Friday, 31 May 2024

हम है अनाड़ी

आज फिर याद आई आपकी
यादों के खजाने में आप ही तो भरे पड़े हैं 
आपने ही सिखाया 
आपने ही जिलाया 
आपने ही खिलाया 
जब - जब सोचा 
अब कुछ नहीं होगा 
तब चमत्कार हुआ
एक जीने की आस जगी 
एक कमजोर आदमी में मजबूत दिल देखा 
एक मजबूत दिल में कमजोर आदमी देखा 
यह दुनिया कभी रास न आई
तब भी बड़े आराम से जीया 
अपनी शर्तों पर जीया 
जमाने से एक कदम आगे बढ़कर जीया 
अच्छे का भी गुजारा होता है
बुरा बनने की जरूरत नहीं 
आसान नहीं पर मुश्किल भी नहीं 
यह गीत तब सुना था याद आज आ रहा है
सब कुछ सीखा हमने 
न सीखा होशियारी 
कहते दुनिया वाले कि हम है अनाड़ी 

Thursday, 30 May 2024

अंतर्राष्ट्रीय आलू दिवस

मैं आलू और बटाटा 
सब करना चाहते हैं मुझे टा टा 
चाहते तो हैं फिर भी चाहते हैं 
समोसा में टिकिया में बटाटा बडा में 
हर सब्जी की मैं जान
मिलनसार मेरा स्वभाव 
सबके साथ मिल स्वाद बढ़ा देता 
उनकी मात्रा डबल 
बच्चों का तो मैं प्यारा 
कुछ भाए या न भाए 
मैं तो सबको भाता 
चिप्स हो सैंडविच 
पता नहीं नाहक बदनाम मैं 
मुझमें में भी हैं गुण 
लोग तल - भुन कर बना देते कुछ 
उसमें दोष मेरा क्या 
राजनीति में भी कभी-कभी उछाला जाता 
आलू का सोना बनाना बताया जाता 
सोना तो हूँ ही मैं 
सब्जी में मेरा मूल्य है
मूल्यांकन कर के देख लो 
यह आलू सब पर भारी न पड़ा 
तो फिर कहना 

महाभारत की लडाई

महाभारत चल रहा है
देश महामारी के युद्ध से गुजर रहा है
धृतराष्ट्र ऑखे बंद किए हैं
भीष्म को कोसा जा रहा है
विदुर नीति कुछ काम नहीं कर रही है
दुर्योधन अपनी ही बात कर रहा है
कोई किसी की नहीं सुन रहा है
द्रोणाचार्य और कृपाचार्य मौन बैठे हैं
जम कर एक दूसरे का चीर हरण किया जा रहा है
वाक् युद्ध जारी है
रणनीति बन रही है
कब किसको सत्ता से बेदखल किया जाय
कब चौसर की गोटी बिछाई जाय
रुपयों और सत्ता के लालच से नेता खरिदे जाय
कर्ण और    शल्य           को अपनी तरफ किया जाय
मामा शकुनि को इस खेल में लगाया जाय
निष्ठा को पैसे के तराजू से तोला जाय
जो मिले उसे खरिद लो
अपनी तरफ कर लो
सुई के नोक के बराबर भी जमीन नहीं
इस हठ पर अडे रहो
विपक्ष को खत्म करो
बस अपना राज हो
नहीं कोई टोका-टोकी
नहीं कोई रोक टोक
बस हिटलर शाही हो
जब जो निर्णय ले लो
जो नियम बनाना बना लो
कोई मरता है तो मरे
यह तो उनकी नियति है
बेघर होना है तो हो
वह हमारी जिम्मेदारी थोड़ी ही है
जो पहले वाले कर गए हैं
वह उनकी है
क्यों भीष्म ने पिता की बात मानी
क्यों नेताओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी
क्यों वह घरबार छोड़कर जेल में रहे
ऐसा नहीं करते
तब ब्रिटिश शासन होता
हम गुलाम रहते पर खुशहाल रहते
पता नहीं कब तक चलेगा यह महाभारत
तब तक तो जनता सडकों पर चल ही रही है
सुदर्शन चक्रधारी की जरूरत है
उनका भी कब आगमन 
कोई नहीं जानता

