Thursday, 7 January 2016

मैं कौन हूूँ - क्या है मेरी पहचान

आज सुबह कार्यस्थल पर जाने के लिए टेक्सी ली
गंतव्य पर पहुँचने पर टेक्सी ड्राइवर को पूछा कि कितने पैसे हुए भैया
वह भडक कर बोला -मैं भैया नहीं हूँ
मैं आश्चर्य से देखती रह गयी कि मैंने कोई ऐसा संबोधन तो नहीं किया था कि गुस्सा आ जाए
बात यह है कि हर प्रांत के व्यकिओ के साथ कुछ न कुछ ऐसा जोड दिया है
या तो उनका मजाक बने या हीनभावना से देखा जाय
सरदारों पर तो जोक्स प्रसिद्ध ही है
राजस्थानी मारवाडी के साथ कंजूस
महाराष्ट्रीय के लिए घाटी
दक्षिण भारतीयों के लिए लुंगी से संबंधित
सिंधियों के लिए या फिर सिक्कीम ,मणिपाल के लोगों के लिए चिंकी
हमारे यहॉ एक समारोह में एक स्वतंत्रता सेनानी आए थे भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि जब राजेन्द्र प्रसाद पहली बार मुंबई एक सम्मेलन में भाग लेने आए थे तो हम यह सोचने लगे कि यह भैया क्या बोलेगा पर जब उनकी बातें सुनी तो दंग रह गए
अब यह प्रशंसा थी या क्या था समझ नहीं आया
इन्हीं व्यक्तिओं में बाबू राजेन्द्र प्रसाद ,लोकमान्य तिलक,डॉ मनमोहन सिंह, डॉ ऱाधाकृष्णन ,लालकृष्ण अडवानी और अरविंद केजरीवाल जैसे लोग है
मजाक ,मजाक तक और शब्द तब तक ही अच्छे लगते हैं जब तक किसी को ठेस न पहुँचाए
कितनी तकलीफ होती होगी कि अपने ही देश में उनके अलग नाक नक्श के कारण चीनी ,जापानी या चिंकी कहा जाय
भैया जैसे पवित्र संबोधन को किसी प्रांत के लोगों को नीची दृष्टि से देखने के लिए किया जाय
भारत के सरताज सरदारों को मजाक का पात्र माना जाय
यहॉ तक कि बहन जी शब्द को भी आजकल पुराने जमाने से जोड दिया गया है
हँसना अच्छी बात है पर किसी को गिराकर और नीचा दिखाकर नहीं
शब्दों में मायने बदलने की बडी ताकत होती है
शब्द चोट भी पहुँचा सकते है और बडे मरहम का काम भी कर सकते हैं.
शब्द को किसी के व्यक्तित्व से जोडकर देखना?
रही बात तो यह अनपढ लोग नहीं बल्कि पढे-लिखे भी इस्तेमाल करते है
अब तो बदलाव आना चाहिए

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