Wednesday, 27 November 2024

ऑसू की ताकत

मैं जब - जब बरसात देखती हूँ 
तब - तब एक और चेहरा याद आता है
वह है मां का
हर वक्त उन्हें रोते देखा है
सुख हो या दुख 
पता ही नहीं चला 
खुशी हो या वेदना
सबसे बड़ा हथियार था उनका
ऑसू गिरे कि हम पिघले 
न कभी डांटा न मारा 
गजब की शक्ति थी उनके ऑसू में
अब तो आदत सी हो गई है
फिर भी ऑसू अच्छे नहीं लगते 
सोचते हैं यह तो नार्मल है 
न रोए तब आश्चर्य हो 
रोने के साथ मां का चोली - दामन का साथ रहा है 
इसके बल पर सब पार किया है 
रोना भी हथियार है यह तो मां से ही पता चला
वैसे हमारी ऑख में ऑसू जल्दी नहीं आते
आते हैं तो भी अकेले रात के अंधेरे में 
दिल तो दुखता है पर सबको ऑसू साथ नहीं देते 
बरसात भी तो बरसती है 
सबके लिए अलग-अलग 
नदी के लिए कुछ तलाब को लिए कुछ 
गड्ढों - नालों के लिए कुछ 
किसी को दुलराती है 
किसी को डुबोती है 
बारिश और ऑसू का भेद सब नहीं जान सकते 

Sunday, 24 November 2024

औकात अपनी - अपनी

औकात से वाकिफ है हम
कोई हमें क्या बताएंगा 
हमें कोई क्या जताएंगा
हम इतने साधारण भी नहीं
हमें ऐसा - वैसा समझने की भूल ना करें कोई 
हमारी औकात से पहले अपनी औकात भी जान लें
अपने को पहले हमारे जैसा बना कर तो दिखाओ 
सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जाएंगी 
हमें समझ तो लो पहले 
हम सबकी समझ में भी नहीं आते 
हम दिल को तव्वजों देते हैं
हम प्रेम की भाषा बोलते भी है 
जानते भी हैं 
ना औकात दिखाते हैं
न देखते हैं 
दिल देखते हैं वह भी दिल से 
औकात दिखाने वालों से दूर ही रहते हैं


घड़ी का समय

घड़ी तो हमेशा अपने समय पर होती है
समय कभी रुकता नहीं
अक्सर कहते हैं
सच है क्या 
ऐसा सच में होता है 
नहीं लगता नहीं है
कभी - कभी समय बरसों रुका रहता है 
जहाँ से चले वहीं खड़े रहें
इंतजार करते रहे सालोंसाल 
कहीं आगे खिसकने का नाम ही नहीं लिया 
बहुत इंतजार और धैर्य के बाद सफलता मिली 
वक्त अच्छा आएगा 
यह सुनते रहें 
वक्त को अपनी गति से जाते भी देखते रहें
मायूस हो कर रह जाते थे 
समय का अपना अंदाज है
वह सबके साथ एक जैसा नहीं रहता
किसी के साथ- साथ चलता है 
किसी के आगे तो किसी को पीछे छोड़ते 
बस घड़ी की सुई चलती है 
गोल - गोल चक्कर लगाती है
जहाँ से चलती है
वापस वहीं आकर फिर घंटा बजाती है

Monday, 18 November 2024

बस वोट कर

लोकतंत्र का पर्व है तब हमारा भी कुछ कर्तव्य है 
चल वहाँ जहाँ हो रहा है फैसला देश के कर्णधार का 
न सकुचा न डर बस उठा उंगली दबा बटन मनचाहे चिन्ह पर
न रह जाए कोई मलाल दिल में वोट कर दिमाग से
न पछतावा न शिकवा - शिकायत 
मिला है अधिकार हमको 
नहीं भूलना इसको किसी भी कीमत पर
बस वोट कर बस वोट कर 

Wednesday, 13 November 2024

अपनी क्षमता पहचाने


                      🍁अपनी क्षमता पहचानें 🍁

किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था । तालाब के  पास एक बगीचा था, जिसमे अनेक प्रकार के पेड़ पौधे लगे थे दूर- दूर से लोग वहाँ आते और बगीचे की तारीफ करते।

गुलाब के पौधे पर  लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई उसकी भी तारीफ करे. पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा उसके अन्दर तरह-तरह के विचार आने लगे— सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते पर मुझे कोई देखता तक नहीं, शायद मेरा जीवन किसी काम का नहीं …कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं… और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा।