बाप तो बाप होता है

बाप तो बाप होता है
हर हाल में बच्चों का भार ढोता है
अपने स्वयं कपडे पुराने पहनता
बच्चों को नया पहनाता
दिन रात एक करता
अपना निवाला उनके मुंह में डालता
सर पर बोझ लेकर चलता
बैल की जगह खुद भी जूत जाता
श्रम पसीना एक करता
संतान के भविष्य को बनाता
कहना बहुत कुछ चाहता
कह नहीं पाता
उसकी कठोरता संतान को नहीं भाता
उसके अंदर की कोमलता कोई देख नहीं पाता
वह भी चाहता तो आराम से रहता
वह ऐसा नहीं करता
वह दशरथ की तरह पुत्र मोह में प्राण भी देता
वह धृतराष्ट्र की तरह इतिहास में बदनाम भी होता
वह किसी से नहीं हारता
अपनी संतान से हारता
कितना प्रेम करता
वह नहीं किसी को दिखता
माता का प्रेम जग-जाहिर
पिता का प्रेम उसका उल्लेख कहीं नहीं
आसमान की छत्रछाया है पिता
धरती डोलती है
आसमान नहीं डोलता
नदी पिघलती है
पर्वत नहीं पिघलता
वह प्रहरी बन हमेशा खडा रहता
टूट जाता है
पर झुकता नहीं
वह पिता है
संतान से उपेक्षित
फिर भी उसके लिए चिंतित
घर का कर्ता धर्ता
सब कुछ पिता
सब निश्चिंत होते
जब तक साथ रहता पिता का
अपने से ज्यादा संतान को प्यार करता
बाप तो बाप होता है
हल हाल में बच्चों का भार ढोता है

Wednesday, 29 May 2024

ये फूल

ये फूलों की गलियाँ 
बुला रही है 
बड़ी शिद्दत से
जरा एक नजर मुझ पर भी डालो
मेरे रूप का आनंद ले लो
खुशबू को सूंघ महक से सराबोर हो जाओ
मैं तो खिली हूँ कब से
राह तकती जा रही 
कोई आए 
पास बैठ सुस्ताएं 
मुझसे दो घड़ी बतियाएं 
बस मुझे तोड़े न 
छोटी सी जिंदगी जीने दे 
मैं खुशी देता हूँ सबको
सबसे यही तो आरजू 
मुझे भी जी भर खिलने दे 

दर्द

दर्द के साथ इस तरह चली
पता नहीं कब वह जीवन का हिस्सा बन गया 
अब तो सहने और रहने की आदत पड़ गयी है  उसके साथ
कोई फर्क नहीं पड़ता 
आता - जाता रहता है बिना रोक - टोक
जिंदगी भी चली जा रही है अपनी ही गति में

Monday, 27 May 2024

गिरना - पड़ना

गिरने से क्या डरना 
चलेंगे तब ही तो गिरेगे 
बैठ रहने से तो क्या ही मजा
यह तो है सबसे बड़ी सजा 
चलना तो है ही
तब गिरना - पड़ना भी तय 
पड़ाव पर पहुंचना है
मुश्किल भरा रास्ता है
गड्ढों और खाइयों से भरा हुआ 
मार्ग में चट्टान भी रोड़े बनकर खड़े हुए
हम भी है मजबूत मिट्टी के बने 
गिरते-गिरते संभलेगे 
हर बाधा को पार करेंगे 
लक्ष्य हासिल करके ही रहेंगे 
अर्जुन की तरह मछली की ऑख को भेदेगे 
बस बहुत हुई बातें 
चलो शुरू करते हैं चलना 
ठोकरों का भी करना है सामना 
कुछ भी हो नहीं है रूकना 

