Sunday 19 May 2024

माॅ की मार

माॅ  के मारने पर हमसे ज्यादा चोट माँ को लगती थी
मार हम खाते थे ऑखों से ऑसू उसके आते थे
जो मारे वही दुलराए 
यही जिद भी होती थी हमारी
मार कर गोद में लेकर चुप कराना 
यह दूसरा कौन कर सकता है
न करेगा न कोई करने देगा
सही कहा है
माॅ की छडी फूल से भी ज्यादा कोमल होती है
वह लगती नहीं थी 
उसकी डांट और मार मन पर नहीं लगता 
उसमें भी एक मजा है
जिसने खाया हो वह ही जानेगा 

Friday 17 May 2024

मानव हूँ

मानव हूँ 
बडे भाग्य से यह जन्म मिला है
क्या-क्या नहीं देखना होता है 
विरह , पीडा , मृत्यु 
हर दंश को सहता है
जीवन फिर भी जीता है
कभी अपने लिए कभी अपनों के लिए 
प्यार- दोस्ती - वफा - रिश्ते 
इनके बीच में रहता है
नाजुक मन होने के बावजूद 
बडे से बडा आघात सहता है 
पेट भरने के लिए न जाने कितने जतन करता है
हर रोज लडाई लडता है
जीने की खातिर न जाने क्या क्या सहता है
मानव हूँ 

Thursday 16 May 2024

माँ का क्या ???

माँ सपने बुनती रहती है
माँ घर संवारती रहती है
माँ बच्चों का भविष्य बनाने का प्रयास करती रहती है
माँ सबका पेट भरती रहती है
माँ सबकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करती रहती है
माँ रात - दिन एक कर देती है
वह कभी शिकायत नहीं करती सब उससे करते रहते हैं 
उसकी हर बात में मीन मेख निकालते हैं 
वह हममें सब गुण देखती है
उसकी सुबह सबसे पहले और रात सबसे बाद में होती है
सोते सोते भी वह दूसरे दिन के बारे में सोचती है
वह अपनी पसंद का खाना भूल जाती है दूसरों की पसंद का बनाते बनाते 
वह तब भी खुश रहती है 
वह अपने संवारना भूल जाती है 
सपने भी अब अपने लिए नहीं अपनों के लिए देखती है
माँ न हो तो घर भी घर कहाँ लगता है
न जाने क्या-क्या सहती है
कितना टूटती है पर 
सबको जोडकर रखती है
स्नेह बंधन में बांधे रखती है 
माँ का क्या 
वह हमसे कहाँ कभी दूर होती है 

Tuesday 14 May 2024

जनता जनार्दन

क्या नहीं कर रही सरकार 
पांच किलो अनाज देकर पेट भर रही
चूल्हा जलाने की झंझट खत्म गैस जो दे रही
दवाई और अस्पताल का मंहगा खर्च का जिम्मा उठा रही
टायलेट बनवा रही
नया घर दे रही 
और चाहिए क्या 
रोटी - मकान का इंतजाम तो हो ही रहा है
सुबह-सुबह फारिग होने के लिए शौचालय 
ज्यादा फिर सोच क्यों??
बेकारी - मंहगाई से क्या लेना देना
विकास और देश की समस्याओं पर क्यों चर्चा 
गाना सुना था 
दाल - रोटी खाओ 
प्रभु के गुण गाओ
मंदिर भी बन ही रहे हैं 
अब इससे ज्यादा क्या चाहती जनता 
ज्यादा तो चाहिए नेताओं को
अपनी दो - चार पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए 
आम जनता खास बनकर क्या करेंगी 
वह खास बस चुनाव के समय होती है
पहले नेता हाथ जोड़ते हैं 
बाद में वह जोडती है
उसको एहसास कराते हैं तुम्हारा राज
बाद में स्वयं राज करते हैं 
यही होता है प्रजातंत्र में 
जनता तो जनार्दन है 
पर उसका हाल ????