Wednesday, 31 August 2022

बेटी आई है

बेटी आई है
रौनक आई है
खुशियाँ आई है 
लक्ष्मी आई है
तब जी भर कर स्वागत 
उसे दुर्गा बनाना है अबला नहीं 
वह किसी से कम नहीं 
यह भी जताना है
क्या फर्क है
संतान तो संतान है
हमारा ही अंश है
उसके सपने हमारे सपने 
हमारा अभिमान है वह
हमारी शान है वह
उसे देखकर कहें लोग
वह देखो 
बेटी का बाप जा रहा है
उसके नाम से पहचाने जाएं 
तब तो उसके लिए 
वह सब करना होगा
जिसकी वह हकदार है
अधिकार भी समान
कर्तव्य भी समान
बेटा - बेटी भी समान 

Tuesday, 30 August 2022

सब्र रखे

नहीं किसी को कम समझो
नहीं किसी को कमजोर समझो
नहीं किसी को ताकतवर समझो
यह समय है भाई
वक्त का पहिया घूमता है
कब कौन ऊपर पहुंचे 
कब कौन नीचे गिरे
यह गिरना - पडना
खेल है जीवन का
बडे बडे धराशायी हो गए
नाम निशान भी न रहा
अदना सा कहने वाला शीर्ष पर पहुंच गया
गर्व और घमंड कर कुछ नहीं मिलता
इंसान और मानव हो
तब मानवता और इंसानियत बरकरार रहें 
वहाँ सबको जाना है
वह सब देखता है
कर्मों का लेखा जोखा रखता है
कोई यह न समझे 
वह अंजान है 
आज नहीं तो कल
न्याय तो होता ही है
बस सब्र रखें। 

Monday, 29 August 2022

ट्विन टॉवर का ढहना

कल नोएडा में ट्विन टावर्स ध्वस्त हुआ
तेरह साल जिसे बनाने में लगा
ध्वस्त करते तेरह मिनट भी नहीं लगा
कहीं न कहीं अच्छा नहीं लगा
न जाने कितनों के पैसे लगे थे
निर्माण में कितने करोड़ लगे होंगे 
जबकि कितने ऐसे है कि बेघर हैं 
पतरा डालने के लिए पैसा नहीं है
तब फिर यह क्या सही हुआ ??
क्यों नहीं माफ कर दिया गया बिल्डर को

तब भ्रष्टचार तो और बढता 
सब यही सोचते कि बन जाने के बाद क्या होगा ??
कितनी न जाने अनधिकृत इमारतें हैं 
वह ऐसे ही मान्य हो गई है
वह अब रूके
बिल्डर लाॅबी ग्राहकों के साथ खिलवाड़ न करें 
साथ ही यह प्रश्न भी है
जब यह बन रहा था
तब सरकारी महकमा सो रहा था क्या ?
या सब मिले जुले हैं 
तुम भी खाओ हम भी खाएंगे 
सब भ्रष्ट है ऊपर से नीचे तक 
इस घटना से शायद सब सचेत हो जाएंगे 
सबको सबक मिलेगा 
तब जो हुआ वह सही हुआ 

जीवन यात्रा

बहुत छोटी सी यात्रा है यह 
वह है हमारी जीवन यात्रा 
यात्रा करते समय गंतव्य पर पहुंचना 
यही हमारा ध्येय
रास्ता उबड खाबड़ होगा
चढाव उतार होंगे 
कंकरीले पथरीले होंगे 
पहाड़ और चट्टान भी रास्ते में होंगे 
समुंदर और नदियाँ भी होंगी 
यही नहीं छोटे नाले और तालाब भी होंगे 
गढ्ढे  और बदबूदार गटर भी होंगे 
कीचड़ और दलदल भी मिलेंगे 
इन सबको तो पार करना ही पड़ेगा 
जब पार करेंगे तभी तो पहुँचेगे मंजिल पर
मंजिल पर पहुंचना आसान नहीं होता
हाँ जब मिल जाती है 
तब मन को सुकून और खुशी मिलती है
राह पर गुजरने वाली हर परेशानी भूला दी जाती है 
यात्रा करना है या नहीं 
मंजिल पर पहुंचना है या नहीं 
बीच राह में ही हार मान लेना है या जीत की ओर बढना है
यह तो यात्री को ही तय करना है 