Sunday, 26 May 2024

दूसरी पारी जरा जम के खेल लो

उम्र का क्या 
वह कब रूकी है
आगे बढ़ती ही जानी है
यह तो उसका स्वभाव है
किसी के रोकने पर वह कहाँ रूकी है
हम भी तो कम जिद्दी नहीं 
उसे रोकने की कोशिश करते रहें 
बालों में कालिख लगाकर 
चेहरे पर क्रीम- पावडर पोत कर 
नकली दांत लगाकर 
क्या मिला उससे 
दिखावा आखिर कब तक
भलाई तो इसी में है
उसके साथ - साथ हो लो 
बचपन में बचपना कर लो 
जवानी में मटरगश्ती कर लो 
बुढ़ापे में चांदी जैसे बालों के साथ 
धीरे-धीरे इतराते चलो 
दांत नहीं तो क्या 
हंसना थोड़े ही मना है
जवानी नहीं तो क्या
घूमना थोड़े ही मना है
जो बाल बचे हैं उसे लहराओ 
जो दांत बचे हैं उसे दिखाओ
जो चाल लड़खड़ा रही है काठी से उसे संभालो 
अभी तक तो काम में उलझे थे 
अब अपने में रह लो
कुछ दोस्त बनाओ
कुछ गपशप कर लो 
अब किसकी क्या परवाह
जीना तो अभी शुरू किया है
दूसरी पारी भी जम कर खेल लो
अभी खेल तो खत्म नहीं हुआ है 
जो बाकी है कुछ समय 
उसमें चौके - छक्के लगा लो 
अब तो खेल - खेल कर हो गये पक्के 
तब हार - जीत का क्या खौफ 
जो होगा देखा जाएंगा 

Saturday, 25 May 2024

आदमी का आना - जाना

कहते हैं कि आदमी अकेला आता है
अकेला जाता है
लगता है यह सही नहीं है

आदमी जब आता है 
तब रोते हुए आता तो है लेकिन दूसरों के मुख पर मुस्कान लाता है
न जाने कितनी आशा - आंकाक्षाओं के साथ आता है
किसी का चिराग तो किसी का जिगर का टुकड़ा 
न जाने कितनी प्राथनाओं और दुआ के बाद 
जीवन का उद्देश्य बन जाता है
जीवन जीना सिखा जाता है

आदमी जब जाता है 
तब भी अकेले नहीं जाता 
लोगों की ऑख में ऑसू डालकर जाता है
किसी को बेसहारा कर जाता है
किसी का सुख - चैन छीन कर जाता है
किसी की मुस्कान को खत्म करके जाता है
किसी को जीवन भर रोने के लिए छोड़ जाता है 

यह आना - जाना हालांकि लगा रहता है
आदमी वह मुसाफिर है 
जिसकी यात्रा उसके आने से शुरू होती है 
खत्म जाने के बाद 
सच यह है कि कुछ खत्म नहीं होता 
वह जिंदा रहता है 
यादों में  
वह मर जाता है लेकिन उससे जुड़े लोग रहते हैं 
और जब तक ऐसा है
तब तक वह अपनों के बीच विद्यमान रहता है
शरीर से न सही और सब कुछ में 

खुश हो लो जब भी मौका मिले

सुख - दुख यह साथी हमारे 
हर वक्त रहते साथ में 
हमें अक्सर शिकायत 
यह दुख ही रहता है 
सुख गायब रहता है
ऐसा नहीं है
बस समझ का फेर है
हम ढूंढे तो उसे 
नजर तो दौड़ाए 
एहसास तो करें 
हम केवल दुख को कोसते रहते हैं 
सुख भी है उसके साथ 

अपने बच्चों की डांट में 
अपने बच्चों की हंसी में 
अपनी माँ के आशीर्वाद में 
अपने भाईयों के नोक झोंक में 
किसी खाने के स्वाद में 
किसी पडोसी के हाय में 
किसी अजनबी की मुस्कान में 
किसी काम की सफलता में 
ईश्वर का दर्शन हुआ बिना भीड़ के 
बस - ट्रेन में बैठने की सीट मिली
बहुत मुश्किल काम आसान बना 
पड़ोसी से खूब गपशप 
हवा चली गर्मी से निजात मिली 
आज पानी पूरा दिन मिला 
आज बिजली गायब नहीं हुई
आज दरवाजे पर ही ऑटो खड़ा मिला 
आज पोते को खूब दुलराया 
आज नाती ज्यादा चोट लगने से बचा 
आज तबियत कुछ ठीक है
आज कोई अच्छा समाचार मिला 
ऐसी न जाने कितने रोज रोज
दुखी होने का कारण ढूंढो 
खुशी और सुखी का कोई कारण नहीं 
बस जब मिले 
थोड़ा ही सही 
खुश हो लो 
महसूस कर लो 

