Saturday, 2 October 2021

बदलते परिवेश में नारी

आज की नारी है बडी सयानी
घर और बाहर दोनों में बनाये रखती तालमेल
जिन हाथों से कलम पकडती
उन्ही हाथों से चिमटा भी
सुंदर अक्षर के साथ-साथ गोल - गोल रोटी भी बनाती
दफ्तर और रसोई घर दोनों संभालती
बच्चों की भी पूरी जिम्मेदारी निभाती
जिंस पहन पिकनिक मनाती
तो भर मांग भर गहने पहन करवा चौथ भी मनाती
पति को केवल परमेश्वर ही नहीं मानती
उसकी साथी बन साथ निभाती
अपनी भागीदारी निभाती
तन ही नहीं धन से भी मदद करती
घर की आर्थिक स्थिति भी संभालती
अर्थशास्त्री बन घर का बजट बनाती
मुखिया से लेकर आया तक
हर काम बखूबी निभाती
अब बस घर में ही नहीं बैठ रहती
उन्मुक्त गगन में भी विचरण करती
भागम-भाग करती रहती
लोकल और बस को पकड़ने की जद्दोजहद में
अब सर पर पल्लू ले केवल बैठ नहीं रहती
साडी पकड़ कर दौड़ भी लगाती
हर चीज में अव्वल
बस मौका मिलने की देर है
अवसर मिले तो वह क्या नहीं कर सकती
ट्रेक्टर से ले हवाई जहाज की भी उडान भरती
अब वह केवल सौंदर्य की देवी नहीं
कामकाजी नारी है
उसके भी कुछ सपने हैं
उसके भी कुछ अरमान है
वह पूरा करना चाहती है
कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचना चाहती है
मत रोक टोक करो
वह आपकी साथी है
आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है
भविष्य को जन्म देनेवाली
सजोने और संवारने वाली
सृष्टि की सृजनहार नारी
आज बाहर निकली है
एक पहिए के गाडी चल नहीं सकती
आधुनिक युग में गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए उसकी भूमिका बहुत मायने रखती है
नारी से ही आज है
और आनेवाला कल भी ।

No comments:

Post a Comment