पैसे का सम्मान

उसके पास बहुत पैसा है तब भी वह कंजूस है
ऐसा अक्सर सुनते हैं 
वाकई क्या पैसा आ जाए तो उसे उडाया जाएं 
बेहिसाब खर्च किया जाएं 
कंजूस होना ठीक नहीं पर मितव्ययी होना जरूरी है
जो एक रूपये की कदर करता है 
वह करोड रूपये की भी करेंगा 
वह जानता है पैसे की अहमियत 
जिसने नहीं जाना और घमंड कर लिया 
इतराने लगे 
उनका भी हश्र देखा गया है
यह लक्ष्मी जी है भाई 
इनका सम्मान करो 
नहीं तो इनका स्वभाव पता ही है 
कहीं भी स्थिर नहीं रहती 
अर्श से सीधे फर्श पर आ गिरेगे 
अच्छे कामों में  
आवश्यक जरूरतों में 
फिजूलखर्ची  करना कोई बुद्धिमानी नहीं है
शराब और अय्याशी करना ही पैसा कमाने का उद्देश्य नहीं है
शुक्र मनाओ
नहीं तो कुछ ऐसे भी है जो पेट भरने के लिए भी मोहताज है
तब पैसा बोलता है 
पैसा चलता है 
पैसा सब कुछ नहीं पर बहुत कुछ है 
जिंदगी बदल देता है 
उसके आने पर घमंड मत करें सम्मान करें 
वह एक रूपया हो या एक करोड़ 
सर माथे से लगाकर ले
तब वह भी आपका साथ निभाएगा। 

Monday, 22 August 2022

उसका क्या ??

मैं भी नाम कमाना चाहती थी
अपनी पहचान बनाना चाहती थी
सपने साकार करना चाहती थी
उडान भरना चाहती थी
सब धरे के धरे रह गए 
प्रेम और कर्तव्य की बलिवेदी चढ गए
अपनी पहचान क्या
घर का नेम प्लेट भी नाम का न रहा
घर की बात तो छोड़ो 
पहले बेटी 
फिर पत्नी
फिर माँ 
इन सबके साथ जुडी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया
फिर भी लोगों को याद न आया
तुमने किया ही क्या है
तुमने देखा ही क्या है
घर से बाहर निकलती तब पता चलता
न जाने कितने पापड बेलने पडते हैं 
घर में रहकर जो पापड बेले हैं 
उसका क्या ?? 

सीनियर सीटिजन की व्यथा

सीनियर है
रिटायर है
बेकार है
बस रोटियाँ तोड़ना है
बैठे बैठे टोकना है
हर बात में दखलंदाजी करना है
हर बात जानना है
क्या करोगे 
यह सब करकर 
बहुत हो चुका 
अब छोड़ दो सब
माया मोह में क्यों फंसे हो
आराम करो
चुपचाप पडे रहो 
यही तो नहीं होता भाई
इसी माया मोह में फंस कर जिंदगी बिता दी
हर जोड तोड़ और जद्दोजहद की
तब आज इस मुकाम पर
मन का वह कीडा जो है न
कुलबुलाता है
गलत होते देख नहीं सकता
सब जानना चाहता है 
सचेत करना चाहता है
अपने अनुभव साझा करना चाहता है
सबके साथ मिलकर हंसना और बतियाना चाहता है
अलग थलग और चुपचाप पडे रहना नहीं चाहता
सहभागी होना चाहता है
वह पत्थर की मूर्ति नहीं है
जिसे एक जगह बिठा दिया जाएं 
भावनाओं से ओतप्रोत जीता - जागता हाड - मांस का इंसान है
बूढा हो गया है
कमजोर हो गया है
सांस नहीं रुकी है
वह गतिमान है
नौकरी से रिटायर है जिदंगी से नहीं 

Sunday, 21 August 2022

नैना ओ मेरे नैना

नैना ओ मेरे नैना
किसी अपने का इंतजार 
देखने को तरस गई नैना
इन दो ऑखों में पानी
खुशी में भी रहती भीगी भीगी
यह कोई और क्या समझेगा
दिल की आवाज तो नैना ही समझती 
ऑसू का मूल्य वही जानती 
क्योंकि उसने ही तो बहाए हैं 
अपना अनमोल मोती
वह तो हंसना चाहती है
पर हंसे कैसे 
वही तो है साथ साथ
यह केवल ऑखें नहीं 
नैना नहीं 
दुनिया यही हमें दिखाती है
यह कभी धोखा नहीं देती 
यह हर किसी के  दिल की आवाज 

अपनी संतान

हर व्यक्ति को लगता है
उसने अपने बच्चों के लिए न जाने क्या क्या किया
अपनी इच्छाओं का त्याग किया
अपनी हैसियत से ज्यादा देने का प्रयास किया
यही बात बच्चों पर जब लागू होती है
तब वह कहते हैं 
आपने हमारे लिए किया ही क्या है
दूसरे पैरेन्टस से तुलना करते हैं 
यह बात सामान्य रूप से सभी घरों पर लागू
हर पीढ़ी पर लागू
शिकायतों का भंडार खतम नहीं होता
इसलिए इस बात को दिल से लगाने से कोई लाभ नहीं 
अगर माता - पिता बने हैं 
तब तो यह सुनना सुनिश्चित है
इस कान से सुनो उस कान से निकालो
मुस्कराकर रह जाओ
यह संतान है आपकी
जीवन जीने का कारण है
इनके लिए ही जीया है
तब सुन भी लो

