Sunday, 28 October 2018

जख्म

जख्म बहुत गहरा था
उपचार करते कितना समय बीत गया
अच्छा भी हो चला था
पर फिर उसको कुरेद देती
सूखता हुआ घाव फिर हरा हो जाता
पर क्या करती
आदत से मजबूर
थोड़ी भी कुलबुलाहट सहन नहीं
यह भी डर कि कही गेंग्रीन न हो जाय
यह तो छोटा सा शारीरक घाव है
पता नहीं मन कितना घायल है
हम उस घाव को लेकर बरसों ढोते रहते हैं
समय समय पर याद करते रहते हैं
जीवन की मुस्कान गायब कर डालते हैं
यही सोचकर
हमारे साथ ऐसा हुआ
फलाने ने ऐसा किया या कहा
फलाना ढिमाके को तो कुछ याद नहीं
वह तो बोलकर भूल गया
पर हम नहीं भूले
अपनी जिंदगी झंड बना रखी
ऐसे जीवन मे हर वक्त होता है
कभी कभी जखमों को ढोते
मानसिक रोगी बन जाते हैं
जबकि जख्म देने वाले को भूल जाना चाहिए
चाहे वह अपने हो या बेगाने
हमारी जिंदगी हमारी है
सोच भी हमारी है
उस पर किसी को हावी नहीं होने देना है

चांद

चांद रोज निकलता है
हर रोज कभी छोटा कभी बड़ा
कभी बादलों के पीछे
अमावस्या भी आती है
पूर्णिमा भी आती है
हाँ कभी कभी ग्रहण भी लगता है
हर रूप मे सुंदर
इस चांद पर दाग भी है
पर उपमा भी उसी की
अपनी शुभ्र चांदनी सब पर फैलाता
दिन भर तपी धरती पर शीतलता फैलाता
सब शीतल हो जाते
घना अंधकार फिर भी वह प्यारा लगता
सबका प्यारा
बच्चों का चंदामामा
सुहागिनों का आदरणीय
ईद का चांद
यह कभी भेदभाव नहीं करता
इसके आसपास तारे
यह उनको भी चमकाता
कभी चरखा कातती बुढिया की छवि दिखती
कभी मां की लोरी मे बच्चों को रिझाना
हर बच्चो का प्यारा मामा
जब यह भेदभाव नहीं करता
तो हम क्यों??
यह मामा हमें सिखाता
मानव बनो
हर दिल अजीज बनो
गतिशील बनो
अमावस्या है तो पूर्णिमा भी आएगी
हर मौसम फिर
वह जाड़ा हो या बरसात
रूकना नहीं है
बस चलना होगा
हर तूफान का सामना करना होगा

Saturday, 27 October 2018

क्यों छूप रहा है चांद.मेरी नजरों से ओझल नहीं होने दूंगी.मत छूपो कब से इंतजार है. आज मेरे पिया का दिन है.उनका इंतजार तो रोज करती हूँ. आज भी उनके लिए भी तुम्हारा इंतजार.मेरे पिया हर समय मेरे साथ रहे. यह आशिर्वाद देकर जाना है

Happy करवा चौथ

आज करवा चौथ है
सुहागिनों का दिन है
पति की मंगलकामना
उसकी लंबी आयु की प्रार्थना
क्योंकि वह जीवन साथी है
एक अंजान सा रिश्ता
पर बन जाता है लाजवाब रिश्ता
एक बार हाथ जो थामा
तो कभी नहीं छोड़ता
सुख.दुख हर परिस्थिति में
घर परिवार बच्चे सब उसकी बदौलत
रानी बना कर रखता है
उसकी नजर मे सबसे उम्दा
उम्मीद भी सारी उसी से
मान सम्मान भी उसकी बदौलत
जिंदगी जिसके हाथ मे सौंपा
और निश्चिंत हो गए
उसका जीवन अमूल्य है
उस साथी के लिए इतना तो करना है
भगवान से उसकी सलामती की दुआ करनी है
चांद से अपने सुहाग के चांद की रक्षा करने कहती है
हमेशा यह त्योहार आए
जीवन मे खुशियाँ महकाए

