Saturday, 11 June 2016

बरखा रानी पधारी है ,थोडा जी लो और भीग लो

बडी बेकरारी से इंतजार  करवा आई ,पर आ ही गई बरखा रानी
मिट्टी की सोंधी- सोंधी महक ,मोर के नृत्य का आनंद
पपीहे की पी - पी और कोयल की कू- कू
मदमस्त हो झूमते पेड- पौधे
हरितिमा का आंनद लो.
   बरखा रानी पधारी है थोडा जी ंंंंंंं
सागर उमड रहा है ,हर बॉध तोड रहा है
बादल उमड- घुमड रहा है, ऑधी- तूफान ला रहा है
हवा हिचकोले खा रही है ,अपना आपा खो रही है
तुम भी अपनी रौ में बह जाओ
     बरखा रानी पधारी है थोडा जी ंंंंंंंंं
दफ्तर तो रोज ही जाना है ,काम भी तो करना ही है
यह तो हर दिन का झमेला है
भीगने का मन कर रहा है तो बेफिकर भीग लो
ईच्छा पूरी कर लो सब कुछ छोडछाड कर
     बरखा रानी पधारी है थोडा जी ंंंंंंंंंंंं
ठंडी का क्या? वह तो पडनी है
दवाई और काढा भी तो पीना है ,पीते रहना
जी भर कर पहले अमृत की बूंद तो चख लो
    बरखा रानी पधारी है थोडा जी ंंंंंंंंंंंंं
देखो प्रकृति चहक रही है
                  हवा से देह थरथरा रही है
मन को भी स्वच्छंद छोड दो
कदम को बहक जाने दो ,तन- मन भीग जाने दो
जुल्फों को बेहाल उडने दो ,लटों से बूंदों को गिरने दो
मन को मदमस्त होने दो , हर बूंद का आानंद लो
   बरखा रानी पधारी है थोड जी लो ,भीग लो

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