Saturday, 22 June 2024

न पूछना किसी की कमाई

वे घर आए हमारे 
हम खुश हुए 
आव भगत की 
अतिथि धर्म है 
घर में आए का स्वागत 
पैसे वाले हैं 
बात करते-करते पूछ बैठे 
कितनी आमदनी है
क्या करोगे पैसे का 
यह वह शख्स है जो 
पैसे वाला है 
संपत्ति शाली है
हम तो बस जोड़ जोड़ गृहस्थी चलाने वाले 

अब क्या कहें इनसे 
अतिथि जो थे 
कुछ कह देंगे तो बुरा मान जाएंगे 
पर कहना था 
यह पहली बार नहीं था 
पूछा उनसे 
आप बताओ क्या करोगे 
इतना पैसा है उसका 
पैदायशी अमीर 
तब इधर-उधर की बातें करने लगे 

लोगों की आदत होती है
दूसरों की कमाई पूछने की 
भले अपने पैसों में खेल रहे हो
नीचा दिखाना है या ताना है 
यह समझ नहीं आता 
अपनी छोड़ दूसरों की पड़ी 
पैसे से तौलते हैं लोगों को 
भले एक धेला खर्च न करें किसी पर 
किसी के घर जाएं तो भी खाली हाथ 
अरे आप गए हैं मिलने 
प्यार और अपने पन का आदान-प्रदान करने 
अगर आप से बात की है 
सुख - दुख की बात करें 
मत कुछ करें सुन ही ले 
घाव पर नमक न छिड़के 
अपनी हैसियत को मत दिखाएं 
कहा गया है ना 
किसी से उसकी उम्र और कमाई नहीं पूछनी न बतानी 
प्रेम से बतियाएं और दिल में जगह बनाएं 

मजबूत बनना है मजबूर नहीं

हमने चलना शुरू ही किया था
लोगों ने रोकना शुरू कर दिया 
राह में रोड़े अटकाने लगे
रास्ता भी रोकने लगे 
हमने रास्ता बदल लिया 
चलना नहीं छोड़ा 
चलते रहे चलते रहे
हर राह की बाधा पार करते रहें 
यह सब सीखा है हमने प्रकृति माँ  से 
पतझड़ तो आते ही है 
लेकिन वह जीना नहीं छोड़ती 
हंसती - मुस्कराती रहती है
डोलती रहती है
झूमती रहती है
उसे पता है
वसंत भी आएगा 
यह वक्त भी बदलेगा 
यह एक जैसा नहीं रहता 
आज हरा - भरा कल झड़ा 
तब भी तनकर खड़ा रहा 
धूप की भट्टी में तपता रहा
ऑधी- तूफान को झेलता रहा
शीत में ठिठुरता रहा 
नहीं तब भी घबराया 
उसको पता है 
सूरज निकलेगा और अस्त भी होगा
अगले दिन फिर आएगा जोश से 
अंधेरा दूर जो करना है 
आना - जाना तो लगना ही है
जब तक जीवन है तब तक थपेडों सहना ही है 
मजबूत बनना है मजबूर नहीं 

Wednesday, 19 June 2024

जाने दो

बच्चे विदेश जा रहे हैं 
बच्चे दूसरे शहर में जा रहे हैं 
अरे जाने दो 
उनको उड़ान भरना है 
अपने सपने पूरे करने है
आपके सपने भी उसमें शामिल हैं 
क्या इसलिए पंख दिए थे
जाना तो सबको है
एक न एक दिन
इसलिए किसी को जकड़ कर रखना है
प्यार का वास्ता देकर 
पुराने पत्ते गिरते हैं 
नए पत्ते आते हैं 
कोई जीव का बच्चा साथ नहीं रहता 
सब साथ छोड़ जाते हैं 
फिर मनुष्य अपवाद क्यों 
सबसे अक्लमंद प्राणी 
आना - जाना है
प्रकृति का यही खेला है 
कोई इससे नहीं अछूता 

