नमक हलाल और नमक हराम- यह दो शब्द दिखने में एक ही जैसे पर मायने अलग- अलग
आजकल तो कहा जाता है कि ऊपर चढने के लिए जिस सीढी का इस्तेमाल करो,बाद में गिरा दो
पहले नौकर मालिक का वफादार होता था क्योंकि उसने उनका नमक खाया था
आज हम अहसान फरामोश होते जा रहे हैं
हमारे जीवन को बनाने मे बहुत लोगों का हाथ रहता है
आज जिस मुकाम पर पहुंचे हैं ,वह इतनी आसानी से नहीं हासिल हुआ
बस ड्राइवर जिसने हमें भागते आते देख कर बस रोक दी होगी
वह शिक्षक जिसने हमें पढना सिखाया होगा
वह पडोसी जो घर में मॉ न होने पर हमें अपने घर में बिठाया होगा
वह दोस्त जिसने हमें भुख लगने पर अपना खाना दिया होगा
वह अंजान यात्री जिसने हमें राह दिखाई होगी
किसी ने एडमिशन में मदद की होगी तो किसी ने नौकरी मे पहचान लगाई होगी
किसी वे जीवन साथी ढूढने में मदद की होगी
तो किसी ने घर खरिदने में
पर हम भुल जाते हैं
किसी ने सलाह ही दी होगी जो हमारे काम आई
ऐसी न जाने कितनी घटनाएं होगी और लोग होगे जिन्होंने हमारे जीवन को आसान बनाया
जरा सोच कर देखिए ,एक खराब पडोसी मिल जाय तो हमारा जीना हराम कर देगा
आज छोटी- छोटी बात पर जान ले ली जाती है
मौत हो जाती है और किसी को खबर नहीं
कर भला तो हो भला
मॉ जब किसकी सहायता करती थी ,मना करने पर करती थी
नैं दूसरों की सहायता करूंगी तो मेरे बच्चों का भी कोई करेगा
बचपन में संत - बंसत दो राजकुमारों की कहानी सुनी थी - रानी की मौत के बाद राजा ने दूसरी रानी ब्याह कर लाई,
जिसने राजकुमारों को जंगल में ले जाकर मार डालने को कहा अपने अंगरक्षकों को
पर वे वहॉ जाकर उनको छोड देते हैं और सबूत के तौर पर जानवर को मारकर उसके खुन से सने कपडे लाकर देते हैं
न मारने का कारण कि रानी उनको गरम रोटियॉ नमक और घी लगाकर खाने को देती थी तो वे कैसे निर्दयी हो जाते
मतलब कि हमें भी आभारी होना चाहिए
जो पेड छाया देता है उसकी हर पत्ती आदरणीय होनी चाहिए
तो इस संसार ने हमें बहुत कुछ दिया है
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Thursday, 2 June 2016
कहॉ गई कृतज्ञता ,छा गई है कृतघ्नता
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