Thursday, 25 October 2018

मृत्यु

मृत्यु शैय्या पर पडा व्यक्ति
सोच रहा है
अपने कर्मो का लेखाजोखा कर रहा
मैं जीवित था तब कैसा था
कितनी गलतियां की
झूठ बोले
लोगों को थोखा दिया
सताया
अब सब मेरे साथ ही जा रहा है
कोई दूसरा क्यों भागीदार बने
मैं सोचता था
मेरे जैसा कोई नहीं
कोई मेरा क्या कर लेगा
पर मृत्यु को डर नहीं लगा
वह निडर होकर आई
और मैं अवाक रह गया
बड़े बड़े डॉक्टर भी.मुझे बचा न पाए
मंहगी दवाइयाँ भी बेअसर रही
शायद बच जाता
किसी की दुआ लगती
पर मैंने तो ऐसा कोई काम नहीं किया
जिंदगी भर बद्दुआएं बटोरी
अब लगता है
एक बार जिंदगी फिर मिल जाय
तो सारे पाप का प्रायश्चित कर लू
पर वह मौका मृत्यु कहाँ देती है
वह ठेंगा दिखा रही थी
मानो बोल रही हो
गया समय फिर लौट कर नहीं आता
फिर मैं तो मौत हूँ
एक बार आई तो तुम्हें लेकर ही जाऊंगी
अब कर्मो का हिसाब यमराज  ही करेंगे
पृथ्वी पर जो व्यवहार किया है
उसका फल तो मिलता ही है.

Sunday, 21 October 2018

जिंदगी

कौन कहता है जिंदगी बहुत छोटी होती है
जिंदगी तो बड़ी होती है
पर जीना हम देर से शुरू करते हैं
हर पल अभावों का रोना
समझ ही नहीं पाते हैं
छोटी छोटी खुशियों को
उनके मर्म को
जो हम चाहते हैं वह नहीं मिला
उस गम को
पर जो मिला उसका क्या??
जब समझ जाते हैं
तब तक तो देर हो चुकी होती है
ईश्वर ने इतना कुछ दिया है
उसका आनंद उठाया जाय
बजाय कोसने के
हर पल का आनंद लिया जाय
उसकी कृपा अपरम्पार है
वह सभी को देता है
पर हमारे हिसाब से नहीं
हमें हिस्सा जो है वह
कर्मो का भी तो लेखा जोखा होना है
आप परिपूर्ण तो नहीं
फिर सब कुछ आपको ही क्यों?
जितना मिला है
शायद औरो को वह भी नहीं
कर्म और भाग्य का लेखाजोखा करने वाले आप कौन??
वह उस लेखाकार पर छोड़ दीजिए
आप तो बस जिंदगी को जिंदगी की तरह जीए
जिंदगानी मे जिंदादिली निर्माण करिए
जिंदगी देर से शुरू न करें
हर वक्त  हर पल को जीए
महसूस होगा
जिंदगी इतनी भी छोटी नहीं

एक प्रेरक कथा

🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹

मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।

अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? जब कि आप खुद भी रोती हो।

उस ने जवाब दिया भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है।

जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिस की वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।

इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उन से कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता।

मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उस की झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिस की दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया।

वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिस की दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।

थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उस के पीछे पीछे चल रहा था।

बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धो कर स्कूल चल दिया। मै भी उस के पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उस के टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जा कर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार मै इस के घर पर भी खबर दे चुका हूँ।

खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।

सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।

वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।

अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह  बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगा तार रो रही थी, और मैने फौरन उस के टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का एहसास हो रहा हो।

उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट ले लो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।

आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रख कर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगा कर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।

मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किस के लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इस लिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।

तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।

टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।

क्या ऊपर वाले की खुशियों में इन जैसे गरीब विधवाओंं का कोई हक नहीं ? क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े पैसे निकाल कर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों की मदद नहीं कर सकते।

आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना ! ! ! !