मैं चल रहा हूँ

मैं बैठा रहा 
सोचता रहा
सपने बुनते रहा 
यह करूगा वह करूंगा 
ख्वाब तो बुने बड़े बड़े 
उठा नहीं चला नहीं 
यहीं मैं चूक गया 
सोचा था कुछ 
सोच रहा हूँ कुछ 
अब क्या 
कुछ नहीं 
यह तो होना ही है 
अब उठ खड़ा हुआ हूँ 
चलना भी है
दौड़ना भी है
गिरने का डर नहीं 
उठने की चाह 
सपने भी साकार 
आज नहीं तो कल
हम चल पडे हैं 
वक्त भी चल रहा साथ 
मंजिल दूर नहीं 
देख रहा हूँ यहीं से 
बस पहुँच रहा हूँ 
मैं चल रहा हूँ। 

Tuesday, 18 June 2024

उठो द्रौपदी

हर बार द्रौपदी ही क्यों ठहराई जाती है दोषी 
कभी दुर्योधन को किया था कटाक्ष 
वह वैसे तो था मजाक
उसको वैसे ही हंसकर उड़ा दिया जाता 
तब तो महाभारत तो न होता 
बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी थी दुपद्र सुता को 
भरे दरबार में नग्न करने की कोशिश 
सब मूक दर्शक बने थे
बड़े बड़े महारथी योद्धा 
राजा धृतराष्ट्र अंधे थे यह तो सत्य 
उस दिन तो सब अंधे हुए थे
नहीं किसी की गांडीव बोली न किसी का गदा उठा 
न किसी की तलवार उठी
धर्मराज का धर्म भी द्रष्टा बना रहा 
नीति न काम आई विदुर की 
भीष्म की तो छोड़ दो
वे हस्तिनापुर की रक्षा के लिए वचन बद्ध थे
एक नारी की रक्षा कैसे करते 
होते न कृष्ण यदि 
व्यास जी का महाभारत कुछ और होता 

युग बदला लोग बदले 
द्रौपदी जहाँ खड़ी थी 
आज भी वहीं खड़ी है
आज भी जो होता है 
दोष पहले उसका होता है
उसने ढंग के कपड़े नहीं पहने
वह रात में घर से बाहर क्यों निकली
उसने लड़को से दोस्ती क्यों की 
वह पार्टी में क्यों गई 
उसने चुन्नी क्यों ली 
पढ़ाई की क्या जरूरत 
घर में भी जब अन्याय हो
सब चुपचाप सहो 
नहीं तो दोषारोपण उसी पर 
विधवा , तलाकशुदा और कुंवारी रहना भी अपराध 
वह करें तो क्या करें 
गुलाम बन कर रहें 
अपने हक के लिए आवाज न उठाएं 
आत्मनिर्भर न बने
शिक्षा से वंचित रहें 
सेविका  बन सबकी सेवा करें 

अब जमाना बदल रहा है
द्रौपदी को भी बदलना पड़ेगा
उठो द्रौपदी शस्त्र उठाओ
अब श्याम बचाने नहीं आएंगे 
नहीं कोई साड़ी देगा 
चीर हरण को बैठे हैं 
दुश्शासन और दुर्योधन पग - पग पर 
नहीं सुनना है किसकी 
फिर हो वह माता गांधारी या कुंती 
सगा हो या पराया 
छोड़ना नहीं किसी को 
दंड तो मिलना है सबको उनके कर्मों का 
एक कर्म बनता तुम्हारा भी 
आगे बढ़ो 
सब पीछे छोड़ 
स्वयं को बनाओ समर्थ 
देवी नहीं बनना है
व्यक्ति बन अपने को स्थापित करना है 

शेर कब तक शेर रहता है

मैं अपने को बहुत समझता था 
शेर से कम नहीं ऑकता था 
बात - बात पर गुर्राता था 
किसी को अपने पास फटकने न देता था 
अपने आगे किसी की न सुनता था 
मन ही मन इतराता था 
शहंशाह बना फिरता था
वक्त ने क्या पलटी खाई 
हेकड़ी सब धरी की धरी रह गई 
कोई नहीं अपना यह लगता है 
अकेलापन लगता है
न कोई शौक मेरे न कोई नजदीकी 
महसूस होता है 
दुख भी होता है
बस जाहिर नहीं करता 
गुरूर का अंश हैं ही अब भी
स्वीकार कर लेना फितरत नहीं मेरी
वह जोश जवानी का रहा नहीं 
पछतावा करना भी नहीं 
मैं ही सही था और हूँ 
तब भी और अब भी 
हमेशा ही रहूँगा 
मैं गलत करता नहीं 
गलत हो ही नहीं सकता 
शायद मैं इंसान नहीं हूँ 
इंसान होता तो उस जैसा होता 
खुशी - दुख - नाराजगी - माफी - हास्य - रूदन 
सब मेरे साथ चलती 
मैं तो रहता हूँ हेकड़ी में 
बस सुनता अपने मन की
मैं तो वह कठोर पत्थर हूँ 
कोई लाख सर मारे तब भी कोई असर नहीं 
मैं इंसान जैसा मोम नहीं जो पिघल जाऊं 
सुना है पत्थर को भी ठोकर लगती है 
लोग पैर से ढुलकाते हैं 
कभी इधर कभी उधर 
डरता हूँ उस दिन से
वक्त की मार बड़ी बेरहम है 
शेर को भी गिदड़ बना छोड़ती है
देखना है 
शेर कब तक शेर रहता है 