श्रीमद्भगवद्गीता को समझना इतना आसान नहीं

घर में श्रीमद्भगवद्गीता रखी है
हर हिंदू के घर में रामायण और गीता रहती ही है
अब रिटायरमेंट ले लिया है , सोचा हर रोज गीता के कुछ अध्याय पढूगी
पहले भी कभी-कभी पढा है कुछ कुछ 
अब नियमित और समझकर 
शुरू किया अध्याय पढना
गहरे जाकर समझ रही थी , तब तो विरक्ति और माया - मोह 
यही सब दिखाई दे रहा था
मन उलझन में रहता
श्री कृष्ण ने जो भी कहा है अगर वह समझ आ जाएं और उसका अनुसरण कर लिया जाएं 
तब जीवन कितना आसान 
सब उस पर छोड़ दिया जाए 
वैसे भी इंसान कुछ नहीं कर सकता
विधि का विधान ही सब कुछ कराती है
तब भी तो वह हाथ - पैर मारता ही है , सोचता है , चिंता करता है
यहाँ तक कि कृष्ण जी की सखी भी चीरहरण के समय जद्दोजहद कर रही थी
पितामह और सगे - संबंधी पर भरोसा था
पतियों पर भरोसा था
बाद में अपने हाथों से छुपाना अंगों को
जब लगा अब कुछ नहीं हो सकता
तब जाकर उनको पुकारा
यह सभी के साथ होता है
अगर सोच ले और गीता का अनुसरण कर ले तब जीवन वैसा नहीं रह जाएंगा
हम तो भावनाओं के पुतले हैं 
माया - मोह में फंसे हैं और फंसे रहना भी चाहते हैं 
अब समझ में आया 
अर्जुन को क्यों जल्दी समझ नहीं  आ रहा था
गीता ईश्वर की वाणी है और उसे समझने और आत्मसात करने के लिए वैसा बनना पडेगा 
पढना बंद कर दिया और बस श्रीमद्भगवद्गीता के सामने हाथ जोड़ लेती हूँ 
उस दिन के इंतजार में 
जब मन गीता को समझने लायक हो जाएंगा
    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी 
हे नाथ नारायण वासुदेव  ।

अब नहीं होता

अब नहीं होता 
किसी से शिकवा - शिकायत करने का मन
अब नहीं करता
पुरानी बातें याद करने का मन
अब ऐसा भास होता है
यह सब तो बस दुख ही देती है
जो होना था वह हुआ
जिसने जो करना था किया
हमारा तो बस नहीं था 
बस कुढते रहने के सिवा
यह सब तो चलता ही है
अगर जिंदगी चलायमान है
तब उसके साथ हर कुछ चलायमान 
बस चलते रहो
साथ कुछ मत रखो 
गंतव्य पर पहुंच गए न
यात्रा में  क्या परेशानी हुई 
वह याद करके तो कुछ हासिल नहीं 
बस जो साथ है
उसी को एंजाय करें। 

Saturday, 20 August 2022

अपेक्षा

एक व्यक्ति ने गुलदस्ता रखने का एक सुंदर सा गुलदान लिया
वह इतना सुंदर और नक्काशीदार था कि उस पर से ऑखें नहीं हटती थी
आते आते एक जगह फूलों की दुकान दिखी
वहाँ एक से एक गुलदस्ते  रखे हुए थे
एक सुंदर सा गुलाब के फूलों से बना हुआ ले लिया
घर आकर एक कोने में टेबल पर गुलदान रख उसमें गुलदस्ता रख दिया
यह सोने पर सुहागा जैसा लग रहा था 
सुबह सो कर उठने पर देखता क्या है
चीनी मिट्टी का गुलदान चकनाचूर हुआ है नीचे गिरकर
बगल में मुर्झाया हुआ गुलदस्ता
  गुलदान टूट गया
पैसा व्यर्थ गया ।दुखी हो गया 
लेकिन गुलदस्ता मुरझाने का दुख नहीं हुआ
तात्पर्य कि जो हम अपेक्षा रखते हैं वह टूट जाएं तो यह स्वाभाविक है
और जो पता है 
यह तो ऐसा ही है वहाँ उतना दुःख नहीं होता 

Excellent information about Lord Shri Krishna

*Excellent information about Lord Shri Krishna*

1) Krishna was born *5252 years  ago* 
2) Date of *Birth* : *18 th July,3228 B.C*
3) Month : *Shravan*
4) Day :  *Ashtami*
5) Nakshatra : *Rohini*
6) Day : *Wednesday*
7) Time : *00:00 A.M.*
8) Shri Krishna *lived 125 years, 08 months & 07 days.*
9) Date of *Death* : *18th February 3102BC.*
10) When Krishna was *89 years old* ; the mega war *(Kurukshetra war)* took place. 
11) He died *36 years after the Kurukshetra* war.
12) Kurukshetra War was *started on Mrigashira Shukla Ekadashi, BC 3139. i.e "8th December 3139BC" and ended on "25th December, 3139BC".*  
12) There was a *Solar eclipse between "3p.m to 5p.m on 21st December, 3139BC" ; cause of Jayadrath's death.*
13) Bhishma died on *2nd February,(First Ekadasi of the Uttarayana), in 3138 B.C.*