दिन यूँ ही बीत रहे थे कि एक दिन जंगल में बड़ी जोर-जोर से हवा चलने लगी और देखते-देखते उसने आंधी का रूप ले लिया. बगीचे के पेड़-पौधे तहस-नहस होने लगे, देखते-देखते सभी फूल ज़मीन पर गिर कर निढाल हो गए, पत्ता भी अपनी शाखा से अलग हो गया और उड़ते-उड़ते तालाब में जा गिरा।

पत्ते ने देखा कि उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंको की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी।

चींटी प्रयास करते-करते काफी थक चुकी थी और उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी कि तभी पत्ते ने उसे आवाज़ दी, घबराओ नहीं, आओ, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ। और ऐसा कहते हुए अपनी उपर बैठा लिया। आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुँच गया; चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हो गयी और बोली,  आपने आज मेरी जान बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है, सचमुच आप महान हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला, धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए, क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ, जिससे मैं आज तक अनजान था. आज पहली बार मैंने अपने जीवन के मकसद और अपनी ताकत को पहचान पाया हूँ…

मित्रों, ईश्वर ने हम सभी को अनोखी शक्तियां दी हैं; कई बार हम खुद अपनी काबिलियत से अनजान होते हैं और समय आने पर हमें इसका पता चलता है, हमें इस बात को समझना चाहिए कि किसी एक काम में असफल होने का मतलब हमेशा के लिए अयोग्य होना नही है. खुद की काबिलियत को पहचान कर आप वह काम  कर सकते हैं, जो आज तक किसी ने नही किया है!

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 ((((((( जय जय श्री राधे )))))))  Copy paste 
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Tuesday, 12 November 2024

सत्य की खोज

#श्रील_प्रभुपाद अक्सर एक सरल किन्तु गहन #कहानी साझा करते थे, जिससे यह स्पष्ट होता था कि किस प्रकार लोग, चाहे उनकी स्थिति या बुद्धि कुछ भी हो, आम जनमत द्वारा आसानी से गुमराह हो सकते हैं।

एक बार एक आदमी चल रहा था और उसने देखा कि एक आदमी अपने सिर के बाल मुंडवाकर रो रहा है। चिंतित होकर उसने पूछा, "तुमने अपना सिर क्यों मुंडवा लिया है? तुम क्यों रो रहे हो?" दुखी आदमी ने दुख से अभिभूत होकर जवाब दिया, "तुमने सुना नहीं? तुम्हें नहीं पता? सरवल सिंह मर चुका है!"

पहला आदमी, हालांकि उसे नहीं पता था कि सरवल सिंह कौन है, अपनी अज्ञानता को स्वीकार करने में बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। यह मानते हुए कि सरवल सिंह कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति रहा होगा, वह भी रोने लगा और शोक के प्रतीक के रूप में अपना सिर मुंडवा लिया। फिर वह अपने गाँव लौट आया, जहाँ गाँव वालों ने उसकी दुःख भरी हालत देखी और पूछा, “क्या हुआ? तुम क्यों रो रहे हो?” उस आदमी ने जवाब दिया, “तुमने सुना नहीं? सरवल सिंह मर चुका है!” हैरान, गाँव वालों ने भी अपने सिर मुंडवा लिए और सरवल सिंह की मौत पर शोक मनाना शुरू कर दिया, हालाँकि उन्हें नहीं पता था कि वह कौन था।

जैसे ही यह खबर फैली, पास से मार्च कर रही एक सैन्य टुकड़ी गांव से गुजरी और उसने देखा कि सभी लोग सिर मुंडाए हुए रो रहे हैं। उत्सुकतावश उन्होंने पूछा, “गांव में सभी लोग शोक क्यों मना रहे हैं?” गांव वालों ने जवाब दिया, “तुम्हें नहीं पता? सरवल सिंह मर चुका है!” इसे एक बड़ी क्षति मानते हुए सैनिकों ने भी अपने सिर मुंडाए और शोक में शामिल हो गए।

जब सेना राजा के सामने आई, तो उसने देखा कि उसके सभी सैनिकों के सिर मुंडे हुए थे और वे रो रहे थे। राजा ने हैरान होकर पूछा, “तुम सबके सिर मुंडे हुए क्यों हैं? तुम क्यों रो रहे हो?” पूरी सेना ने एक स्वर में चिल्लाते हुए कहा, “राजा, तुमने सुना नहीं? सरवल सिंह मर चुका है!” राजा ने यह मानकर कि सरवल सिंह कोई बहुत बड़ा व्यक्ति होगा, अपने मंत्री की ओर मुड़ा और कहा, “हमें भी अपने सिर मुंडे लेने चाहिए, क्योंकि सरवल सिंह मर चुका है।”