हम कहाँ ठगा गए

तैरने गए थे समुंदर में 
तैर भी रहे थे 
बखूबी हाथ - पैर भी मार रहे थे
लहरों का सामना कर आगे भी बढ़ रहे थे
भंवर में भी फंस गए एकाध बार 
उसमें से भी निकाल लिया सुरक्षित 
अब तो बस एक ही था लक्ष्य 
किनारा और वहाँ पहुँचे भी
पर यह क्या हो गया 
पहुंचे तो सही 
किनारे पर ही सबसे बड़ा बवाल 
अब खड़े किनारे पर 
देखते हैं उन लहरों को 
उन भंवरों को 
शायद इस किनारे से वह ज्यादा रास आ रहा था 

बच गए भंवर से 
पर किनारे पर आकर ही मर गए 
सोचते ही रह गए 
हम कहाँ ठगे गए 

Monday, 17 June 2024

पिता- पुत्र का रिश्ता ???

बात माॅ से होती है
पापा पीछे खड़े रहते हैं 
ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश में 
चेहरे से अनुमान लगाते हैं 
क्या हो रही बातचीत 
बीच-बीच में धीरे से बोल देते हैं 
माँ को कुछ कहने के लिए कह देते हैं 
गलती से कभी फोन उठा लिया 
तब भी तेरी माँ को देता हूँ कहते हैं 
नहीं कहा तो बेटा कह देता है
मम्मी को दे दो जरा 
आमने-सामने न कभी बात होती है
पड़े तो एक - दूसरे से न नजरें मिलाते हैं 
बचकर निकल जाते हैं 
माँ से शिकायत बेटा भी करता है और पापा भी 
एक नसीहत देता है दूसरा ऊब जाता है
यह कैसा प्रेम है
होता तो दोनों तरफा है
नहीं लेकिन कहीं दिखता है
बीच में खड़ी रहती है माँ और पत्नी 
जो मध्यस्थ होती है
कौन सही कौन गलत से दूर 
लेती है बच्चों का पक्ष 
यहाँ पर भी बाप बेचारा 
रह जाता अकेला 
घर से दूर जाता बेटा 
माँ को तो गले मिलता 
पिता को बस प्रणाम कर लेता  
माँ तो रोती रोती दिखती 
पिता ऑसू छिपाए दिखते 
मन में जी भर कर प्यार 
तब क्यों नहीं आते पास - पास
यह रिश्ता है कितना खास 
इसे समझना नहीं इतना आसान 

पिता

पिता को क्या याद करें 
हमारा पता ही पिता है
हमारी पहचान  ही उनसे है
उन बिन कहाँ किसका ठिकाना 
सर पर छत देना मानो आसमान हो
भोजन का प्रबंध करना मानो भगवान हो
हमारी सारी परेशानियों को हर लेना 
अपनी इच्छाओं का त्याग कर देना 
मानो सबसे बड़े दानदाता हो
अपना पसीना बहा कर 
हाड़ मांस एक कर 
हमारी चेहरे पर खुशी ले आना 
मानो हड्डियों का दान करने वाले दधिचि हो
पिता को समझना 
पिता का समझाना 
यह तो कण-कण में बसा है
कहाँ इससे अलग कोई 
दिखता नहीं यह 
दशरथ नहीं बन सकता 
क्योंकि जिंदा भी रहना है
जन्म दिया जिनको
उनकी जिम्मेदारी भी उसकी 
जिस दिन वह नहीं रहता 
जिंदगी के आटे - दाल का भाव समझ आ जाता 
जिंदा रहते भाव दे दो 
उनको भी एहसास करा दो 
आपके बिना तो हम कुछ भी नहीं 