14) Krishna  is worshipped as:
(a)Krishna *Kanhaiyya* : *Mathura*
(b) *Jagannath*:- In *Odisha*
(c) *Vithoba*:- In *Maharashtra*
(d) *Srinath*:  In *Rajasthan*
(e) *Dwarakadheesh*: In *Gujarat*
(f) *Ranchhod*: In *Gujarat*
(g) *Krishna* : *Udupi in Karnataka*
h) *Guruvayurappan in Kerala*

15) *Bilological Father*: *Vasudeva*
16) *Biological Mother*: *Devaki*
17) *Adopted Father*:- *Nanda*
18) *Adopted Mother*: *Yashoda*
19 *Elder Brother*: *Balaram*
20) *Sister*: *Subhadra*
21) *Birth Place*: *Mathura*
22) *Wives*: *Rukmini, Satyabhama, Jambavati, Kalindi, Mitravinda, Nagnajiti, Bhadra, Lakshmana*
23) Krishna is reported to have *Killed only 4 people* in his life time. 
(i) *Chanoora* ; the Wrestler
(ii) *Kansa* ; his maternal uncle
(iii) & (iv) *Shishupaala and Dantavakra* ; his cousins. 
24) Life was not fair to him at all. His *mother* was from *Ugra clan*, and *Father* from *Yadava clan,* inter-racial marriage. 
25) He was *born dark skinned.* He was not named at all throughout his life. The whole village of Gokul started calling him the black one ; *Kanha*. He was ridiculed and teased for being black, short and adopted too. His childhood was wrought with life threatening situations.
26) *'Drought' and "threat of wild wolves" made them shift from 'Gokul' to 'Vrindavan' at the age 9.*
27) He stayed in Vrindavan *till 10 years and 8 months*. He killed his own uncle at the age of  10 years and 8 months at Mathura.He then released  his biological mother and father. 
28) He *never returned to Vrindavan ever again.*
29) He had to *migrate to Dwaraka from Mathura due to threat of a Sindhu King ;  Kala Yaavana.*
30) He *defeated 'Jarasandha' with the help of 'Vainatheya' Tribes on Gomantaka hill (now Goa).*
31) He *rebuilt Dwaraka*. 
32) He then *left to Sandipani's Ashram in Ujjain* to start his schooling at age 16~18. 
33) He had to *fight the pirates from Afrika and rescue his teachers son ;  Punardatta*;  who *was kidnapped near Prabhasa* ; a sea port in Gujarat. 
34) After his education, he came to know about his cousins fate of Vanvas. He came to their rescue in ''Wax house'' and later his cousins got married to *Draupadi.* His role was immense in this saga. 
35) Then, he helped his cousins  establish Indraprastha and their Kingdom.

36) He *saved Draupadi from embarrassment.*

37) He *stood by his cousins during their exile.*
38) He stood by them and *made them win the Kurushetra war.*

39) He *saw his cherished city, Dwaraka washed away.* 
40) He was *killed by a hunter (Jara by name)* in nearby forest. 
41) He never did any miracles. His life was not a successful one. There was not a single moment when he was at peace throughout his life. At every turn, he had challenges and even more bigger challenges. 
42) He *faced everything and everyone with a sense of responsibility and yet remained unattached.*

43)  He is the *only person, who knew the past and future ; yet he lived at that present moment always.*

44) He and his life is truly *an example for every human being.*

*Jai  Shri Krishna*🙏    COPY PASTE 
*Happy Janmashtami*

Wednesday, 17 August 2022

यह कैसा अमृत

स्वर्णिम दिन आया है 
अमृत महोत्सव मना रहा है
जाति - पांति का दंश अभी भी
कब यह खत्म होगा
कब इंसान को इंसान समझा जाएगा 
पानी तो सबका
नदी और बरखा तो भेदभाव नहीं करती
वही पानी जब मटके में आया
तब किसी के हाथ लगाने से अपवित्र 
यहाँ तक कि जान भी तुच्छ हो गया
एक मासूम इस बलिवेदी पर चढ गया
तब यह कैसा अमृत महोत्सव 
जब मन में  विष घुला हुआ है
तब यह दिखावा ही है
हो तो ऐसा
अमृत काल में सबके दिल में 
प्यार औ सौहार्द का अमृत लहराए
सब उसका छक कर पान करें 
इंसानियत ही सर्वोपरि है
उससे ज्यादा मौल्यवान कुछ नहीं 

