Wednesday, 20 August 2025

आज नहीं तो कल

सब कुछ खत्म नहीं होता 
कुछ न कुछ बचा ही रह जाता है 
यही बचा तो जीवन में फिर खड़ा होना सिखाता है 
मझधार से नैया किनारे भी पहुंचती है 
हमेशा डूब ही नहीं जाते 
तैर कर बाहर भी आ जाते हैं 
ईश्वर की मर्जी हुई 
तब क्या कहने 
लहरें ही किनारे पर ला फेंक देंगी 
बस हिम्मत रखना 
समय बदलता जरूर है 
आज नहीं तो कल
कल नहीं तो परसों 

Tuesday, 19 August 2025

वक्त

खुशनसीब हैं वे 
जिनको जिंदगी बनी - बनाई मिलती है 
हमारा शुमार ऐसे लोगों में नहीं
यहाँ तो पग - पग पर अड़चनें 
उसमें से जितना हुआ उतना बनाया 
तभी तो समय लगा
सबको सब कुछ नहीं मिलता 
वक्त बुरा होता है 
आदमी नहीं 
वक्त जो न कराए वह कम 

मैं अकेला रह गया

देखते - देखते सब उड़ गए 
वृक्ष अकेला खड़ा देखता रह गया 
सबने अपना आशियाना बना लिया 
उस आशियाना को छोड़ चले 
जहाँ कभी इकठ्ठा होकर रहते थे 
हंसते थे खिलखिलाते थे 
एक दूसरे के करीब रहते थे 
लड़ते - झगड़ते भी थे 
मान - मनुहार भी करते थे 
मैं मन ही मन मुस्कराता था 
देखकर आनंदित होता था 
उनका भविष्य का सोचता था 
वे कब आत्मनिर्भर बनेगे 
अपना जीवन बनाएंगे 
उड़ान भी भरेंगे 
आखिर उन्होंने उड़ान भरी 
अपना आशियाना भी बनाया  
मैं भी तो यही चाहता था 
अब फिर दुखी क्यों हूँ 
यह तो होना ही था 
संसार का नियम है 
यहाँ स्थायी कुछ भी नहीं है 
यही बात तो संबंधों पर भी लागू होता है 
अकेलापन खलता है 
खोखला भी तो हो रहा हूँ 
कब जाने गिर पड़ू 
आग में जल राख बन जाऊ 
अकेला ही आया 
अकेला ही जाऊंगा 
अफसोस क्यों करू 
जी भर जीया 
मन भर मरु 
जहाँ से आया 
वहीं फिर से कूच करु 

Monday, 18 August 2025

याद रखना

कितना भी उड़ान भर लो 
कितनी भी उंचाई पर पहुँच जाओ 
कितनी भी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ जाओ 
अपने अतीत को कभी न भूलना 
अपने संघर्ष को हमेशा याद रखना 
समय- समय पर पीछे मुड़कर देख लेना 
ताकि मन में अभिमान न हो 
अपने पर गुरुर जरूर हो 
अपनी काबिलियत पर नाज हो 
ऐसी विषमता से हासिल हुआ जो 
उस उपलब्धि को संभाल कर रखना 
उन दिनों को उन लोगों को भी याद रखना 
जो आपके इस मुकाम में आपके साथ रहे हो 
ईश्वर को धन्यवाद देना 
तुम काबिल होगे 
उसकी कृपा के बिना कुछ नहीं होता 
नजरे आसमान पर 
पैर जमीन पर

मैं और हम

मैं कभी टूटी नहीं 
न कभी न अभी 
ऐसा कुछ तो है 
जो जीने की वजह हो 
सोच कर देखा 
वजह की कमी नहीं 
अपने लिए न सही 
दूसरे ही सही 
प्रेम का पलड़ा हमेशा भारी रहा 
उसने कभी टूटने ही दिया 
जब - जब निराशा आई 
वो सामने खड़ा हो गया 
तुम्हारी जिंदगी क्या केवल तुम्हारी 
मानो यह प्रश्न कर रहा 
तब लगा 
नहीं यह ठीक कह रहा 
हम केवल हम ही नही
मैं तो अकेले नहीं 
तभी तो हम हूँ 
इस हम में बहुत से लोग शामिल है 
उनके सपने - आशा - आंकाक्षा हैं 
उनको तोड़ना उचित नहीं 