Friday, 14 June 2024

रहना नहीं देश बिराना है

बोझ बन जाते हैं रिश्ते भी
मतलब निकल जाने के बाद 
ढूंढ ढूंढ कर कमी निकालते हैं 
जो शायद पहले नजर नहीं आयी 
अब आ रही है
कोई बहाना तो चाहिए 
तोड़ सकना मुश्किल 
जोड़ना है नहीं 
जोड़- तोड़ के चक्कर में 
खुद उलझे रहते हैं 
दूसरों को भी उलझाये रहते हैं 
गाँठ टूट गई है
बांध दिया गया फिर से
वह टूटती रहती है बार बार 
जोड़ते रहते हैं वक्त वक्त पर 
क्या चक्कर है यह 
बहुत बड़ी उलझन है
उलझ उलझ कर रहना है
सुलझाते सुलझाते क्या कुछ बदल गया 
बात फिर भी बनी नहीं 

ठीक ही कहा है कबीर ने
यह संसार कांटे की बगिया 
उलझ- पुलझ मर जाना है 
रहना नहीं देना बिराना है 

परमानन्द में रहना है

मैं गीत गाता रहूँगा 
तुम गुनगुनाते रहना
मैं साथ देता रहूँगा
तुम साथ चलते रहना 
मैं हंसता रहूँगा 
तुम मुस्कराते रहना 
मैं तान छेड़ता रहूँगा
तुम धुन पर थिरकते रहना 
साथ चलने का वादा है तुमसे 
वह मैं निभाता रहूँगा
तुम हर हाल में साथ देते रहना 
तुम से मैं और मैं से तुम 
यह बात भी जान लेना 
समझ लेना हमें 
हम तुम्हें हर हाल में खुश रखेंगे 
यह वादा रहा आपसे 
मैं वादा निभाता रहूँगा 
बस तुम वादे पर विश्वास रखना 
चलना है साथ - साथ
जिंदगी की हर डगर हो जाएंगी आसान 
हर खुशी और गम साथ - साथ बांटेंगे 
दुख में भी मुस्कराएगे 
हर परिस्थिति का डट कर सामना करेंगे 
मुसीबत को ठेंगा दिखाएँगे
नहीं है मुश्किल यहाँ कुछ
जब हो साथ में तुम 
जिंदगी जीना है जी भर कर
किसका यहाँ परमानेन्ट ठिकाना है
परमानन्द में रह परमात्मा का नाम लेना है
सब उस पर छोड़ आनंद से जीना है 

Thursday, 13 June 2024

बदलाव

तुम आई थी मेरे घर
मैं खुश थी बेहद खुश
सोचा जी भर कर बतियाएगे 
पुरानी यादों को दोहराएंगे 
हंसेगे खिलखिलाएगे 
जी भर मस्ती करेंगे 
फिर से जवान बन जाएंगे 
हाॅ सोचा वह हुआ नहीं 
समय बदल गया है
तुम भी तो बदल गयी
अब वह पहले बात रही नहीं 
एक रौब सा है दिखता 
संपन्नता का घमंड भी 
सुख - दुख साझा करना तो दूर 
कुरेद कुरेद कर परेशान कर डाला 
जख्मों पर नमक छिड़का  
हंसते हंसते न जाने क्या-क्या व्यंग्य कर डाला 
इतना बदलाव कैसे 
यह समझ नहीं आया 
तुम भी वही
मैं भी वही
यह कैसा हुआ दुराव 
समय बदलता है
अब लगता है
आदमी भी बदल जाता है 

क्या खोया क्या पाया

क्या खोया क्या पाया
क्या हारा क्या जीता
यही कश्मकश में उलझे हैं सब
जरा मूल्यांकन करो 
अपनी कमियों को देखो
अपनी उपलब्धियों पर भी नजर डालो 
सब स्पष्ट हो जाएंगा 
बहुत सरल है यह गणित 
कुछ ध्यान करो
कुछ नजरअंदाज करो 
पूर्णता तो कहीं नहीं 
जो कल था वह आज नहीं 
जो आज है वह कल नहीं 
यह चक्कर चलता रहेगा 
कर्म में रत रहकर ही जीवन चलता है
चलते चलते न जाने कब रूक जाता है
न जाने क्या - क्या खो जाता है
न कुछ लाएं थे न ले जाना है
अपनी मर्जी से क्या होता है
होता वही जो मंजूरे खुदा होता है 