Tuesday, 16 August 2022

पाठशाला - विद्यालय

रोते हुए जहाँ जाते हैं 
रोते हुए वहाँ से आते भी है
वह इतना अजीज हो जाता है
कि कोई छोड़ कर जाना नहीं चाहता 
जिंदगी के खूबसूरत और महत्वपूर्ण पल यही पर
हर चीज का अनुभव और पहचान यही से
अपनी योग्यता और कुशलता को सिद्ध करने का मौका यही
आदर - सम्मान और डांट- फटकार सब यही से सीखा
यहाँ आना भी जरूरी है
यहाँ से जाना भी जरूरी है
अपने घर के बाद दूसरा घर जैसा अनुभव भी यही
माता-पिता के बाद कोई शुभचिंतक हो तो भी यही
जहाँ पूरा विकास
जहाँ भाषा और ककहरा यही से
विज्ञान और इतिहास यही से
गणित और जीवन का जोड़ तोड़ की नींव यही से
संपूर्ण विकास भी यही से
जानते हैं 
यह जगह कौन सी है
वह है 
पाठशाला  , विद्यालय 

घर - घर तिरंगा

घर - घर तिरंगा 
जगह-जगह तिरंगा 
तिरंगा का मान रहा
शान रहा , सम्मान रहा
हर एक की आवाज बना तिरंगा 
महल हो या झोपड़ी
सब पर लहराया तिरंगा 

अब इसके बाद क्या ?
स्वाधीनता दिवस का इंतजार 
उस दिन भी फडकेगा 
भारत का गौरव अभिमान से लहराएगा 
यह तो दशकों से हैं 
आजादी से आज तक

बदला क्या है
विकास क्या हुआ है 
देश का भविष्य क्या है
हम जगत में कौन से पायदान पर खडे हैं 
यह भी प्रश्न चिन्ह है ??

यह किसी समारोह का आयोजन या झांकी नहीं 
लोगों की स्वतंत्रता,  अधिकार से जुड़ा है
सबसे बडे प्रजातंत्र से जुड़ा है
जनता की आवाज से जुड़ा है
थोपा हुआ नहीं  भावना से जुड़ा है
जन गण मन का जय सबसे जुडा है
हर जन की जय
लोकतंत्र की जय

हर घर तिरंगा 
यानि हर घर में आशा और विश्वास 
प्रेम और सौहार्द्र 
सुनहरे भविष्य का सपना भी पल रहा
तिरंगा के साथ रोटी , कपडा और मकान भी
तब ही भारत का सपना भी साकार 

जीओ पारसी

पारसी तो पारस है भारत के
यह तो भारत माता के वैसे लाल हैं
जो अनमोल हैं
आए कहीं से समाहित हो गए 
हिंदूस्तान में
यहाँ रहकर उन्होंने हर कर्तव्य अदा किया
माॅ भारती को गर्व है
स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष हो
औद्योगिक विकास हो
ये कहीं भी पीछे नहीं रहे
मैडम भिखाजी कामा 
दादा भाई नौरोजी
जमशेद जी टाटा
होमी जहांगीर भाभा
नाना पालखी वाला
ऐसे न न जाने कितने 
वाला , वाच्छा , नरीमन 
यहाँ तक कि ज्योतिष में
बेजाद दारूवाला
और आज सबकी जबा पर जिसका नाम
वे हैं आदरणीय 
   रतन टाटा
ये तो चंद नाम है
ऐसे न जाने कितनों का योगदान
शांतिपूर्ण अपना काम
न दंगा न फसाद
कानून का पालन करना
अन्याय तो कभी न सहना
सबकी आबादी बढ रही तो
इनकी घट रही
इनकी तो भारत को जरूरत है
नवरोज मुबारक हो
जीओ पारसी

Sunday, 14 August 2022

अपनापन

आज उन लोगों की बहुत याद आ रही है
जो अपने से लगते थे
बिना हिचक उनसे कुछ भी बोल सकते थे
कोई दिखावा नहीं 
कोई बनावट नहीं 
अब तो वह समय है
जब मुखौटे ओढने पडते हैं 
बहुत संभल कर रहना पडता है
कौन जाने कौन सी बात बुरी लग जाएं 
जब मन में भेदभाव न हो
तब बडी से बडी बात भी टाल दी जाती है हंसकर
अगर मन में ही भेद हो
तब छोटी सी बात को भी दिल से लगा लिया जाता है
बात का बतंगड बना दिया जाता है
दूसरों के सामने तो दिल खोल लो
अपनों के सामने सांस भी संभल कर लो

अब तो डर लगता है अपनों से
लगता हैं बेगानो  में अपनापन
वह अपन पन ही क्या
जो डर और खौफ में जीए 

Saturday, 13 August 2022

हमारा तिरंगा

देश में तिरंगा 
सरकारी भवनों पर तिरंगा 
न्यायालय और पाठशाला में  तिरंगा 
हर जगह तिरंगा 
तिरंगा हमेशा फहराया है
सम्मान के साथ
आजादी का जश्न मनाया है बचपन से
अब तक तो मन में सभी के
सडक पर 
ऑफिस में 
प्रभात फेरी में 
अब हर घर में 
लाल किले से शुरू हुई यात्रा 
हर घर तक पहुंच गई 
हमारा शान
हमारी आन
हमारा गौरव
सबका प्रतीक 
कोई कहें या न कहें 
यह तो हर भारतीय की शान है
सबको प्यारा सबसे न्यारा 
तिरंगा हमारा 