दिल तो दिल है

आंकड़ों का खेल है यह जिंदगी 
जन्म से ही तारीख की शुरुआत 
फिर तारीख पर तारीख और दिन
गिनते जाते हैं 
जन्म तारीख के साथ- साथ और भी अंक साथ- साथ 
कक्षा  , रोल नंबर , उम्र 
पैसे , शादी-ब्याह के मेहमान सब संख्या में 
रिश्तेदारों की गणना 
स्टेटस,  तनख्वाह , बच्चे
गुणा- गणित चलता रहता है 
एकाउंट नंबर,  पैन नंबर  , मोबाइल नंबर 
मकान नंबर 
नंबरों का अंबार
आखिर में उम्र का नंबर आ जाता है 
कुछ के नंबर नहीं गिन सकते 
वो है अपनापन,  भावना , दया , ममता , करुणा 
सुख - दुख  , खुशी - रुदन, आँसू- मुस्कान 
प्यार- त्याग,  समर्पण 
इनकी गिनती नहीं 
न ये गिने जा सकते हैं 
न तराजू में तौले जा सकते हैं 
बस महसूस किया जाता है 
इसमें न सौदा न घाटा - मुनाफा 
जोड़ना- घटाना , हिसाब- किताब 
मन क्या जाने 
वह तो मजबूर है 
भावना के वशीभूत है 
सही है 
दिल तो दिल है 
इसका क्या कीजै  


Sunday, 17 August 2025

मैंने जाना

मैं मौन था
सहज था 
आशान्वित था
कमजोर नहीं था 
प्रेम से भरा था
कोमल मन था 
झूठा कौशल नहीं धा 
चतुरता नहीं थी 
तुमने चतुराई दिखाई 
कुशलता से अपनापन दिखाया 
मैने दिखावा को सच समझा 
तुमने उसका फायदा उठाया 
अपने फायदे के लिए मेरी भावनाओं से खेला 
मैंने तो दिल खोला था 
तुमने उसको आईना दिखाया 
अब समझ में आया 
मैने तुमको अपना माना 
तुम तो गैरों से भी ज्यादा गैर निकले 
चलो अच्छा ही हुआ 
जानते तो थे तुमको 
पहचानते नहीं थे 
आज पहचान भी लिया 
राह बदल दी 
अब न तो कोई नाता 
बस स्वयं से वास्ता 

ऐ मेरे हमसफर

सुबह हो या संध्या 
हमेशा हाथ थामे रखना पिया 
तुमसे ही जीवन की डोर बंधी 
तुमसे ही आस है 
लगता हर वक्त तुम मेरे साथ हो 
तुम साथ हो तो जहां का क्या 
जहाँ तुम वहीं मेरा जहां 
ऐसे ही बंधा रहे 
यह रिश्ता बना रहे 
हम - तुम साथ- साथ चलते रहे
जीवन गीत गाते रहे 
सफर कटता जाएगा 
हर मुश्किल हल होगी 
जीत हमारी होगी 
हाथ मत छोड़कर जाना कहीं
ऐ मेरे हमसफर 

