Wednesday, 12 March 2025

वह जमाना याद है

रिश्तों की भी यात्रा होती है 
वह चलायमान है 
परिस्थिति अनुसार बदलाव आता रहता है 
पेड़ के पत्तें  जैसे 
शुरू शुरू में कोमल कोमल नर्म नर्म 
हल्का हरा गाढ़े में बदल जाते हैं 
पत्तियां कठोर हो जाती है 
धीरे - धीरे पीलापन छाने लगता है 
एक दिन वह भी आता है 
जब सूख कर और मुरझा कर गिर जाते हैं 
समय का थपेड़ा है यह
जो घनिष्ठता और अपनापन होता है 
वह समय के अनुसार बदल जाता है 
जीवन में नये लोगों का आगमन होता है 
पुराने दरकिनार किए जाने लगते हैं 
हमें बुरा लगता है 
हमारी अहमियत कम लगती है 
वह स्नेह और प्रेम अब नहीं झलकता 
उसे स्वीकार करो 
पीले पत्तों जैसे 
हमेशा हरा हरा नहीं रहेगा 
अपने दिल की किताब में उन कोमल पत्तों को छुपा कर रखो 
याद कर लो उन पलों को भी 
जब वह साथ- साथ थे 
लम्हों को क्यों भुलाया जाए 
वह अच्छा वक्त जो साथ गुजरा था 
कोई गिलां शिकवां नहीं 
वह भी स्वीकार था यह भी स्वीकार है 
यह तो प्रकृति का नियम है 
परिवर्तन अवश्यंभावी है 
न वो , वो रहें न हम, हम रहें 
बस वह जमाना याद है 
यात्रा में जो - जो साथ चलें 
सबका शुक्रिया  

चलना मत छोड़ना

हमारे कदमों के नीचे गलीचा नहीं बिछा था 
हमें जमीन पर चलने की आदत थी 
पैर जमीन पर रखने से मैले हो जाने का डर नही था 
राहें भी समतल नहीं थी 
उबड़ खाबड़ और कंकड़ पत्थर बिछे थे 
हमको उसकी भी आदत नहीं थी 
फिर भी हम चले , चलते रहे
कंकरीली  - पथरीली पर
उसे आसान बनाया 
ऐसा नहीं कि पत्थर चुभे नहीं
पैर में छाले नहीं पड़े 
आँख से ऑसू नहीं छलके 
दर्द नहीं हुआ 
सबको झेला पर रुके नहीं 
बस चले और चलते रहे 
उस मुकाम पर भी पहुंचे 
जहाँ तक पहुंचना था 
आज वह याद आते हैं 
बस ओठों पर एक मुस्कान आती है 
राह तो आसान नहीं होती 
बनाना पड़ता है 
फूल नहीं बिछे मिलते सभी को 
कांटों से भी सामना होता है 
बस चलना मत छोड़ना 

ऐसे लोग

कुछ लोग भी ऐसे होते हैं 
न प्यार के काबिल न नफरत के 
उनकी फितरत ही ऐसी होती है
उनके बारे में धारणा नहीं बनाई जा सकती 
ऐसे लोग का विश्वास नहीं कर सकते 
कब क्या करें कौन जाने 
वैसे तो सबसे अच्छे
वास्तविकता का पता नहीं 

अच्छाई-- बुराई

हर जगह नफरत है 
धोखा और फरेब है 
क्या यही सच है 
अगर ऐसा होता 
तब लोग जीते कैसे 
रहते कैसे 
सच तो यह है 
अच्छे लोग भी है 
तभी तो दुनिया चल रही है 
अच्छाई कभी मरती नहीं 
बुराई कभी जीती नहीं 
एक न एक दिन अंत होता ही है 
हिसाब होता है 
अच्छाई का दामन पकड़े रहें 
बुराई को छोड़ दें 
तभी सबकी भलाई 