हालाँकि, मंत्री एक बुद्धिमान व्यक्ति था और उसने राजा से पूछा, “सरवल सिंह कौन है?” राजा ने उत्तर दिया, “आप नहीं जानते? सरवल सिंह मर चुका है!” मंत्री ने अपनी पूछताछ में दृढ़ता दिखाते हुए स्वीकार किया, “नहीं, मैं नहीं जानता कि सरवल सिंह कौन है।” राजा को अब एहसास हुआ कि वह भी नहीं जानता कि सरवल सिंह कौन है, उसने कहा, “शायद हमें पता लगाना चाहिए।”

मंत्री ने सैनिकों से पूछकर अपनी जांच शुरू की, “सरवल सिंह कौन है?” उन्होंने जवाब दिया, “हमें नहीं पता। हमने गांववालों से सुना है।” फिर मंत्री गांव गए और गांववालों से पूछा, “सरवल सिंह कौन है?” गांववाले भी उतने ही अनभिज्ञ थे, उन्होंने कहा, “हमें नहीं पता। हमने सिर्फ इतना सुना है कि सरवल सिंह मर चुका है।”

अंत में, मंत्री ने कहानी को उस असली आदमी तक पहुँचाया जो मुंडा हुआ सिर लेकर रो रहा था। मंत्री ने पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” उस आदमी ने जवाब दिया, “तुमने सुना नहीं? सरवल सिंह मर चुका है!” मामले की तह तक पहुँचने के लिए दृढ़ निश्चयी मंत्री ने पूछा, “सरवल सिंह कौन है?”

उस आदमी ने अभी भी दुखी होकर बताया, "मैं एक धोबी हूँ और अपने ग्राहकों के कपड़े ढोने के लिए मैं अपने वफादार गधे पर निर्भर रहता हूँ। उस गधे ने कई सालों तक मेरी वफादारी से सेवा की, लेकिन अब वह मर चुका है। उसका नाम सरवल सिंह था।" (हँसी)

जब सभी को पता चला कि सरवल सिंह तो सिर्फ एक गधा था, तो वे सभी बहुत शर्मिंदा हुए क्योंकि उन्हें इतनी आसानी से गुमराह किया जा सकता था।

पाठ:
"सरवल सिंह की मौत" की कहानी इस बात की एक शक्तिशाली याद दिलाती है कि सच्चाई की पुष्टि किए बिना समाज कितनी आसानी से जनमत से प्रभावित हो सकता है। यह आलोचनात्मक सोच, विनम्रता और भीड़ का आँख मूंदकर अनुसरण करने के बजाय आम धारणाओं पर सवाल उठाने की इच्छा के महत्व पर प्रकाश डालता है।

प्रार्थना:
"हे प्रभु, मुझे सत्य की खोज करने की बुद्धि, प्रश्न करने का साहस और जब मैं नहीं जानता तो उसे स्वीकार करने की विनम्रता प्रदान करें। मुझे जनता की राय से गुमराह होने से बचने और हमेशा स्पष्टता और समझ के लिए प्रयास करने में मदद करें।"Copy paste 

बस जैसे हैं वैसे हैं

सोचा था बहुत टूटकर चाहेंगे तुम्हें
वह हमने किया भी 
टूटते रहें , बिखरते रहें 
जोड़ते रहे 
हल कुछ नहीं 
टूटे हम ही 
जोड़ कुछ न पाए 
तुमको बदल न पाए 
हम ही अपने को बदलते रहे 
समझते रहे 
हमको समझने की कोशिश किसी ने नहीं की
उनकी नजर में भी बुरे बने
जिनका बुरा तो कभी भी न चाहा
न तब न अब न कभी 
जाने क्यों 
कोई हमें समझ ही न पाया 
अब न समझना है 
न समझदार होना है 
बस जैसे हैं वैसे ही ठीक है 

Saturday, 9 November 2024

मैं और मेरा अस्तित्व

कोई मेरी जन्मदात्री 
मैं किसी की जन्मदात्री 
दोनों के ही प्रति फर्ज 
एक जीवन के प्रभात पर
दूसरा जीवन की संध्या पर
एक की मैं अंश
दूसरा मेरा अंश
इनमें कहीं न कहीं थोड़ा-बहुत मैं भी विद्यमान 
लेकिन मैं पूर्ण रुप से कहां हूँ 
यह समझ नहीं पाई 
कभी किसी का पूरा नहीं बन पाई 
न अपना और न किसी और का 
बनती ही कहाँ से 
स्वतंत्र ही नहीं जो बंधा है बंधनों से 
वह भी प्रेम के बंधन से 
उसे तोड़ भी नहीं सकती 
तोड़ना भी नहीं है 
यही तो जिंदगी है 
इसका आनंद सब नहीं समझ सकते 