Saturday, 8 June 2024

हार - जीत

हार कर जीतना 
जीत कर हारना 
होता है ऐसा भी 
जीतने वाले से ज्यादा खुशी हारने वाले की 
जानता वही 
जो जीता 
जो हारा 
औरों के लिए है तमाशा 

मन में जोश

मन में जोश है
हम नहीं किसी से कम 
बहुत सुन लिया 
बहुत देख लिया 
सबको पहचान लिया 
क्या करना है
यह भी अब जान लिया 
नहीं किसी की परवाह 
बस अपने काम से काम 
कमजोरी को बाय - बाय 
मतलबी को हाय - हाय 
सफलता का परचम फहरेगा 
अब नहीं कहीं ठहरेंगे 
जिंदगी को जी भर कर जीएगे 
जो मन भाएगा वह करेंगे 

Friday, 7 June 2024

दिल

दिल कोई चीज नहीं 
एक एहसास है 
इसे किसी को नहीं दे 
इसे उसी को देना है
जो इसकी हिफाजत कर सके
संभाल कर रख सके
सम्मान और प्रेम दे 
अपने से दूर न होने दे 
अपने दिल में रख सके 
दिल उसी से मिले 
उसी को मिले 
जो उसके दिल में हो 

Thursday, 6 June 2024

हम राम को लाए हैं

हम राम को लाए हैं 
राम की तो सारी धरती
रोम रोम में राम समाएं 
राम को कोई क्या लाएगा 
यह अहम् कहाँ से आ गया 
राम किसी एक के नहीं 
राम तो सबके हैं 
यह आज राम ने संदेश दिया है 
जबरदस्ती किसी के दिलों पर अधिकार नहीं किया जाता
राम जैसा बनना पड़ेगा
शबरी के जूठे बेर खाने पड़ेगे 
उसके प्रेम का मान रखना पड़ेगा 
निशाद राज को गले लगाना पड़ेगा 
जटायु को पिता का दर्जा देना पड़ेगा 
विस्थापित सुग्रीव और विभिषण की मदद करना 
महा बलशाली रावण से युद्ध ठान लेना 
माता कैकयी के प्रति भी मन में आदर होगा 
अपने दुश्मन को भी गुरू मान शिक्षा लेने के लिए छोटे भाई को भेजना
सर नहीं पैरों के सामने खड़े होकर 
एक अदने से धोबी के कहने पर जानकी को वन गमन करा देना 
अपनी प्राणप्रिया से ऊपर जनता जनार्दन को सर्वोपरि समझना 
घमंड का अंश लेशमात्र ही नहीं 
ऐसे थे हमारे प्रभु राम 
गांधी जी ऐसे ही नहीं गाते थे
रघु पति राघव राजा राम 
पतित पावन सीताराम 
ईश्वर अल्ला तेरो नाम 
सबको सम्मति दे भगवान 

Wednesday, 5 June 2024

जिंदगी एक सफर है सुहाना

चला था मैं सफर में 
बहुत कुछ मिला 
बहुत कुछ छूटा 
मंजिल पर पहुंचना था 
मैं चलता गया 
कभी धीरे कभी तेज 
कभी लगा 
रूक जाओ 
बस अब नहीं 
रूकना हुआ नहीं 
मन से बेमन से 
कभी हंसकर 
कभी उदास होकर 
चलता ही रहा चलता ही रहा 
हारा नहीं न बैठा 
मंजिल करीब दिख रही है 
थोडा-सा जोश आया है 
क्या होगा 
कह नहीं सकता 
चलूंग जरूर पहुँचुगा जरूर 
वैसे यह जिंदगी का सफर है 

जिंदगी एक सफर है सुहाना 
यहाँ कल क्या होगा किसने जाना 


जनता आती है

कुर्सी किसी की बपौती नहीं है
उस पर किसको बैठाना 
किसको हटाना 
यह हमको पता है
हम आपके गुलाम नहीं है
कोई घमंड न करें 
यह जनतंत्र है 
यहाँ किसी की मनमानी नहीं चलने वाली 
आज सर पर चढ़ाया है
कल उतार देंगे 
इतिहास गवाह है
हमने किसी को बख्शा नहीं है
प्यार से गले लगाया है
धड़ाम से जमीन पर भी गिराया है 
हम अति को बर्दाश्त नहीं कर सकते 
सबको आईना दिखाया है
कोई गफलत में न रहे
हम किसी के सगे नहीं 
न कोई हमारा सगा
काम जो करें सही ढंग से 
हम भी सम्मानित करेंगे 
हम जनता हैं साहब 
जब हमें महसूस होगा 
हम कह देंगे 
उठो सिंहासन खाली करो कि जनता आती है 