Tuesday, 11 March 2025

पल में खेला

मन में अजीब सा लग रहा है 
कुछ ऐसा देखा कुछ ऐसा सुना 
समझ नहीं आता 
मानव जीवन कैसा है 
क्या है वह 
उसका अस्तित्व 
उसके हाथ में क्या 
शायद कुछ नहीं 
तिनका - तिनका जोड़ा 
बड़े अरमानों से घर बनाया 
कब लहरें आया सब बहा ले जाए 
कब भूकंप आए सब तहस नहस कर डाले 
गलती उसकी कुछ भी नहीं होती 
दंड फिर भी भुगतता है 
उसका जीवन उसके हाथ में है ही नहीं 
भाग्य भी होता है क्या
कर्म और भाग्य के चक्कर में 
वह चक्कर लगाता ही रहता है 
अपने ही बुने जाले में फंसता रहता है 
किस बात पर खुशी 
किर बात पर दुखी 
उसे समझ नहीं आता 
वह करें क्या 
हिमालय की कंदराओं में चला जाए 
गृहस्थी को चलाने में लगा रहें
बहुत पैसा हो जाए 
बहुत नाम हो जाए 
फिर क्या ??
पल में खेल हो जाए तो ??

फूल तुम्हें भेजा है खत में

वह भी एक दौर देखा है हमने 
जब समय धीरे धीरे चलता था 
हम इंतजार करते रहते थे 
उसके गुजरने का 
वह रहता आहिस्ता आहिस्ता 
वह जमाना था खतों और चिठ्ठियों का 
वही तो एक माध्यम था 
इकरार इजहार का 
कुशल - क्षेम जानने का 
डाकिए की राह देखते थे लोग-बाग 
कब किसकी चिठ्ठी आ जाए 
कब अपनों की खबर मिल जाए 
था तो एक कागज का टुकड़ा  
वहीं तो दिल के तारों को जोड़े रखता था 
विश्वास दिलाता था 
सुदूर प्रांत में गये हुए अपने प्रिय की 
अब भी हम तुम्हारें हैं
यह खत इस बात का प्रमाण है
हम रोज तुम्हें याद करते हैं 
प्रियतमा उसे छिप छिपकर न जाने कितनी बार पढ़ती थी 
कभी हंसती कभी रोती कभी सीने से लगाती 
वह आधार होता था उसका 
जो दिलासा दिलाता था
एक सुखद एहसास था 
करीब लाता था और रखता था 
जिंदगियां गुजार दी जाती थी खत के सहारे 
फिर फोन आया दूरी थोड़ा कम हुई 
तब भी खत का सिलसिला जारी रहा
अब आया है मोबाइल 
दूरी रही ही नहीं 
जब चाहो बात कर लो 
लेकिन वह नजदीकी भी न रही 
अब उनके बारें में क्या सोचना 
कहाँ फुरसत है 
तब समय निकाला जाता था 
शब्द उकेरे जाते थे 
भावना छापी जाती थी 
अब तो कहने को फुरसत ही फुरसत 
याद करने की फुरसत नहीं 
समय की रफ्तार तेज हुई है 
मन भी तो भाग रहा है 
टिकना नहीं चाह रहा 
चिठ्ठी में भी विश्वास था 
एक प्यारा सा एहसास था 
वह अब और आज कहाँ 
वह तो वही जानता है 
जो उस दौर से गुजरा हो 
यह भी एक दौर है वह भी एक दौर था 
आहिस्ता ही सही बड़ा प्यारा था 

अब तो बोलो

कब बोलेंगे 
कभी तो बोलो 
मुंह भी तो खोलो 
हमेशा चुप रहना ठीक नहीं 
लोग समझ ही नहीं पाते 
दिल में क्या है कुछ तो बताओ 
कुछ इकरार करो कुछ इजहार करो 
मन में लिए ही लिए ही कब चल दोगे 
कौन जाने कब बुलावा आ जाए 
मन की बात मन में ही रह जाएंगी 
अब क्या डरना 
अब क्या सोचना 
कुछ दिन के मेहमान हैं सब 