जीवन

बचपन था 
अच्छे दिन थे
समय ही समय था
दिन भर मस्ती,  खेलकूद 
कोई चिंता नहीं 

आई जवानी 
समय नहीं है
संपत्ति है 
शक्ति है
चिंता ग्रस्त है
भविष्य की योजना

आया बुढापा 
अब समय ही समय
संपत्ति भी हो 
लेकिन शक्ति नहीं है
शरीर क्षीण हो गया है

यही प्रकृति का नियम
पूर्णता कहीं नहीं 
किसी के पास समय
किसी के पास शक्ति 
किसी के पास संपत्ति 

यही तो जीवन है
बचपन , जवानी और बुढ़ापे के बीच
झूलता 

भाई तुमसे कुछ कहना है

भाई मुझे तुमसे उपहार नहीं  चाहिए 
भाई मुझे तुमसे रूपया - पैसा नहीं चाहिए 
मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए 
जब भी मुश्किल में रहूँ 
बस मेरे साथ खडे रहना
कोई मेरा अपमान न कर पाएं 
यह बात ध्यान में रखना 
कोई एहसान न करना
बस यह एहसास दिलाना 
मैं भी तुम्हारे जीवन का एक अमूल्य हिस्सा हूँ 
भूल कर भी मुझे न भुलाना 
जब भी आऊ द्वार तुम्हारे 
मन से आवभगत करना
नहीं महंगी चीजें 
नहीं लाजवाब और स्वादिष्ट भोजन
तुम्हारे घर का सादा भोजन ही बहुत 
बस भाव हो प्यार हो
साथ - साथ बतियाए 
एक - दूसरे के सुख - दुख में साथ हो
हर परिस्थिति में डट कर साथ खडे हो 
इस जन्म में हमेशा साथ हो 

भविष्य के गर्भ में क्या है ??

जहाँ उगते हुए सूर्य की ही नहीं 
डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है
एक बिहारी सब पर भारी
बिहारी बिकाउ नहीं टिकाऊ 
राजनीति की दिशा और दशा यही से तय होती है
क्रांति के जनक यही से
अब देखना है
वर्तमान राजनीति कौन सा करवट लेती है
परिवर्तन का बिगुल बज चुका है
वह कहाँ तक जाएगा 
यह तो भविष्य के गर्भ में है

धोखा का जिम्मेदार कौन ???

कभी-कभी हमारे साथ धोखा हो जाता है
हम सतर्क रहते है
होशियार रहते है
जानते - समझते हैं 
फिर भी कोई बेवकूफ बना जाता है
हम ठगे से देखते रह जाते हैं 
यह अमूनन हर किसी के साथ होता है
तब क्या करें 
समझ नहीं आता 
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार देते हैं 
फिर उसका दर्द और तकलीफ सहते हैं 
कभी यह धोखा बडा कभी छोटा
कुछ भूला दिए जाते हैं 
कुछ जिंदगी बदल डालते हैं 
हम मन मसोसकर रह जाते है
पता था अच्छी तरह से
फिर भी
मंथरा  की बातों में कैकयी आ गई थी
जिसकी कीमत बहुत भारी पडी
तब इसे विधि का विधान कहें 
या और कुछ 
हाँ लेकिन दोषी तो हम होते ही हैं 

Thursday, 11 August 2022

जिंदगी की खुशी

मेरे पास दो ऑखें हैं 
दो कान हैं 
दो हाथ हैं 
दो पैर हैं 
मन लेकिन एक ही है
अगर एक ऑख में तकलीफ होती है
हाथ , पैर , कान में हो 
तब एक की तकलीफ भारी पड जाती है
परेशान हो जाते हैं 
वैसे ही संतान का है
माता के लिए तो दोनों उसकी ऑखें हैं 
एक ऑख में तकलीफ हो
तब वह खुश कैसे रह सकती है
वही बात शरीर के सब अंगों का हैं 
एक में कुछ समस्या आ जाएं 
तब काम तो चल जाता है 
संतोष करना पडता है
पर वह खुशी नहीं होती
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं 
तेरे बिना जिंदगी भी जिंदगी नहीं  ।