Saturday, 16 August 2025

सब जगह वे ही वे

श्री कृष्ण कहाँ  हैं 
ये कैसा प्रश्न है 
श्री कृष्ण कहाँ नहीं हैं 
ये भी तो कैसा प्रश्न है 
तब ??
तब फिर प्रश्न ही क्यों 
जो सर्वज्ञ है 
घट - घट वासी है 
हर आत्मा में जिसका वास 
वो ही तो हैं जगन्नाथ 
उन पर तो प्रश्न ही नहीं बनता 
संदेह नहीं भक्ति  
देखो दिखाई देंगे 
बुलाओ आएंगे 
महसूस करो होंगे 
रम जाओ 
कृष्ण मय हो जाओ 
पार्थ बन जाओ 
सारथी बन जाएंगे 
रथ भी हांकेंगे 
राह भी दिखाएंगे 
जीवन नैया के तो वे ही खिवैया 
कृष्ण को मत ढूढ़ो 
अपने अंदर के पार्थ को ढूढो 
उस विराट को  जान लो 
सब जगह वे ही वे 

आज समय का जन्म हुआ था

आज जन्म हुआ था 
सुदर्शन चक्र धारी का 
देवकी के पुत्र और यशोदा के लाला का
कंस का वध करने वाले का 
गोपालक का नाग नथैया का 
गोवर्धन धारी और द्वारकाधीश का 
गोपिया और राधा के प्रियतम का 
रुक्मणि,  सत्यभामा के पति का 
गरीब सुदामा और ज्ञानी उद्बव के सखा का
बुआ कुन्ती के भतीजे और द्रौपदी के सखा का 
अर्जुन के मित्र और अभिमन्यु के मामा का 
बहन सुभद्रा और बलभद्र के भाई का 
दुर्योधन छोड़ विदुर घर साग खाने वाले का 
विराट रूप धारी नारायण का
भगवतगीता का उपदेश देने वाले कृष्ण का 
अस्त्र-शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा करने वाले सुदर्शन चक्र धारी का 
द्वारका पुरी के रण छोड़ दास का 
माता गांधारी के शाप को स्वीकार करने वाले वासुदेव का 
अपनी ही मृत्यु को तीर द्वारा स्वीकार करने वाले का 
कभी बंशी की धुन और यमुना की धारा 
कभी रथी और कुरुक्षेत्र का मैदान 
मथुर,  गोकुल,  मथुरा और हस्तिनापुर 
चक्कर लगाते रहे 
समय का चक्कर चल रहा था 
आज का दिन जन्म के समय का नहीं था 
समय के जन्म का था 
अत्याचार से परिपूर्ण धरती को मुक्त कराने वाले के जन्म का था 
हाथी - घोड़ा - पालकी 
जय कन्हैयालाल की 

Happy Janmashtami

आज तो यशोदोत्सव है 
माॅ यशोदा के लाला का जन्मोत्सव 
त्रिलोक के स्वामी जिसकी गोद की शोभा हो 
ऐसा सौभाग्य। 
जिसकी गोद में भगवान स्वयं पहुंचे 
बिना जन्म दिए कान्हा की माता बनी 
और वह भी जिसके आगे तो कृष्ण भी चित्त 
तो आज का दिन तो उनका है
जन्म देने वाली ही माॅ नहीं होती 
ममता बड़ी होती है 
देवकीनंदन तो वे जन्म जात है 
लेकिन यशोदानंदन तो स्थायी रूप से है 
माता - पुत्र का यह बेजोड़ प्रेम 
हर मिथक को झुठला देता है 
माँ बस मां होती है 
उसकी ममता उसका प्यार सर्वोच्च 
Happy Janmashtami 

