Tuesday, 1 April 2025

माॅ है ना मेरी

अपने रूप में भेजा तूने 
तुझको को देखा नहीं 
हां इसको तुझसे कुछ मांगते हुए जरूर देखता हूँ 
वह भी अपने लिए नहीं मेरे लिए 
हंसी आती है इस पर
सब कुछ तो यह पूरा करती है 
नाज - नखरे उठाती है 
यह तो कुछ भी कर सकती है मेरे लिए 
किसी से भी लड़ सकती है 
अगर तूने इसके हाथ में अधिकार दिया होता 
मेरा भाग्य लिखने का
तब तो शायद बात ही कुछ और होती 
एक कंकड़ भी नहीं चुभ पाता 
यह अपने ऑचल में ही छुपाकर रखती 
मुझे काम ही नहीं करने देती 
अपने ऑंखों से ओझल नहीं होने देती 
तू भी यह बात जानता है 
बेटा है न किसी का 
उसके बिना तो तू भी नहीं आया 
सबने भले भगवान को भगवान माना 
मां ने तो बेटा ही माना 
उसकी नजर भी उतारी 
डाटा भी मारा भी 
उसको तेरे मुंह में ब्रहांड नहीं दिखा 
मिट्टी जो खाया वह दिखा 
तूने भी जाना होगा उसे 
हमारी इच्छा भले न पूरी करता हो 
माँ की तो जरूर सुनता है 
तभी तो मैं तुझसे कुछ मांगता ही नहीं 
माँ है ना मेरी 

Monday, 31 March 2025

एहसास

जो बिछड़े वो बिछड़े 
वापस कहाँ मिले 
मन में ख्वाहिश थी 
फिर कभी मिलेगे 
वह कभी न पूरी हुई 
जो बादल बरस गये 
जो बरसात बीत गई 
वह वापस कहाँ लौटी 
राह में न जाने कितने साथी मिले 
कुछ बोला - बतियाया 
फिर उनसे मुलाकात कहाँ हुई 
न जाने कितने लोगों से मिलवाती यह जिंदगी 
रिश्तें - नाते बनते 
यारी - दोस्ती होती 
सब छूट जाते हैं 
बारिश की बूंदें फिर नहीं आती 
वह बरसात याद जरूर रहती है 
वह भीगना और मस्ती भी 
ऐसे ही छूट जाते हैं 
दूर चले जाते हैं 
मिलने की आस होती है मिल नहीं पाते 
बस उनके साथ बिताए पल याद रहते हैं 
वह एहसास याद रहता है 

Friday, 28 March 2025

अब तक समझ नहीं आया

बोलने का अधिकार हर किसी को 
सब बोलते रहे बस वह सुनती रही 
जब भी बोलना चाहा किसी न किसी ने चुप करा दिया 
बचपन में माॅ ने कहा था 
लड़कियां ज्यादा बोलती नहीं है चुप रहना सीखो 
कोई बोले तो बर्दाश्त कर लो 
शादी हुई ससुराल में बात - बात पर ताने 
जवाब नहीं देना था यही सिखाया था सो सुनते रहे 
पतिदेव भी जब तब आक्रोश उतारते रहे 
न गलती हो तब भी 
तब भी चुप ही रहे रिश्ता जो निभाना था 
माता - पिता की इज्जत का सवाल जो था 
अब बच्चें बड़े हो गए 
तब भी चुप रहना है 
क्या है आपको तो कुछ समझ ही नहीं आता 
ऐसे होते - होते ऐसा स्वभाव बन गया 
गलत को भी सही कहा सही माना 
कभी अपनों ने कभी परायों ने खूब  सुनाया 
अगर प्रतिरोध करना चाहा तो प्रतिबंध लगा दिया 
कभी झगड़ालू तो कभी वाचाल साबित कर दिया 
कभी जोरदार आवाज में घुड़क कर 
कभी हाथ छोड़कर 
ऐसा भी नहीं कि कोई मेरी उपेक्षा करता है 
बहुत प्यार करते हैं सब मुझसे 
माता - पिता ने भाईयों ने पति ने बच्चों ने 
भरपूर प्यार और सम्मान दिया और देते भी हैं
मैं घर की धुरी हूँ 
मेरे बिना पत्ता भी नहीं हिलता 
बस बोलना नहीं है सुनना है 
जो सब बोले वह करना और मानना है 
किसी की बात को मन पर नहीं लगाना है 
कोई माॅ है कोई भाई है कोई पति है कोई बच्चें हैं 
सब तो अपने उनकी बात का क्या बुरा मानना 
इसे अब आजादी कहें या बंधन 
अब तक समझ नहीं आया 

Tuesday, 25 March 2025

हमारा भी अधिकार है

हमको एक खुला आसमान चाहिए 
हमें भी अपनी उड़ान चाहिए 
हम नहीं चाहते हमारे पंखों को कतरा जाए 
जिम्मेदारियों के नाम पर हमें घर पर बैठाया जाए 
हम तो जिम्मेदार हैं ही 
तभी तो घर - परिवार चलता है 
उससे कहाँ भाग कर जाएंगे 
लेकिन हमारे सपनों का क्या 
हमारी काबिलियत का क्या
उसे केवल घर की चहारदीवारी में कैद कर रखना 
यह तो सरासर अन्याय है 
अधिकार तो हमें भी है 
अपनी मर्जी से जीने का 
जीने दीजिए ना 
हम अगर खुश तो पूरा परिवार खुशहाल