आजादी का अमृत महोत्सव

आजादी का अमृत महोत्सव 
बडी खुशी का दिन
इसी अमृत की प्राप्ति के लिए 
न जाने कितनों ने विष धारण किया
लाठी खाई
जेल गए
फांसी पर चढे 
जिंदगी दांव पर लगा दी
शिव शंभु बन कंठ में विष धारण किया
दर्द दर भटके
सरकारी नौकरी छोड़ी
घर - परिवार छोड़ा
भूमिगत हुए
आशा - अरमान छोड़े
वर्तमान और भविष्य दांव पर लगा दिया
यह हमारे स्वतंत्रता सेनानी थे
तिरंगा जिनकी आन - बान - शान था
बलिदान हो गए
ये भारत माता के सपूत
कुछ याद हैं कुछ नहीं 
कुछ को लोग जानते हैं कुछ गुमनाम 
योगदान तो सबका है
हर उस बलिदानी का
इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती
कम से कम उनको याद कर सकते हैं 
उनकी अहमियत समझ सकते हैं 
चाहे जो भी हो 
जिस तरह भी हो
सबका एक ही उद्देश्य था
आजादी  ,आजादी ,आजादी 
उन्हीं की देन हैं 
परिवर्तन तो  प्रकृति का नियम है 
फिर भी यह याद रखें 
कि योगदान उनका है
हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं 
तब केवल दिखावा न हो
विज्ञापन न हो
झंडे का मन से सम्मान हो

ऐ मेरे वतन के लोगो 
फहरा लो तिरंगा  प्यारा 
जरा याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आएं ।

  





आज मन उदास है

आज मन उदास है
पता नहीं क्या बात है
सब कुछ तो है ठीक-ठाक 
फिर भी कुछ फीका सा लगता है
किसी के साथ न होने का एहसास 
वह तो दिल के पास है
लेकिन कुछ वजह से दूर है
यह दूरियाँ कब मिटें 
इसका है इंतजार 
मन लौट लौट कर उसकी यादों में 
उसकी बातों में 
उसकी हंसी में 
उसकी जिद में 
उसके गुस्से में 
उसकी ना समझी में 
जाकर ठहर जाता है
एक पल को उदासी तो दूसरे क्षण हंसी 
एक पल को गुस्सा तो दूसरे ही पल भूलना
कुछ गिले शिकवे भी 
याद है कि जाती नहीं 
घूम - फिर कर फिर वहीं अटक जाती है
यादों से तो जी नहीं भरता
जब तक सामने न हो
साथ न हो
जब तक दिल न खुले
बतिया न ले
तब तक खुशी कहाँ??

Saturday, 6 August 2022

संभल कर रहना

तुमने क्या खाया
क्या पकाया
क्या पहना
कहाँ गई
दिन कैसे कटा
बोर नहीं होती
उसके बाद
बात आ जाती है
पति पर 
बच्चों पर
फिर धीरे-धीरे वह आगे बढा
तुम्हारी दुखती रग पर हाथ रखा
तुम समझ पाती उससे पहले ही सब उगलवा लिया
सहानुभूति का मरहम लगाया
तुम्हारा दिमाग खराब 
मैंने ऐसा क्यों किया
तब बच कर रहना
जगह-जगह पर ऐसे लोग
काट भी लेते हैं 
पता भी चलने नहीं देते  ।

Friday, 5 August 2022

दर्द कैसे बयां करें

कैसे दर्द बयां करू अपना
किससे और कैसे करू
क्या कहूँ क्या न कहूँ 
दर्द की अदा ही निराली
उसे लफ्जों में कैसे बांधू 
यह तो छलिया है
आज किसी रूप में तो कल किसी रूप में 
हर कोई इसे नहीं समझ सकता
मन में दर्द समाया
तब भी मुख पर मुस्कान 
ऑखों में  झिलमिलाती बूंदे 
छिपते - छिपाते 
कभी बह ही पडती है
बांध तोड़ डालती है
इन ऑसूओ को कौन समझेगा
यह ऐसे ही नहीं निकलती
जब टीस होती है
तब मन जार जार रोता है 
कुछ दर्द भूल जाते हैं 
वक्त के साथ साथ
कुछ ताउम्र नासूर  बन कर रहते है
जरा सा छेड़ा क्या
भूत , वर्तमान  , भविष्य 
सब दिखाई देता है 
दर्द को कैसे और किससे बयां करें। 

Thursday, 4 August 2022

तर्क और सत्य

तर्क करना भी एक कला है
अपनी बात को इस अंदाज में रखना
सामने वाला निरूत्तर हो जाएं 
सही बात को भी गलत सिद्ध कर देना 
सामने वाले को बातों में हरा देना
आज टेलीविजन चैनलों पर यही हो रहा है
प्रवक्ता भी माहिर रिपोर्टर भी माहिर 

और राजनीति ही नहीं 
हर जगह यही लागू
अगर झूठ को भी तर्क द्वारा सिद्ध करो 
लेकिन वाकई क्या 
तर्क से सच में कोई झुक जाता है??
सच्चाई  , ईमानदारी  , नम्रता 
यह हमेशा  हावी रहेंगे
सच में किसी ने कहा है
सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं 