और हाँ अगर आँखें भर आईं हो तो छलक जाने देना संकोच मत करना..😢

अगर हो सके तो इस लेख को उन सभी सक्षम लोगो को बताना  ताकि हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये और यही लेख किसी भी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाये।

Copy pest

Thursday, 18 October 2018

Happy Vijayadashami

खुशियों का त्योहार
प्यार की बौछार
मिठाइयों की मिठास
सत्य की विजय
अधर्म का नाश
म़ा भगवती का आशीर्वाद
लेकर आई है विजयादशमी
हर किसी पर कृपा बनी रहे
प्रभु श्रीराम की

Wednesday, 17 October 2018

एक चश्मा लगे न्यारा

चश्मा लगे कितना अपना
इसके जैसा नहीं कोई हमसफर
आँखों का यह संगी साथी
पहले पहल लगती झिझक
कुछ सालों बाद रहती हमेशा संग
चश्मे का हर रूप निराला
गोलाकार, चपटा ,अंडाकार
रंग बिरंगे फ्रेम मे सजता
कभी फैशन तो कभी जरूरत
उम्र के हर पड़ाव पर
बच्चे और बूढ़े दोनों पर यह फबती
हर पेशे की यह आँख बनती
शिक्षक की तो यह बेहतरीन साथी
न लगा तो किताब भी दिखती उल्टी-पुल्टी
पेपर बिन लगाए जाँचे तो हो जाय सब गोलमाल
छा जाये अंधेरा तभी तो चश्मा लगे प्यारा
यह है मेरी जान ,तभी तो मैं इस पर कुर्बान
यह नहीं तो मैं नहीं
आँख पर जबसे लगा
तबसे न हुआ कोई गिला -शिकवा
चश्मा लगाइए
जीवन को प्रकाशवान बनाइए

Sunday, 14 October 2018

ME TOO मैं भी

यह किसी की आपबीती है
नाम नहीं बताने की गुजारिश है
बहुत बरसों पहले इसने साझा किया था मुझसे
तब बात मन मे रह गई थी बस सहानुभूति थी उससे
आज पता नहीं वह कहाँ है
पर उसकी बात ताजा है
बिटिया कभी किसी का विश्वास न करना
यह मर्द जात बडी कमीनी होती है
इन्हें औरत के शरीर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखता
मुझे विश्वास नहीं हुआ था उसकी बात का
ऐसा भी कोई अपना हो सकता है
तब तो संबंधों से विश्वास ही उठ जाएगा
घूंघट वाले प्रांत की थी वह
जेठ और ससुर ने दुर्व्यवहार किया था
औरतों को तो बताने का सवाल ही नहीं
पति ने भी उस पर विश्वास नहीं किया था
कुलटा कह कर ताने देता था
छोडने की हिम्मत नहीं थी
दूसरा ब्याह कौन करता बेरोजगार से
बड़े घरों के गोबर पाथने का काम करती थी
वहाँ भी शिकारी थे सफेदपोश
उसने भी स्वीकार कर लिया था
जीना है तो यह होगा ही
क्या फर्क पड़ता है
शरीर थोड़े ही घिस जाएगा
यही नियति है
हम पढ़े लिखे तो नहीं है न
किसका किसका विरोध करेंगे
बात तब आयी गयी हो गई
पर आज जब सुर्खियों मे वही चर्चा है
तब लग रहा है
न जाने कितनों ने इसे बेमन से स्वीकारा है
आज आगे आ रही है औरत
बेझिझक और बदनामी के डर से बिना घबराए
अभी भी सवालों के घेरे में औरत ही
तब क्यों नहीं तो अब क्यों??
अभी ही सही
अत्याचार और शोषण का विरोध तो करना है
वह नराधम आराम से रहे
दूसरा उस आग मे ताउम्र सुलगता रहे
सबक तो सिखाना ही पड़ेगा
द्रोपदी ने दुश्शासन का रक्त पान किया था
आज की द्रौपदी उठ खडी हुई है
उसे किसी भीम की जरूरत नहीं है
वह बस आवाज उठाए
कानून अपना काम करेगा
अपराधी यो ही सस्ते  मे नहीं छूटना चाहिए
कुछ नहीं तो बदनामी तो होगी
समाज मे बेइज्जती होगी
और इन इज्जतदारो को यह रास नहीं आएगा
अगली बार कुछ करने से पहले हजार बार सोचेंगे
नारी शक्ति का एहसास तो होगा
तभी तो समाज का भी नजरिया बदलेगा