Thursday, 14 August 2025

स्वतंत्रता दिवस आया है

स्वतंत्रता दिवस आया है 
खुशियां साथ लाया है 
वैसे तो हर वर्ष आता है 
हम जोश से मनाते हैं 
झंडा फहराते हैं 
छुट्टी का उपभोग भी करते हैं 
क्या हो रहा है देश में 
क्या हो रहा है समाज में 
क्या हो रहा है पड़ोस में 
क्या हो रहा है परिवार में 
हम सबसे अंजान 
देश - दुनिया से बेखबर 
अपनी ही दुनिया में मस्त 
यह तो स्वतंत्रता नहीं है 
जागरुकता जरूरी है 
अपने अधिकार के प्रति सजगता भी 
देश के नागरिक 
इन नागरिकों से देश बनता है 
हर एक की भागीदारी जरूरी है 
जंगल में मोर नाचा उससे हमें क्या 
हमने तो नहीं देखा 
कोई शासक आए 
हमें क्या 
पड़ोसी से युद्ध हो 
हमें क्या 
हम शांति से घर में बैठे हैं ना 
कोई भी विवाद हो 
न हमें बोलना न बीच में पड़ना 
यह बात शायद हमारे स्वतंत्रता के बलिदानियों ने नहीं सोची होगी 
अगर ऐसा तो जवाहर जेल में नहीं रहते 
सुभाष बाबू प्रशासनिक नौकरी को लात नहीं मारते 
गांधी नंगे फकीर बन नहीं घूमते 
भगतसिंह इश्क की पेंगे लड़ाते 
आजाद , आजादी से घूमते , भेष बदल कर भटकते नहीं 
लेकिन नहीं 
इनको देश से प्यार था 
स्वतंत्रता माझा जन्म सिद्ध हक्क आहे 
वह हमें मिलना ही चाहिए 
तिलक - गोखले भाषा विवाद में नहीं पड़े 
तब सब भारतीय थे 
नमक सबका था 
रगों में खून हिन्दुस्तानी था 
कोई अशफाक था तो कोई खुदीराम था 
भारत सबका था 
आज भी है 
इस मां से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता 
जननी की रक्षा- सुरक्षा  भी तो हमारा कर्तव्य है 
अधिकार तो है जिम्मेदारी भी तो है 
यही तो हर साल आजादी आकर हमें बताती है 
कुछ याद उन्हें भी कर लो 
जो लौट के घर ना आए  

चलता चला जा रहा

सफर तो लंबा है 
कितना लंबा यह तो नहीं जानता 
बस चल रहा हूँ 
मंजिल तक पहुंचुगा 
यह तो विश्वास है 
आशा और विश्वास के साथ 
दृढ़संकल्प के साथ चलना शुरु है 
बाधा तो है 
इतनी आसान भी नहीं मंजिल 
हार नहीं मानूगा 
चलता ही रहूंगा 
जब तक न मिले मंजिल 
संघर्षों से मैं अंजान नहीं 
मेहनत से घबराहट नहीं 
हिम्मत से सराबोर मैं मुसाफिर 
चलता चला जा रहा 
बस रुकना नहीं 
मायूस होना नहीं 
हार मानना नहीं 
यही सोच कदम बढ़ाता जा रहा 
मैं चलता चला जा रहा 

Wednesday, 13 August 2025

जमाना बदल गया

काश दरवाजे पर दूधवाला आया होता 
जो बैठे - बैठे घर - गृहस्थी की बातें करता 
सुख - दुख मे भी शामिल होता 
काश वह खारी - बिस्कुट वाला होता 
जो बड़े से बक्से में खारी , टोस्ट,  नान खटाई भरा होता 
जब अपना पिटारा खोलता बच्चे इर्द-गिर्द झांकते रहते 
काश वह कपड़े वाला होता 
तरह-तरह के सबके लिए 
अपने कपड़े के गठ्ठर फैला बैठता
काश वह भाजी वाली होती 
भाजी की टोकरी ले घर-घर घूमती 
चिल्लाती तो सब उसके सुर में सुर मिलाते 
काश वह पोस्ट मैन चाचा होते 
रिजल्ट लेकिन आते तो सब उत्सुक रहते जानने को 
ऐसे न जाने कितने थे 
जिनसे अपनापन था 
बनिया की तो हर दीवाली मिठाई के साथ कैलेंडर होता था 
हर बार मोलभाव नहीं होता 
बच्चों को तो कुछ न कुछ मुफ्त में मिल जाता 
कभी बिस्कुट तो कभी कटोरी में दूध 
समय था सबके पास 
आते थे सुस्ताते भी थे 
हक से मांग पानी पीते थे 
टेलीफोन वाला 
मिस्री - मैकेनिक 
सफाई वाला 
कपड़े धोने वाला 
बाल काटने वाला 
दर्जी , दरबान
सब थे हमारे पहरेदार 
न जाने ऐसे कितने वाला होते थे 
जिनसे एक रिश्ता सा होता था 
अब तो वह बात नहीं रही 
वे लोग नहीं रहे 
वाला बदले माॅल आए 
भीड़ में सब कहीं खो गए 
न वे रहें 
न हम भी वह रहें 
न किसी पर विश्वास रहा
बस उनकी याद ही रहीं 
जो गाहे - बगाहे आ जाती है 
अब तो पानी पिलाने में भी डर
बात से भी डर
हर व्यक्ति संदेह के घेरे में 
रेल के सफर में भी दोस्ती हो जाती थी 
अब तो पड़ोसी से भी दूर हैं
सच में जमाना बदल गया 
बहुत कुछ साथ ले गया 