नियति के खेल निराले

काश जिंदगी तू एक किताब होती
तेरे हर पन्ने को लिखने का अधिकार मुझे होता 
मैं स्याही से नहीं लिखती पेंसिल से लिखती
कुछ गलत हो गया तो तुरंत मिटा डालती 
बडे स्नेह और प्रेम से अक्षर उकेरती 
एक एक शब्द को अलंकारों से सजाती 
उस किताब में मेरे बाबूजी होते 
मेरी अम्मा होती 
उनका संघर्ष होता 
मेरे सहोदर भाई बहन होते 
उनका संवरा जीवन होता 
साथ हंसते और खिलखिलाते 
उसमें मेरा प्यारा बचपन होता
अल्हड़पन जवानी का होता
प्रोढ़ावस्था के सपने होते अपने बच्चों के लिए 
बच्चों को देखती अपने सपनों को साकार करते 
हमारा जीवन क्या बच्चों में ही जीवन हंसता - बसता है
उनको खुश देख मुस्कुरा लेती जी भर 
न जाने कितने जतन कर और सोच सोच कर लिखती 
हर पन्ना मेरे लिए अमूल्य होता 
बडी मेहनत लगती है 
ऐसी किताब लिखने में 
सालों गुजर जाते हैं 
बचपन बीत जाता है
जवानी चली जाती है
बुढ़ापा दस्तक देने लगता है
तभी लगता है
अभी तो किताब अधूरी है
कितना कुछ लिखना था
कितना कुछ छूट गया 
कितना कुछ भूल गया 
समय भी बीत गया 
किताब लिखना जारी है 
समझ नहीं आया जो लिखा सही लिखा 
क्या गलत लिखा 
वह मिटाया जा सकेगा या नहीं 

खैर जिंदगी न तू एक किताब है
न तुझे लिखने का अधिकार मेरे हाथ में है
जो समझ आया वह लिखा 
बाकी सब उसने किया 
कहने को जिंदगी हमारी
पर कहाँ वह हमारे वश में है
नियति के खेल निराले 
जो चाहे वह करा ले 

Wednesday, 22 May 2024

घर मेरा

घर था मेरे नाम पर 
उस घर का कोई कोना मेरा नहीं 
जहाँ बैठू सुकून से
आपाधापी कर बना घर 
दौड़ते रहें जिसकी खातिर 
आज उसमें रहकर भी लगता है 
बेघर हैं 
अपना नहीं जहाँ कुछ 
प्रेम और भाव है आहत 
दिल नहीं लगता वहाँ 
लगता है 
कहीं दूर निकल चले 
नीले आसमान के तले 

Tuesday, 21 May 2024

दिल का मानना

दिल का मामला बडा पेंचीदा होता है
यह सबके सामने खुलता नहीं है
जिसको अपना समझता है 
उसी के सामने खुलता है
अब वह आपको अपना समझे या न समझे 
जिसको तुम चाहो वो तुम्हें चाहे 
ऐसा होता नहीं है
दिल किसी पर आ जाएं 
तब क्या करें 
यह दिल किसी की बात मानता नहीं 
अपनी मनमानी करता रहता है
सही है
दिल है कि मानता नहीं 

Sunday, 19 May 2024

माॅ की मार

माॅ  के मारने पर हमसे ज्यादा चोट माँ को लगती थी
मार हम खाते थे ऑखों से ऑसू उसके आते थे
जो मारे वही दुलराए 
यही जिद भी होती थी हमारी
मार कर गोद में लेकर चुप कराना 
यह दूसरा कौन कर सकता है
न करेगा न कोई करने देगा
सही कहा है
माॅ की छडी फूल से भी ज्यादा कोमल होती है
वह लगती नहीं थी 
उसकी डांट और मार मन पर नहीं लगता 
उसमें भी एक मजा है
जिसने खाया हो वह ही जानेगा 

Friday, 17 May 2024

मानव हूँ

मानव हूँ 
बडे भाग्य से यह जन्म मिला है
क्या-क्या नहीं देखना होता है 
विरह , पीडा , मृत्यु 
हर दंश को सहता है
जीवन फिर भी जीता है
कभी अपने लिए कभी अपनों के लिए 
प्यार- दोस्ती - वफा - रिश्ते 
इनके बीच में रहता है
नाजुक मन होने के बावजूद 
बडे से बडा आघात सहता है 
पेट भरने के लिए न जाने कितने जतन करता है
हर रोज लडाई लडता है
जीने की खातिर न जाने क्या क्या सहता है
मानव हूँ 

Thursday, 16 May 2024

माँ का क्या ???