Thursday, 11 October 2018

भक्त नामदेव

🍁🍁🍁🙏🙏    सच्ची सरकार    🙏🙏🍁🍁🍁

कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए नामदेव जी से पत्नि ने कहा- भगत जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।
आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।
शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।

भक्त नामदेव जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ जैसी विठ्ठल जीकी क्रपा।
अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,
तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।

पत्नि बोली संत जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,
तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।
घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।
पर बच्चे अभी छोटे हैं, उनके लिए तो कुछ ले ही आना।

जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।
ऐसा कहकर भक्त नामदेव जी हाट-बाजार को चले गए।

बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह सांई! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।
तेरा परिवार बसता रहे।
ये फकीर ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा।
दया के घर में आ और रब के नाम पर दो चादरे का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे।

फकीर ने जितना कपड़ा मांगा,
इतेफाक से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।
और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया।

दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनो के भूखे चेहरे नजर आने लगे।
फिर पत्नि की कही बात,
कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।
दाम कम भी मिले तो भी बच्चो के लिए तो कुछ ले ही आना।

अब दाम तो क्या,
थान भी दान जा चुका था।
भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ गए।

जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।
जब सारी सृष्टि की सार पूर्ती वो खुद करता है,
तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।
और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरिविठ्ठल के भजन में लीन गए।

अब भगवान कहां रुकने वाले थे।
भक्त नामदेव जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।

अब भगवान जी ने भक्त जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।

नामदेव जी की पत्नी ने पूछा- कौन है?

नामदेव का घर यही है ना?
भगवान जी ने पूछा।

अंदर से आवाज हां जी यही आपको कुछ चाहिये
भगवान सोचने लगे कि धन्य है नामदेव जी का परिवार घर मे कुछ भी नही है फिर ह्र्दय मे देने की सहायता की जिज्ञयासा हैl

भगवान बोले दरवाजा खोलिये

लेकिन आप कौन?

भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी?
जैसे नामदेव जी विठ्ठल के सेवक,
वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हूl

ये राशन का सामान रखवा लो।
पत्नि ने दरवाजा पूरा खोल दिया।
फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ,
कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।
इतना सामान! नामदेव जी ने भेजा है?
मुझे नहीं लगता।
पत्नी ने पूछा।

भगवान जी ने कहा- हाँ भगतानी! आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।
जो नामदेव का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया।
और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।
जगह और बताओ।
सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।

शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।

समान रखवाते-रखवाते पत्नि थक चुकी थीं।
बच्चे घर में अमीरी आते देख खुश थे।
वो कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।
कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।
उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।

भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे,
पर सामान आना लगातार जारी था।

आखिर पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान संत जी के आने के बाद ही आप ले आना।
हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।

भगवान जी बोले- वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर विठ्ठल सरकार का भजन-सिमरन कर रहे हैं।
अब परिजन नामदेव जी को देखने गये

सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोचने लगे,
जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।

इससे पहले की संत नामदेव जी कुछ कहते
उनकी पत्नी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचा लेने थे।
अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,
तो सारा सामान संत जी आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?

भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।
फिर बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया,
कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल कर दिया है।
"""
पत्नि ने कहा अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर मे भैजने से रुकता ही नहीं था।
पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गया।
उससे मिन्नत कर के रुकवाया- बस कर! बाकी संत जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।

भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले- ! वो सरकार है ही ऐसी।
जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।
उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नही होती

एक बार बोल दो
🙏जय श्री राधे कृष्णा जी 🙏 Copy pest

Sunday, 7 October 2018

सबसे बड़ा मेरे भक्त का ह्रदय

सबसे बड़ा मेरे भक्त का ह्रदय

एक बार अर्जुन अपने सखा श्री कृष्ण के साथ वन में विहार कर रहे थे। अचानक ही अर्जुन के मन में एक प्रश्न आया और उसने जिज्ञासा के साथ श्री कृष्ण की तरफ देखा ।

श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा – हे पार्थ! क्या पूछना चाहते हो? पूछो ।

अर्जुन ने पूछा, हे माधव! पूरे ब्रह्माड में सबसे बड़ा कौन हैं ?

श्री कृष्ण ने कहा – हे पार्थ ! सबसे बड़ी तो धरती ही दिखती हैं, पर इसे समुद्र ने घेर रखा हैं मतलब यह बड़ी नहीं । समुद्र को भी बड़ा नहीं कहा जा सकता, इसे अगस्त्य ऋषि ने पी लिया था, इसका मतलब अगस्त्य ऋषि बड़े हैं, पर वे भी आकाश के एक कोने में चमक रहे हैं। इसका मतलब आकाश बड़ा हैं ! पर इस आकाश को भी मेरे बामन अवतार ने अपने एक पग में नाप लिया था। इसका मतलब सबसे बड़ा मैं ही हूँ ! परंतु मैं भी बड़ा कैसे हो सकता हूँ, क्यूंकि मैं अपने भक्तों के ह्रदय में वास करता हूँ। अर्थात सबसे बड़ा भक्त हैं । इस तरह भक्त के हृदय में भगवान बसते हैं, इसलिए इस संसार में सबसे बड़ा भक्त हैं ।
🌹🙏🌹
Copy pest

Saturday, 6 October 2018

पृथ्वी शां -एक उभरता हुआ खिलाड़ी

हर बच्चे का सपना होता है ,क्रिकेटर बनना
मुंबई क्या देश की हर गली मुहल्ले मे पांच साल से लेकर पच्चीस साल तक के हाथ मे बल्ला.दिख जाता है
हर बच्चा तेंदुलकर और धोनी बनना चाहता है
मुंबई तो सचिन की जन्मभूमि है
यहाँ हर मैदान पर क्रिकेट का अभ्यास करते हुए अपने कोच और टीम के साथ मेहनत करते ,पसीने बहाते बच्चे दिख जाएंगे
मां -बाप भी उसके लिए मेहनत ,पैसा और समय देते हैं
उसकी हौसला आफजाई करते हैं
इस समय भारतीय क्रिकेट का सर्वाधिक चर्चित और उभरता खिलाड़ी सुर्खियों मे है और वह है
   पृथ्वी शां
इस धुरंदर ने भारतीय क्रिकेट संघ मे पदापर्ण करते ही शतक बनाया
उम्र के 18 वर्ष मे ही अनेक करकीर्दी हासिल है
इस उभरते हुए युवा खिलाड़ी की जितनी प्रंशसा की जाय वह कम है
इसके पहले रणजी मे भी उसने अपना करतब दिखा दिया है
इसके पीछे वर्षों की मेहनत और दृढ़ निश्चय ही है
इस खिलाड़ी से मुंबई के सभी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन तो मिलेगा और आशा भी जगेगी
यह युवा पृथ्वी अपना डंका ऐसे ही बजाते रहे
देखने वाले को स्तब्ध करता रहे
लिटिल मास्टर गावसकर ,सचिन तेंडुलकर सरीखे खिलाड़ियों ने मुंबई के साथ देश और विदेश मे भी अपने खेल का लोहा मनवाया है
अब यह युवा मुंबईकर आगे बढ़ कर परचम फहरा रहा है 
सबकी निगाहें इसकी तरफ लगी है
पृथ्वी के रूप मे भारत और मुंबई को एक अच्छा और होनहार खिलाड़ी मिला है
सचिन की परम्परा को आगे बढ़ाएगा
ऐसी सभी देशवासियों की इच्छा होगी
पृथ्वी सभी की अपेक्षा पर खरे उतरे
यह सभी की शुभकामना होगी
बल्ले से रनों की बौछार हो
सबके मुख से वाहवाह हो