भला हर जीव का

कबूतर , कुत्ता या और कोई 
जीने का हक सबको 
शेर को भी है चूहे को भी है सांप को भी है
अपनी रक्षा - सुरक्षा का हक भी है 
कोई आक्रमण करेंगा तो हम देखते तो नहीं रहेंगे 
लाठी - डंडा या और कुछ का प्रयोग जरूर करेंगे
जीव भी तब तक जब तक किसी जीव की हानि न हो 
अगर संकट है तो उपाय करना पड़ेगा
वहाँ से हटाना पड़ेगा 
कबूतर को दाना डालो लक्ष्मी माता प्रसन्न 
कुत्ते को तो भैरव बाबा प्रसन्न 
न जरूरत है तब भी भोजन दो 
हम सुरक्षित दुनिया जाए भाड़ में
मैंने तो अपने लिए जीव सेवा कर पुण्य कमा लिया
किसको सांस और गले की तकलीफ हो 
किसी के बच्चे को काटे 
लोगों की जान जाएं 
हम तो शांति के पुजारी है 
अहिंसा परमो धर्म है 
ठीक है करो 
लेकिन दूसरों को परेशान कर नहीं 
कुछ ऐसा करो 
सबका भला हो 
केवल तुम्हारा या कबूतरों का नहीं 
हर जीव का 


संभल जाओ ऐ मानव

खोदो , खोदो ,खोदो 
कितना खोदोगे 
मेरा हक छीनोगे 
मैं चुपचाप देखती रहूंगी 
यह कैसे समझ लिया 
माना कि देना मेरा स्वभाव है 
सदियों से दाता हूँ 
तुम्हारा भी तो फर्ज है
छाया देने वाले को ही काट रहे हो 
पानी देनेवाले को ही पाट रहे हो 
प्राण देने वाले को ही प्रदूषित कर रहे हो 
कितना स्वार्थी हो गए तुम
यह तो तुम्हें ले डूबेगा 
किसको निहारोगे 
किसके साथ लहराओगे 
क्या खाओगे क्या पीओगे 
कभी मेरी पूजा करने वाले 
मुझे मान सम्मान देने वाले 
अभी भी समय है
मैं तो माता हूँ 
मेरा आंचल मत खाली करो 
मुझे लहू-लुहान मत करो 
मैं तो तुमको जी भर दुलराना चाहती हूँ 
तुमको दुखी नहीं देखना चाहती 
अगर खुशी चाहिए 
अपनी सलामती चाहते हो 
तो मुझे छेड़ों मत
यह सलाह भी है 
चेतावनी भी है 
न माना तो दंड भी निश्चित है 
संभल जाओ 