हर घर तिरंगा

तिरंगा तेरा 
तिरंगा मेरा
यह तो कोई बात नहीं 
तिरंगा तो सबका
सबकी आन और शान
यह तो हमारा गौरव
हर भारतवासी के दिल में बसता है
केसरिया , हरा और सफेद
शांति का संदेश देता अशोक चक्र 
बलिदानों की धरती
सुजलाम सुफलाम भूमि 
सबका प्रतीक है यह 
तिरंगे  की यात्रा इतनी आसान नहीं रही है
वह केवल कागज और कपडे का टुकड़ा नहीं है
हमारा अभिमान है
हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक है
वह लहरा रहा है जब तक लहर - लहर
हर भारतवासी निहार रहा भर - भर
हर घर फहराए 
गली - गली , डगर - डगर 
कोई जगह न छूटे
हर हाथ करे सलाम 
गर्व से सब कहें 
  झंडा ऊंचा रहें हमारा
 विजयी विश्व तिरंगा प्यारा 

स्वाद और रस

भोजन में स्वाद हो
जब मसाले और तेल हो
कुछ गर्म कुछ ठंड
कुछ तीखी कुछ कसैली 
कुछ चटक कुछ मटक
किसी का नाम काली मिर्च 
किसी का नाम धनिया
किसी का इलायची तो किसी का लौंग 
सबकी तासीर अलग-अलग 
सब मिलकर जान डाल देते हैं 
स्वादिष्ट बना देते हैं 
फिर वह चाहे दाल - चावल हो
पनीर - मटर और बिरियानी हो
शाकाहारी हो या मांसाहारी हो
छौंक और तडका जब लगता है
तब भोजन भी जानदार

यही तो स्वाद जीवन में भी चाहिए 
तभी तो जीने का रंग निखरेगा 
वह होते हैं अपने दोस्त 
हर दोस्त अलग-अलग 
फिर भी जब साथ मिल जाएं 
तब शमा तो रंगीन हो ही जाएंगी 
जीवन आसान हो जाता है
जब सब साथ मिलकर खिलखिलाते हैं 
तब पूरी प्रकृति उनके साथ हो उठती है
तब यह तो कह ही सकते हैं 
  मसालों बिना भोजन में स्वाद नहीं 
  दोस्त बिना जीवन में रस नहीं। 

Wednesday, 3 August 2022

खाना

भूखे भजन न होय गोपाला
भूखा होता है 
तब सूखी रोटी भी अच्छी लगती है
पूरी दुनिया पेट के इर्द-गिर्द ही घूमती है
हाँ सबकी खुराक अलग-अलग 
कोई कम कोई ज्यादा 
यह खिलाने वाले पर भी निर्भर 

अगर माँ खाना खिलाती है
तब वह चाहती है
उसकी संतान जितना खाए उतना कम
वह ठूस ठूस कर खिलाती  है

पत्नी का भी वही 
वह पति के खाने का ध्यान तो रखती है
लेकिन माँ के रूप में 
अपने बच्चों को ज्यादा तवज्जों देती है
उनके लिए वह हमेशा हाजिर

दोस्तों के साथ 
तब ठूंस ठूंस कर
सारी औपचारिकता को छोड़ 
मेजबान के यहाँ 
तब संभल कर 

कहते हैं 
खाने का क्या है
ऐसा नहीं है
खाने के साथ ही भावना , शरीर , स्वास्थ्य  ,मन
सब जुड़े होते हैं 
खाना खाने में 
खाना खिलाने में 
खाना परोसने में 
खाने वाली जगह में 
जो बात घर में 
जो बात अपनों में 
वह न होटल में 
न अतिथि रूप में 

भाषा और भावना

भाषा और शब्द जीवन का अहम हिस्सा 
इन्हीं के द्वारा हम समझ सकते हैं 
विचार - विमर्श कर सकते हैं 
भावनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं 
मान लीजिए 
भाषा न हो तब
भावना तो होती है
आज भी है
पहले भी थी
भावना समझना पडता है
मन के भीतर झांकना पडता है
आवाज मीठी हो या कर्कश हो
धीमी हो या तेज हो
भाषाओं का मुलम्मा चढा हो
आलंकारिक भाषा हो
वह ज्यादा देर तक नहीं चलती 
भावना सच्ची हो अच्छी हो
वह हमेशा के लिए प्रभावी होती है
भाषा से ज्यादा भावना से जुड़े 

वर्तमान को देखो

मुद्दा तो दूसरे बन गए
असली बात तो पीछे 
किसने किसको क्या बोला
किसका अपमान किया
इन सबसे तो पेट नहीं भरता
घर नहीं चलता
पढाई  - लिखाई नहीं होती
विकास न घर का न देश का
आज की स्थिति यही है
विकास का मुद्दा 
गरीबी और मंहगाई का मुद्दा 
स्वास्थ्य और शिक्षा का मुद्दा 
सामान्य जनता की समस्याओं के समाधान का मुद्दा 
सब बाजू में 
बस सब नेताओं के अपने  - अपने व्यक्तिगत मुद्दे 
बखिया उघेडी  जा रही
परत दर परत भूतकाल की
वर्तमान छूटा जा रहा
उसकी सुध नहीं 
किसने क्या किया था
यह अब छोड़ दो
आज को देखो
वर्तमान पर ही भविष्य की नींव