सबने जिसे पप्पू बोला

सबने जिसे पप्पू बोला 
मजाक उड़ता रहा 
उसकी मुस्कराहट कायम रही
जोश कायम रहा
तीखे - तीखे व्यंग बाण छोड़े गए
वह डटा रहा अपने मिशन पर 
लोग उस पर हंसते रहे 
वह न हारा न झुका 
चलता रहा चलता रहा
लोगों को अपनी बात मनवाने की कोशिश करता रहा
उसके पास लच्छेधार भाषा नहीं 
बोलने में महारथ हासिल नहीं 
जमीन से जुड़ा नहीं 
परवरिश ही सुरक्षा घेरे में 
क्या करता 
सब कोशिश करता रहा 
समझता रहा 
छल - कपट से दूर राजनीति 
धीरे-धीरे वह अच्छा लगने लगा
लोग उसको समझने लगे 
आखिर मेहनत रंग लाई 
भारतीय राजनीति का मजबूत सितारा बन कर उभरा है
सत्ता की बाजी पलट दिया है 
वह एक मजबूत राजनेता बना है
दिखा दिया 
हार नहीं मानना है 
अपना काम ईमानदारी और निष्ठा से करना है
लोग उदाहरण दे रहे हैं 
प्रशासनिक कोचिंग संस्था में 
राजनीति तो विरासत में मिली ही है
परिवार ने त्याग और बलिदान किया है
आज हंसने वालों के मुंह बंद है

Tuesday, 4 June 2024

इंसान बने रहो

मैं परेशां रहा
क्या हुआ
कुछ खास नहीं 
सब यथावत 
तब ??
उसने क्या किया 
वैसा क्यों किया
करना नहीं था 
यह अच्छी बात नहीं है
यह सब सोच सोच
आपका अच्छा पन परेशान 
खुश नहीं हो पाते 
गुण देखों अपने
अवगुण मत देखों औरों के 
और से क्या लेना- देना
हमारा कर्म हमारे साथ
उसका कर्म उसके साथ
फल हमको हमारे कर्म का 
उसको उसके कर्म का 
आप जज मत बनों 
भगवान भी मत बनो 
इंसान बने रहो 

चुनाव गणना

चुनाव गणना शुरू होने वाली है 
आज फैसला होने वाला है
वैसे तो सब पहले ही इ वी एम मशीन में कैद हो चुका है
आज पता चलेगा
जनता किसे राजा बनाती है
वादे बहुत किए गए 
अनुमान भी सबके हैं 
आशा भी सबको है
पूर्वानुमान लगाया जा चुका है
देश में ही नहीं विदेश में भी 
अब सही क्या? 
यह तो कुछ घंटों में पता चल जाएंगा
कोई जीते कोई हारे 
बस प्रजातंत्र जीवित रहें 
उसके साथ खिलवाड़ नहीं 
छेड़छाड़ नहीं 
नतीजा सर ऑखों पर 
जनता का फैसला है
जनता ही जनार्दन है 
उसके साथ धोखा नहीं 
लोकतंत्र की रक्षा सर्वोपरि 

Monday, 3 June 2024

ईश्वर नहीं है कोई

गलती किया है गुनाह नहीं 
लोग तो ऐसे खंजर लिए खड़े 
जैसे उन्होंने कभी कुछ गलती की ही नहीं 
गलती ही तो हमें सिखाती है
अब वापस दोबारा नहीं होगी 
तब तक एक नई गलती हो जाती है
यह तो मानव स्वभाव है
गलती करो उसको सुधारों
जान - बूझ कर गलत नहीं करना है 
किसी को धोखा नहीं देना है 
गलती का परिणाम भी तो हमको ही भुगतना पड़ता है 
अपने को भी माफ कर देना है
आगे बढ़ते रहना है
इतनी लंबी जिंदगी 
हम कमजोर मन के वशीभूत जीव 
स्वाभाविक है 
कोई यहाँ परिपूर्ण नहीं 
ईश्वर थोड़ा ही है कोई 