माँ सपने बुनती रहती है
माँ घर संवारती रहती है
माँ बच्चों का भविष्य बनाने का प्रयास करती रहती है
माँ सबका पेट भरती रहती है
माँ सबकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करती रहती है
माँ रात - दिन एक कर देती है
वह कभी शिकायत नहीं करती सब उससे करते रहते हैं 
उसकी हर बात में मीन मेख निकालते हैं 
वह हममें सब गुण देखती है
उसकी सुबह सबसे पहले और रात सबसे बाद में होती है
सोते सोते भी वह दूसरे दिन के बारे में सोचती है
वह अपनी पसंद का खाना भूल जाती है दूसरों की पसंद का बनाते बनाते 
वह तब भी खुश रहती है 
वह अपने संवारना भूल जाती है 
सपने भी अब अपने लिए नहीं अपनों के लिए देखती है
माँ न हो तो घर भी घर कहाँ लगता है
न जाने क्या-क्या सहती है
कितना टूटती है पर 
सबको जोडकर रखती है
स्नेह बंधन में बांधे रखती है 
माँ का क्या 
वह हमसे कहाँ कभी दूर होती है 

Tuesday, 14 May 2024

जनता जनार्दन

क्या नहीं कर रही सरकार 
पांच किलो अनाज देकर पेट भर रही
चूल्हा जलाने की झंझट खत्म गैस जो दे रही
दवाई और अस्पताल का मंहगा खर्च का जिम्मा उठा रही
टायलेट बनवा रही
नया घर दे रही 
और चाहिए क्या 
रोटी - मकान का इंतजाम तो हो ही रहा है
सुबह-सुबह फारिग होने के लिए शौचालय 
ज्यादा फिर सोच क्यों??
बेकारी - मंहगाई से क्या लेना देना
विकास और देश की समस्याओं पर क्यों चर्चा 
गाना सुना था 
दाल - रोटी खाओ 
प्रभु के गुण गाओ
मंदिर भी बन ही रहे हैं 
अब इससे ज्यादा क्या चाहती जनता 
ज्यादा तो चाहिए नेताओं को
अपनी दो - चार पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए 
आम जनता खास बनकर क्या करेंगी 
वह खास बस चुनाव के समय होती है
पहले नेता हाथ जोड़ते हैं 
बाद में वह जोडती है
उसको एहसास कराते हैं तुम्हारा राज
बाद में स्वयं राज करते हैं 
यही होता है प्रजातंत्र में 
जनता तो जनार्दन है 
पर उसका हाल ????

यही रहना है

कमियां हैं तो रहने दो साहब 
खुद को खुदा थोड़े ही बनाना है 
कौन सा हमें यहाँ हमेशा रहना है
आज हैं कल चले जाना है
जीवन तो रैन बसेरा है
अमरता का वरदान भी नहीं चाहिए 
बस इतना चाहिए 
जब तक है कर्म करते रहें 
किसी की मुस्कान बन सकें 
किसी के ऑसू पोछ सकें 
किसी के मन को समझ सकें 
ज्यादा नहीं कर सके 
अपनों के काम तो आ सके 
नहीं चाहिए वैराग्य 
हम तो खुश है गृहस्थी में 
क्या करना है पहाड़ की खूबसूरती देखकर 
अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखना है
क्या करना है शांति में बैठकर
यह कोलाहल ही अच्छा है
जीवंतता का प्रमाण जो है
दाता से यही दान की अपेक्षा 
अपनों का साथ हो हमेशा 

Monday, 13 May 2024

मेरी आदत में शुमार

रण सज चुका है
चारों ओर से घिर गया हूँ 
चक्रव्यूह तैयार हो चुका है
मुझे पता है
मैं अकेला हूँ 
मुझे कोई बचाने आने वाला नहीं है
अपनी लडाई खुद लडनी है 
चक्रव्यूह से बाहर निकलना है
हार तो मैं मानूँगा नहीं 
मुकाबला तो डट कर करना है
देखें क्या होता है
जीत हुई नहीं उससे पहले हार मान लेना
युद्ध का मैदान छोड़ भाग जाना
यह मुझे नहीं सिखाया गया 
नित संघर्षों का सामना करना 
अपनी राह बना लेना 
यह तो मेरी आदत में शुमार 