अभी तो शुभारंभ है
मंजिल अभी बाकी है
हौसला बुलंद है
अपनी पृथ्वी का नाम रोशन करना है
पृथ्वी का लाल पृथ्वी
भारतीय क्रिकेट को अवश्य शिखर पर पहुंचाएगा
यह उसका हर देशवासी से वादा है।

पृथ्वी शां -एक उभरता हुआ खिलाड़ी

हर बच्चे का सपना होता है ,क्रिकेटर बनना
मुंबई क्या देश की हर गली मुहल्ले मे पांच साल से लेकर पच्चीस साल तक के हाथ मे बल्ला.दिख जाता है
हर बच्चा तेंदुलकर और धोनी बनना चाहता है
मुंबई तो सचिन की जन्मभूमि है
यहाँ हर मैदान पर क्रिकेट का अभ्यास करते हुए अपने कोच और टीम के साथ मेहनत करते ,पसीने बहाते बच्चे दिख जाएंगे
मां -बाप भी उसके लिए मेहनत ,पैसा और समय देते हैं
उसकी हौसला आफजाई करते हैं
इस समय भारतीय क्रिकेट का सर्वाधिक चर्चित और उभरता खिलाड़ी सुर्खियों मे है और वह है
   पृथ्वी शां
इस धुरंदर ने भारतीय क्रिकेट संघ मे पदापर्ण करते ही शतक बनाया
उम्र के 18 वर्ष मे ही अनेक करकीर्दी हासिल है
इस उभरते हुए युवा खिलाड़ी की जितनी प्रंशसा की जाय वह कम है
इसके पहले रणजी मे भी उसने अपना करतब दिखा दिया है
इसके पीछे वर्षों की मेहनत और दृढ़ निश्चय ही है
इस खिलाड़ी से मुंबई के सभी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन तो मिलेगा और आशा भी जगेगी
यह युवा पृथ्वी अपना डंका ऐसे ही बजाते रहे
देखने वाले को स्तब्ध करता रहे
लिटिल मास्टर गावसकर ,सचिन तेंडुलकर सरीखे खिलाड़ियों ने मुंबई के साथ देश और विदेश मे भी अपने खेल का लोहा मनवाया है
अब यह युवा मुंबईकर आगे बढ़ कर परचम फहरा रहा है 
सबकी निगाहें इसकी तरफ लगी है
पृथ्वी के रूप मे भारत और मुंबई को एक अच्छा और होनहार खिलाड़ी मिला है
सचिन की परम्परा को आगे बढ़ाएगा
ऐसी सभी देशवासियों की इच्छा होगी
पृथ्वी सभी की अपेक्षा पर खरे उतरे
यह सभी की शुभकामना होगी
बल्ले से रनों की बौछार हो
सबके मुख से वाहवाह हो

अभी तो शुभारंभ है
मंजिल अभी बाकी है
हौसला बुलंद है
अपनी पृथ्वी का नाम रोशन करना है
पृथ्वी का लाल पृथ्वी
भारतीय क्रिकेट को अवश्य शिखर पर पहुंचाएगा
यह उसका हर देशवासी से वादा है