Tuesday, 12 August 2025

वह एक कहानी

वह मोटी सी 
वह छोटी सी 
वह भोली सी 
वह पागल सी 
वह नटखट सी 
वह हंसती रहती 
खाती रहती 
सोती रहती 
सपनों में खोई रहती 
कहानी - कथा से प्रेम करती 
सबसे अंजान अपने में ही मस्त रहती 
उछलती- कूदती रहती 
न उसे अपना भान न संसार का ज्ञान 
यह सब तो है बचपन की बात 
न जाने कब बड़ी हो गई 
सब कुछ भूल गई 
जिम्मेवारियों तले दब गई 
हंसना तो जैसे भूल ही गई 
सपने देखना छोड़ दिया 
नासमझ से समझदार बन गई 
जिम्मेदारियों तले दब गई 
वह स्वयं एक कहानी बन गई 

मतलब के मीत

डर - डर के जीना भी क्या जीना 
होता कुछ और है 
डर - डर के ही सारी उम्र जीता है 
कभी अपनों के लिए कभी अपने लिए 
वर्तमान के लिए भविष्य के लिए 
सुखद जीवन के लिए 
बचता रहता है 
बचाता रहता है 
फिर भी जो घटना है वह घटता ही है 
कुछ नहीं कर पाता 
कोई बुरा न मान जाए 
कोई साथ न छोड़ दें 
अकेला न पड़ जाऊ 
जायज - नाजायज सब स्वीकार करता है 
कभी आत्मसम्मान को गिरवी रखता है 
कभी गुरुर को ताक पर
गुजारना है दुनिया में 
इन सबके बीच ही रहना है 
न जाने कितना पीसता है दो पाटे में 
उसका अस्तित्व तो रहता ही नहीं 
कठपुतली सा नाचता है 
दुनिया तो फिर भी खुश नहीं होती 
मत डरो 
डरों तो ऊपर वाले से 
कोई किसी का सगा नहीं
मतलब के मीत है

Monday, 11 August 2025

काश ।

जो हुआ अच्छा हुआ 
यह न होता तो वह 
वह न होता तो कुछ और होता 
जो भी होता , होता तो जरूर 
हमारा तो उस पर वश नहीं 
सोचा तो बहुत कुछ 
वैसा हुआ तो नहीं 
कुछ ऐसा हुआ 
इसलिए वैसा नहीं हुआ 
इस - उस , ऐसे - वैसे 
हम तो उलझे हैं उसमें 
सुलझाते - सुलझाते खर्च होते रहते हैं 
बीतते रहते हैं 
एक दिन बीत भी जाते हैं 
हाथ मलते रह जाते हैं 
काश वैसा हुआ होता तो 
काश की आस में सब रह जाता 
वह काश कभी न आता 

राख

राख को देखा 
सब कुछ खाक देखा 
नहीं रहता कुछ बाकी 
सब कुछ खत्म हो जाता 
आग से ही राख है 
नश्वरता का नाम है 
सजीव- निर्जीव सब इसमें समाते 
अस्तित्व खत्म कर जाते 
सुलगती रहती जब तक ठंडी न हो जाती 
ठंडी तब होती जब नाश हो जाता 
अग्नि उर्जा है 
राख खाद है 
मिट्टी में मिल कर एक्सर हो जाना उसका काम है 
जिस बीज से वृक्ष 
उसी वृक्ष से आग 
फिर सब राख 
यही है जीवन चक्र 