बेटी के लिए

पहला शब्द सुना था तुमसे मैंने माँ 
आज भी कहीं से मम्मी की आवाज आती है तो मुड़कर देखती हूँ 
माँ बनाया मुझे सबसे बडी नियामत मिली 
ईश्वर का अनमोल वरदान मिला
जो केवल मेरा है ऐसा अनमोल उपहार मिला 
एक छोटी सी बच्ची ने सारा डर दूर भगा दिया 
मेरी तो दुनिया ही आबाद हो गई
एक साथ ने नयी आशा बना दी
कुछ भी कर सकती हूँ यह विश्वास जगा दिया 
एक बेटी के रूप में सखी मिल गई
बडी होती गई और मैं छोटी होती गयी 
कहते लोग मुझसे
वह तुमको संभाल रही है या तुम उसको संभाल रही हो
अव्यवस्थित सी माँ को दिशा मिल गई 
मैं भी किसी की माँ हूँ 
इसका तो गुरूर है ही
माँ का होती है प्रतिबिम्ब बेटी 
तुम मानो या न मानो 
तुममें में तो 
मैं ही हर जगह
मेरी बेटी मेरा शान 
सबसे बडा अभिमान

Sunday, 12 May 2024

माँ है दाल - भात जैसी

आदत है मेरी 
कहीं भी जाऊं 
कितने भी व्यंजन खा लू
दाल - भात बिना पेट नहीं भरता
घर हो या बाहर
नानवेज हो या मिष्ठान्न 
एकाध बार ही ठीक है
हर रोज नहीं 
दाल - भात रोज चाहिए 
वैसे ही माँ होती है
माँ की जगह किसी की नहीं 
पीड़ा में भी माँ ही याद आती है
माँ का रिश्ता पुराना नहीं पडता 
हम भी पहले जैसे और माँ भी वही 
एक दिन नहीं हर पल माँ का है
ऐसा तो कभी होता ही नहीं 
माँ जेहन में न रहें 
गर्भ से शुरू हुई यात्रा आजन्म चलती रहती है
हमारी आदत में शुमार होती है
माँ भूलने वाली व्यक्ति नहीं है
जिससे हमारा असतित्व है
संसार से परिचित करवाने वाली
उसकी शरण तो ईश्वर को भी लेनी पडी 
माँ बिना तो उनका भी संसार में आगमन नहीं होता
संसार को उंगली पर नचाने वाले को भी माँ के इशारे पर नाचना पडा 
सुदर्शन चक्र धारी को भी मार खाना पडा
जननी है वह जन्मदात्री है वह
उसके जैसा कोई कैसे हो सकता है
वह बस एक ही है
सबसे निराली सबसे प्यारी
तभी तो उसकी छडी की मार नहीं लगती
उसकी डांट फटकार दिल पर नहीं लगता 
दिल ही उसका अपने बच्चों के लिए हैं
 अपनी संतान को अपने से ऊपर रखती है 
तो वह है माँ 
उसकी खुशी के लिए सब न्योछावर करती है खुशी खुशी 

