चिता पर चढाई गयी थी
उसे सती बनाया गया था
आज हम होलिका दहन करते हैं 
होलिका माता की पूजा करते हैं 
इसका एक पहलू भी है
प्रह्लाद परम भक्त कहलाए
हिरण्यकशिपु को ईश्वर के हाथ मुक्ति मिली
रही होलिका जिसे हम आज भी जलाते हैं 
बुराई के प्रतीक में 
कहीं न कहीं वह भी अन्याय हुआ था ।