Sunday, 10 August 2025

जग की यही है रीत

मैंने उससे अपनी बात कहीं थी 
दुख - दर्द साझा किया था 
उसने तो उसका विज्ञापन ही कर डाला 
छिपी बात को भी सार्वजनिक कर डाला 
मैंने तो उसे अपना समझा 
उसने मेरे बारें में सबको समझाया
अब तो जहाँ से गुजरू 
हर ऑख मुझे ही देखती है 
कुछ फुसफुसाती रहते हैं आपस में 
कुछ व्यंग्य से मुस्कराते हैं 
जो मुझे नहीं जानते थे 
वह भी जानने लगे 
मुझे तो जैसे प्रसिद्धि प्राप्त हो गई 
वह तो सामान्य है मुझे असामान्य बना दिया 
कहती है मैं तेरी दोस्त हूँ
मन का भार हल्का हो जाएगा 
कैसे कहूं कि 
तूने तो उसे भारी बना दिया 
बात को कहाॅ से कहाॅ पहुंचा दिया 
अब तो सोच लिया 
मन की बातें मन में 
नहीं कहना किसी से 
यहाॅ कोई नहीं किसी का 
सब मतलब के मीत
जग की यही है रीत 

Saturday, 9 August 2025

बहन आई है

बहन आई है 
खुशियां आई है 
कुछ यादें साथ में लाई है 
बड़े - बड़े अरमानों के साथ पधारी है 
कहीं कसर न रह जाए 
इसका भी ध्यान रखा जाए 
स्वागत करना मन से 
दिल उसका प्रसन्नता से भर जाएं
पुराने पलों को जी भर जी ले 
घर में रौनक छाई है 
हर जगह बहार है
घर का कोना - कोना तरंगित है 
हंसी के ठहाके लग रहे हैं 
नोक-झोंक भी बरकरार है 
बचपन जीवंत हो उठा है 
उम्र भूल बच्चे बन बैठे हैं 
जवानी की दहलीज पार हुई
बुढ़ापा दस्तक दे रहा 
मन फिर भी पीछे ही अटका है 
आज सब भूल जाने को जी करता है 
गिले - शिकवे वो भी अपनों से 
नहीं भा रहा है 
मन में बस प्यार उमड़ रहा है 
सहोदर है हम 
नहीं दूर हैं हम
मन से मजबूर हैं हम
बिन उसके सब कुछ है फीका 
उसके आगे सब है रीता 
माँ जाई है वह
तभी तो मन को हमेशा भायी है 
उसक न कोई दूजा 
वह तो है मेरी बहना 
उसका क्या कहना 
बहन आई है 

ऐ मेरे भाई सुन

ऐ मेरे भाई सुन
तू मुझे बहुत प्यारा 
मेरी संतान तो बाद में 
उनसे पहले तू ही है 
हमेशा मंगल कामना की है ईश्वर से 
बचपन से ही तेरी कवच बन खड़ी हूँ 
तुझ पर न कोई आंच न आएं
मां जाया है तू 
सहोदर एक ही बार मिलते हैं 
अमूल्य रिश्ता जो खून से बंधा होता है 
एक संतान और दूसरा भ्राता 
एक जन्मजात दूसरे को जन्म 
बहुत दुर्लभ संबंध है
इसे समझना सबके बस की बात नहीं 
कोई भी बहन कैसी भी हो 
अपने भाई का बुरा कभी नहीं सोच सकती 
उसे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए 
बस दिल से प्रेम और सम्मान चाहिए 
वह भाई में अपने पिता की छवि देखती हैं 
बहन अगर अभाव में न हो 
तब तो उसे बस अपनापन का भाव चाहिए 
संपत्ति नहीं 
एक वही है 
जो अपने मायके की बड़ाई करने में झूठ बोलने से नहीं हिचकती 
उसे गुरुर होता है अपने ब्रदर पर
इसे समय-समय पर जताने में वह कभी नहीं हिचकती
भैया के सामने सैया रहता फीका 
जिसके विरोध में एक शब्द न बर्दाश्त कर सकती 
वह होती है बहना 
उससे संबंध कभी न तोड़ना 
ऐ मेरे भाई सुन
तुझसे ज्यादा न कोई प्यारा 
तू तो है मेरे जिगर का तारा 