मेरी माँ के बराबर कोई नहीं

मेरी माँ तो कुछ अलग ही मिट्टी की बनी
चट्टान को भी तोड़ने की ताकत रखने वाली
कर्मठता का जीता जागता प्रमाण 
हार न मानने वाली न मानने देने वाली
ईश्वर पर अटूट श्रद्धा 
न लडना न झगड़ना 
अपने काम से काम रखना
दूसरों की भलाई को तत्पर रहना 
उसका सबसे बडा अस्त्र और शस्त्र 
उसके ऑसू और चुप्पी 
बिना कहे भी सब बयान कर जाते 
कभी न किसी का बुरा चाहा न हमें सिखाया 
न कभी किसी को कोसा न किसी से तुलना की
लाख अभाव हो हाथ किसी के आगे नहीं फैलाया 
अपनी चादर से बाहर न पैर फैलाया न हमें फैलाने दिया 
हमारे हर गुस्से और तनाव को झेला 
मुख से तो कुछ नहीं कहा पर ढाढ़स हमेशा बंधाया 
अन्नपूर्णा का साक्षात स्वरूप 
उसके घर से कोई कभी खाली पेट नहीं गया
हर रिश्ता निभाने वाली
सबको प्यार बांटने वाली 
मेरे बाबूजी जैसे औघड़ और भोले को संभालने वाली
निस्वार्थ भाव और नए जमाने के साथ चलने वाली 
क ख ग घ से A B C D सीखने वाली 
गांधी और सुभाष चन्द्र बोस को देखने वाली
भगवान बाद में याद आए पहले माँ याद आई
हमने माँ से मांगा 
माँ ने हमारे लिए भगवान से मांगा 
पता है कि भगवान हमारी सुने या न सुने
अपनी इस भक्त की जरूर सुनेंगे 
वह उद्धव जैसी ज्ञानी नहीं पर गोपी सी भक्ति वाली 
हमारे घर में एक गीता का ज्ञानी और दूसरी भक्ति रस में डूबी 
जीत हमेशा भक्ति की हुई  गीता के ज्ञानी को कई बार उससे हार मानते देखा 
गाँव से लेकर महानगर तक का सफर 
उसके बावजूद परम्परा का पालन
माँ बहुत पढी लिखी नहीं 
हमसे ज्यादा मार्डन विचारधारा की
साधारण औरत नहीं जो गहनों और कपड़ों को तवज्जों दे 
उसने शिक्षा को तवज्जों दिया
स्वतंत्रता सेनानी की बेटी और मास्टर साहब की बहन जो थी 
बडे घर की बेटी का दिल हमेशा बडा ही रहा
उसने हमारे घर को इस तरह संभाला कि वह बडा हो गया
बिना किसी की सहायता के
अपने दम पर और घर में रहकर 
अपने आप पर हंसना आता है 
लोग मेरी प्रशंसा जब करते हैं 
तब लगता है मैंने तो कुछ किया ही नहीं 
आरामतलब और बिना महत्वकांक्षा के उसने मुझे बना दिया 
माँ से ही जन्म 
माँ में ही जीवन
जीवन का आखिरी पड़ाव है पर जज्बा कम नहीं 
उस जैसी कर्मठ महिला को बिस्तर पर लेटा देखना बर्दाश्त नहीं होता
नियति है कुछ कर नहीं सकते 
माँ के लिए तो शब्द ही कम है
समंदर की गहराई भी उसके प्यार के आगे कम है
आज और हमेशा 
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं न होगा न है ।

Saturday, 11 May 2024

अहम् का चक्र

एकतरफा भी भला कब तक रिश्ता निभेगा 
पहल तो दोनों तरफ से होनी चाहिए 
इसके - उसके चक्कर में 
पहले तुम पहले आप के चक्कर में चकरघिन्नी से उलझते 
उनको कैसे सुलझाएं 
एक कदम तुम
एक कदम हम
दोनों आगे बढे
तब रिश्ता भी आगे बढेगा 
नहीं तो अहम् के चक्र में उलझा रह जाएंगा 

कांटों से बहुत प्यार

मुझे कांटो से बहुत प्यार 
इनसे जुदा होना तो कभी हुआ नहीं 
इन पर ही तो मैं खिला 
फूल बनकर महका 
रक्षा की मेरी इन काँटों ने 
ये कांटे न होते तो मैं भी न होता
चुभोते रहें 
महसूस कराते रहें 
मुझे अपने को पहचानने में इनका हाथ 
इनके संरक्षण में खिला 
खुशी से लहलहाया 
सबके मन को भाया 
यह बस अपना कर्तव्य करते रहें 
मैं आगे बढता रहा 
कांटे बिना पुष्प कहाँ 

माँ

माँ से ही मैं 
माँ में ही मैं 
माँ में ही जिंदगी 
जिंदगी में ही माँ 
माँ न होती तो मैं कहाँ 
माँ से ही जन्म 
माँ में ही मैं समायी 
मैं तो हूँ ही माँ मयी 
माँ की दुनिया मैं 
मेरी भी दुनिया माँ 
जन्म से पहले का नाता 
जन्म के अंत तक
यही सच 
उसके सिवा कुछ नहीं