Friday, 26 November 2021

भावना न समझा कोई

भावनाओं के समंदर में हम गोता लगाते रहे
कभी डूबते कभी उतराते रहे
कभी ऊपर तो कभी तल में
कभी भंवर तो कभी किनारे पर
यह हिचकोले देती रही
हम झूलते रहें
कभी बाहर नहीं निकल पाए
बीच समंदर में ही फंसे रहे
सबकी भावनाओं की कदर की
हमारी भावना को किसी ने न समझा
जिसका जब मन आया
खूब खेला
हम टूटे भी
बिखरे भी
हमारी परवाह किसे
न समझा कोई  हमें
सबके अपने अपने मतलब थे
इस मतलबी दुनिया का यही तो है दस्तूर
क्यों करे कोई
सब अपने में व्यस्त
हम है सबसे त्रस्त

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