Wednesday, 6 November 2024

यह भी सही और वह भी सही

ह्दय शांत था 
लगा जरा पीछे मुड़कर झांक लू 
अचानक मन में द्वंद्व उठा 
लगा शांत झील में कंकड़ पड़ गया हो 
हर बार हारी मैं
हर बार जीती मैं 
हर बार गिरी मैं
हर बार उठी मैं
वह मैं ही तो थी 
जो गिरती - पड़ती संभलती रही 
कभी मायूस हुई 
कभी उदास हुई 
कभी जी भर मुस्कराई 
कभी खिलखिलाती  हंसी 
बस रुकी नहीं चलती रही 
आई हर बाधा को पार करती रही 
आज मुड़कर पीछे देखा 
विश्वास नहीं हुआ 
वह मैं ही थी क्या
कितना कुछ बदल गया 
वक्त के सांचे में सब ढल गया 
उस मोड़ पर आ खड़ी हूँ 
जहाँ कुछ करने से रही 
हम ही नहीं इस कतार में और भी है शामिल 
यह सिलसिला है जिंदगी का 
तभी तो गिला नहीं किसी बात का
जो समझा वह किया 
परिणाम भी तो मुझे ही मिला 
कामयाबी पर पीठ थपथपाई 
नाकामियों पर ऑसू बहाया 
हर तूफान का सामना किया 
अब और तो कुछ बाकी नहीं 
यह भी सही और वह भी सही 

Monday, 4 November 2024

मुसाफिर

कहने को तो सब अपने 
सारा जहां अपना 
समय पर ढूंढा तो 
नहीं मिला कोई अपना 
बदले - बदले से सब लगे 
ढूंढती रही ऑखें भीड़ में 
लगा सब है अंजान
हम गफलत में जीते रहें 
विष - गरल पीते रहे 
मन में भ्रम पालते रहे  
तब यह महसूस हुआ 
यहां कोई अपना - पराया नहीं 
सब झमेला मोह - माया का 
सब यही रह जाता है 
मुसाफिर अकेला आता है 
अकेला ही जाता है 

Sunday, 3 November 2024

जो रोता नहीं

कभी इसके लिए रोया 
कभी उसके लिए रोया 
जन्मते ही रोया 
यह जो सिलसिला शुरु हुआ 
अब तक चलता ही रहा 
कभी खुशी में कभी दुख में 
आँख के पानी ने साथ न छोड़ा 

बचपन में खिलोनों के लिए रोया
जवानी में भावविभोर हो रोया
कभी प्यार में कभी रोजगार में
बुढ़ापा और बीमारी देख कर रोया
कभी मिलन में कभी बिछुड़न में
कभी अकेले में कभी सबके समक्ष 
कभी तकिये में मुख छिपा 
कभी किसी के गले लग

सुना है रोना ठीक नहीं
मुझे तो लगता है 
जो रोया नहीं 
वह खुलकर जीया भी तो नहीं
मन भर रो लो 
जी भर हंस लो 
जिंदगी को अपने मुताबिक जी लो 

भैया दूज की शुभकामना

मेरा भैया तुझे लंबी उमर मिले 
सारा सुख - वैभव मिले 
तू छोटा ही सही 
है हमारे घर का चिराग 
तू पिता नहीं पर उनसे कम भी नहीं
आस है बहन की 
तेरा - मेरा प्यार बना रहे
मेरा मायका सही - सलामत रहें
यही तो दुआ रहती है हर बहन की

Saturday, 2 November 2024

जय श्री जगन्नाथ

भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ी तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है

महाप्रभु का महा रहस्य
सोने की झाड़ू से होती है सफाई......

महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया

हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...

मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...

ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... 

मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? 

कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...

आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...

भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी

आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। 

झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है

दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।

भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा

इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।

भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।

ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं..
     🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩                                      🙏🙏

Friday, 1 November 2024

मैं दीपक

मैं जला रात भर
तब तक जब तक तेल था मुझमें
जी भर जला 
जितना प्रकाश था भरपूर दिया
अब खाली पड़ा हूं
बच्चे शायद एक - दो दिन खेल ले 
बाद में कचरे के ढेर पर
इसका मुझे कोई मलाल नहीं 
जीया तब तक जी भर
अपने जीवन को सार्थक समझ रहा हूं
उजाला देता रहा
अंधेरा दूर भगाता रहा 
खुशियां बांटता रहा 
वैसे भी सबको यहां से कभी न कभी जाना है
मिट्टी में मिलना ही है 
मैं तो मिट्टी से ही बना हूं
किस बात का मलाल
जहाँ से आया वहीं जाना है