Saturday, 5 December 2020

तब लगता है वह घर

घर किसे कहते हैं
जहाँ रहा जाता है उसे
तब तो कोई किराये के मकान में
कोई माता - पिता के मकान में
कोई पूर्वजों के मकान में
कोई भाई - भाभी के मकान में
कोई बेटे - बहू के मकान में

यह वे जगहें हैं
जहाँ हम रहते हैं
रहने से वह घर नहीं हो जाता
रहने को तो होटल और सराय में भी रहा जा सकता है
सारी सुख सुविधाओं के साथ
भले ही कीमत अदा करनी पडती हो

कीमत तो हर जगह चुकानी पडती है
कहीं अपने स्वाभिमान को ताक पर रख
कहीं शर्मसार हो
कहीं ताने सुन
कहीं बेइज्जती सह
कहीं एहसान तले दबाकर
कहीं नौकरों जैसा व्यवहार कर
कहीं तुच्छ लेखकर
कहीं डरकर और दबकर
कहीं अपनी इच्छाओं को मार कर
कहीं आवाज दबाकर

तब इसे घर तो कदापि नहीं कहा जा सकता
घर तो वह होता है
जहाँ अपनापन होता है
प्यार और सद्व्यवहार होता है
भावनाओं की कदर होती है
अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकते हैं
सम्मान होता है
समान अधिकार प्राप्त होते हैं
स्वतंत्र होते हैं
विचारों का आदान-प्रदान होता है
जहाँ सुरक्षित होते हैं

जैसे हम हैं
वैसे हम हैं
हमें उसी रूप में स्वीकारा जाना
हम पर विश्वास
हम पर प्रेम और स्नेह
हमें पूरी आजादी
निष्पक्ष व्यवहार
भावनाओं की कदर
तब लगता है वह घर

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