Sunday, 2 June 2024

यह जग हमारा

मन की ऑखों से देखो 
कितना सुंदर है यह जग
बहुत कुछ प्यारा है
यही तो जीवन सहारा है
ममता , प्रेम, अपनापन सब यही समाया 
त्याग और बलिदान की मिसाल भी यहीं 
मानवीयता और इंसानियत से भरी
यह दुनिया इतनी भी नहीं बुरी 
दोस्तों- रिश्तेदारों से भरी 
यहाँ नहीं कुछ खाली 
ईश्वर भी दिख जाते यहीं 
न जाने किन - किन रूप में 
अजनबी भी लगते प्यारे 
महान बनने के अवसर मिलते यहीं 
दाता बन जाओ
खुशियाँ बांटों 
जीत का परचम फहराओ 
तुम्हारा नाम तुम्हारी पहचान 
संसार है यह स्वर्ग नहीं 
अपना जीवन अपने हाथों 
कर्मों का हिसाब भी होता है 
भाग्य का भी फल मिलता है
तदबीर और तकदीर के मिलन से चलती जिंदगी 
जब विचरण करती है
तब इतिहास भी रच देती है 
जीते जी और जीवन के बाद भी 
लोगों के दिलों में रहते हैं 
यह मानुष जन्म है 
सुख - दुख का मेला
अंधेरे - उजाले के साथ ऑख - मिचौली 
हास्य और रूदन से झिलमिल 
प्रेम से लबालब भरी जिंदगी 
कोई जाना नहीं चाहता इस जग से 
कुछ बात तो हैं इसमें 
तभी तो रहना चाहता है हर कोई यहाँ 
मृत्यु से भयभीत 
फिर भी जिंदगी को भरपूर जीना चाहता 
स्वर्ग छोड़ भगवान भी आये यहाँ 
सब चीजों को अनुभव किया 
हम तो हैं नादान
करते जिंदगी से प्यार 
यह जग हमारा 
लगता हमको प्यारा 

Saturday, 1 June 2024

घर - घर

हम घर - घर करते रहें 
सोचा था होगा
एक सपनों का घर 
पाई - पाई जोड़ते रहें 
घर बना तो सही
घर में रहना न हो पाया 
 उम्र निकल गई
नयी पीढ़ी आ गई 
उसने अधिकार जमा लिया 
हमें फिर बाहर कर दिया
बरामदे का एक कोना 
आया हमारे हिस्से 
हसरत धरी कि धरी 
सब छूट जाता है
घर - परिवार- संसार 
मोह बंधन में बंध हम बुनते रहते जाल 
मकड़ी जैसे अपने ही बनाएं जाल में 
उलझ- पुलझ रह जाते

विचार

मस्तिष्क में विचार
न जाने कैसे कैसे 
हर समय कुछ न कुछ बुनना 
नई - नई कहानी 
वह भी वैसी 
जिसका कोई ओर - छोर नहीं 
क्या फिजूल क्या बेकार 
न जाने कौन - कौन सी बातें आती बारम्बार 
सोचते हैं 
कैसे इनसे छुटकारा पाएं 
जिद्दी यह भी कम नहीं 
डेरा जमाए रहती है
मस्तिष्क ही तो उनका घर 
छोड़ कहाँ जाएं 
समस्या उनकी भी
समस्या हमारी भी 
हम परेशान उनसे 
चाहते हैं जी छुड़ाना 
यह छोड़ ही नहीं रही 
हम भी जी रहे हैं 
जीते जी तो लगता है
साथ ही रहेगी 

ख्वाब देखना

मैंने ख्वाब देखे औरों की तरह
रह - रहकर ख्याल आता
ख्वाब पूरे होंगे क्या 
अनंत ख्वाहिशे जिंदगी की 
पूरी होती हो ऐसा भी तो नहीं 
तब फिर क्या 
देखना छोड़ दे 
यह भी संभव नहीं 
ख्वाब और ख्वाहिश के साथ ही तो मजा 
जहाँ वह नहीं वहाँ जिंदगी कहाँ 
अपने लिए अपनों के लिए 
देखना है 
पूरा करने की कोशिश करते रहना है
कुछ होगी कुछ नहीं होगी
हर्ज ही क्या है
कुछ नहीं से कुछ ही सही