बाप रे
कितनी आवाज
कितना शोरगुल
कभी ढम ढमा ढम
कभी ढोल - ताशे और नगाड़े
कभी कानफोड़ू संगीत
कभी नारों की आवाज
मोटरसाइकिल के गर्राने की आवाज
बस और गाडियो की आवाज
जो सुबह से यह सिलसिला शुरू हुआ
आधी रात तक चलता ही रहा
हम भी इसके अभ्यस्त हो गए
गाडियो की पो पो
एम्बुलेंस की सायरन की आवाज
फायर ब्रिगेड की गाडी
क्या हो रहा है
क्यों हो रहा है
हमें कोई मतलब नहीं
कभी-कभी हम भी खडे होकर निहार लेते हैं
कारवां गुजर जाने पर मुड जाते हैं
सोचने की फुर्सत किसे
यह तो हमारे जीवन का अविभाज्य अंग
शायद शांतता को तो हम भूल ही गए हैं
वह तो गावों में
पहाड़ों में
रिसोर्ट में
ऐसी ही कुछ जगहों पर उपलब्ध है
हालांकि शोर वहाँ भी अपना प्रभाव दिखा ही रहा है
अब चीडियो की ची ची और मुर्गा की बाग नहीं
पो पो और घड घड से सुबह होती है
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