Friday, 8 August 2025

प्रकृति का प्रकोप

मत छेड़ो प्रकृति को 
वह कब तक सहन करेंगी 
आप खोदते रहोगे 
तोड़ते रहोगे 
वह घायल होती रहेंगी 
सिसकियाँ भरती रहेंगी 
आप उस पर आलीशान होटल बनाओगे 
बंगले और होम स्टे बनाओगे 
मौज - मजा करोगे 
वह तो निहारने के लिए है 
सौंदर्य का आस्वादन लेने के लिए हैं 
न जाने कितनी बड़ी दाता है 
लेकिन उसकी भी एक सीमा है 
वह भी रौद्र रूप धारण कर सकती है 
उसकी एक करवट सब कुछ तहस - नहस कर देती है 
पूरा का पूरा शहर लील लेती है 
फिर जमीन पर ला पटकती है 
बड़ा भयावह मंजर होता है 
सब कुछ एक झटके में खत्म 
सदियों लग जाएंगे संवरने में 
तब भी सामान्य नहीं हो पाएगा कुछ 
अपनों को जिसने खोया है 
वह तो आने से रहें 
बरसों की मेहनत पर पानी फिर गया 
कैसे रहेंगे वे 
फिर से अपने को स्थापित करेंगे 
वे वहाँ के स्थानीय लोग हैं 
प्रकृति ने अपनी गोद में ले उन्हें दुलराया है 
उसे छोड़कर कहाँ जाएंगे 
डर लगता है 
क्या यहीं जीवन है 

घूरे के दिन भी तो फिरते हैं

माॅ कहती थी 
मत निराश हो 
समय जरुर बदलता है 
बारह साल बाद तो घूरे के दिन भी फिरते हैं 
मैं भी सोचता रहा 
क्या सच में ?? 
सबने मुझे घूरा ही समझा 
न जाने क्या-कुछ नहीं किया - कहा
मैं सहता रहा 
लड़ता रहा 
कभी बाहर कभी अंदर
नियति का खेल देखता रहा 
कर्म करता रहा 
हिम्मत नहीं हारी न हारूंगा 
विश्वास है आशा है
परिस्थितियां जरूर बदलेगी 
मैं बैठा नहीं हारकर 
आखिर जिंदगी भी तो भरोसे पर ही टिकी है 
अपना भी वक्त आएंगा 
कब यह तो पता नहीं 
तब तक चलना ही है 
घूरे के दिन भी फिरते हैं तो अपना क्यों नहीं 
वह भी तो कचरे से एक दिन खाद बन जाता है 
उसका भी मोल हो जाता है 
तब तो हम मानव है 
सबसे अनमोल हैं 


Friday, 1 August 2025

वर हो तो शिव सा

श्रावण का महीना 
शिव जी की आराधना 
हर कन्या की मनोकामना 
शिव जी जैसा वर
क्यों ??
राम ,कृष्ण,  विष्णु जैसे क्यों नहीं 
जो कैलाश पर विराजे हैं महलों से दूर 
सर्प हैं गले में 
राख - भभूत मले हैं शरीर में 
क्रोध में उनसे किसी का मुकाबला नहीं 
औघड़ हैं वे फिर भी प्रिय हैं 
एक बात तो हैं उनमें जो सबसे अलग है 
वे न पैर दबवा रहे हैं विष्णु की तरह 
उन्होंने पत्नी को नहीं त्यागा राम की तरह
वे कृष्ण नहीं कि प्यार किसी से ब्याह किसी से 
वे गौरा को समानता का दर्जा दिए हैं
उनके साथ विराजे हैं 
परिवार के साथ हैं 
भले सब का स्वभाव अलग - अलग हो 
वे तो नंदी , सांप , बाघम्बर,  शीतल गंगा , चंद्रमा के साथ हैं 
किसी को अपने गले में धारण किया है 
किसी को सर पर बिठाया है 
शक्ति होकर भी भोले हैं 
जल्दी प्रसन्न होते हैं 
पत्नी को और कुछ नहीं पति का साथ चाहिए 
तभी तो वर शिव जैसा हो 
यही तो सब कुवारियां चाहती है