Monday, 10 March 2025

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ
मैं वह राधा हूँ जो जिसने कन्हैया को द्वारिकाधीश बनाया
मैं वह सीता हूँ जिसने राम को आदर्श राजा बनाया
मैं वह उर्मिला हूँ जिसने लक्ष्मण को महान व्रती तपस्वी बनाया
मैं वह यशोधरा हूँ जिसने सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बनाया
मैं वह कुंती हूँ जिसने राजा पांडु को पांच पांडवों का पिता बनाया
मैं वह द्रोपदी हूँ  जिसने पांचों पांडवों को एकसूत्र में बांध कर रखा
इनकी महानता के पीछे त्याग मेरा था
मैं टूटी
मैं बंटी
मैं परित्यक्ता बनी
मैं विरहणी बनी
मैं सिसकती रही
मैं ऑसू पीती गई
मैं समझौता करती गई
मैं त्याग की प्रतिमूर्ति बनती रही
मैं स्वयं बिखरती रही
दूसरों को संभालती रही
दर्द सहा मैंने तब ये महान बने
मर्यादा कभी नहीं लांघी तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम बने
प्यार को भी बांटा
पार्थ ने स्वयंवर में वरण किया
पत्नी बनी पांचों भाईयों की
जुआ खेले धर्मराज
दांव पर लगाया मुझे
आदर्श भाई बने लक्ष्मण
विरहणी बनी मैं
शांति का संदेश दिया बुद्ध ने
अशांत रही मैं
मथुरानरेश बने कृष्ण
प्रेम में पागल बन भटकती रही मैं
मेरा अस्तित्व 
मेरी भावना तार तार होती रही
मैं जोड़ती रही
संवारती रही
वह इसलिए कि मैं नारी थी
इनकी शक्ति थी
त्याग करना सबके बस की बात नहीं
वह तो स्त्री ही कर सकती है
धरती है 
धीरज है
सबकी धुरी है
वह डगमगाई तो प्रलय निश्चित
वह नारी है

मैं रानी नहीं न महारानी

मैं रानी नहीं न महारानी 
मैं तो एक सामान्य सी नारी हूँ 
जिसके सीने में एक मासूम दिल धड़कता है
वह बहुत कोमल है जो जरा सी चोट से टूट जाता है
मैं तलवार नहीं उठा सकती न युद्ध में भाग ले सकती हूँ 
मैं तो अपने अंदर को द्वंद्व से हर रोज लड़ती हूँ 
मुझे राजनीति से कुछ लेना - देना नहीं 
मैं तो अपने आप को उससे दूर रखना चाहती हूं
मुझे नहीं चाहिए सारा संसार 
मुझे तो चाहिए बस एक प्यारा सा परिवार 
मुझे दुनिया से क्या 
मेरी दुनिया तो मेरा घर है 
मुझे नाम और प्रसिद्धी की गरज नहीं 
मैं तो किसी की बेटी ,बहन ,पत्नी और माॅ बनकर ही खुश हूँ 
मेरे बच्चें हैं और बच्चों के बच्चें 
जिनकी होठों की हंसी मुझे सबसे प्यारी है 
मुझे स्वर्ग का सुख नहीं भाता 
मैं तो अपने जीवन साथी के साथ खुश रहना चाहती हूँ 
मुझे रिश्तें बनाने में कोई इंटरेस्ट नहीं
जो ऊपर वाले ने बनाकर भेजा है 
वही कायम रहे
मुझे भीड़ का साथ नहीं चाहिए 
अपनों का साथ ही काफी है 
मुझे तड़क-भड़क और दिखावा पसंद नहीं 
मैं तो सीधा - सादा रहना जानती हूँ 
मुझे किसी से कोई प्रतियोगिता और तुलना नहीं
न किसी से ईर्ष्या और जलन 
जो पास है उसमें ही संतुष्ट हूँ 
मुझे भ्रमण का कोई शौक नहीं
अपने परिजनों के बीच भ्रमण हो बस 
मुझे कोई बड़ा विस्तार नहीं चाहिए 
बस अपने हद में रहूं
प्रेम से दो बोल बोलूं
पेट भर भोजन रहने को छत 
अपनों का आसपास 
जब यह हो सब पास 
नहीं है तब कोई और आस 
मैं रानी नहीं न महारानी 
मैं तो एक सामान्य सी नारी हूँ 

Saturday, 8 March 2025

कमजोर नहीं है नारी

उसे न कमजोर समझो न दबाकर  रखो 
उसकी ताकत को पहचानो 
उसकी अहमियत को मिटने न दो 
उसके व्यक्तित्व को निखारों 
उसे जबरन मत दबाओ 
अपनी ताकत की आजमाइश उस पर न करो 
उसे प्यार दो 
उसे सम्मान दो 
उसकी क्षमता को पहचानो 
उसे उड़ान भरने दो 
वह तो कोमलता से ओतप्रोत हैं 
उसके ह्दय में प्यार का सागर लहराता है 
वह ममता से परिपूर्ण है 
वह तुम्हारी दुनिया बदल देंगी 
बड़ी ताकत और धैर्य है उसके पास 
उसके ऑसू पर मत जाना 
वह भावुक जरूर है कमजोर नहीं 
वह सब कुछ लुटा देंगी तुम पर
वह अपने को भी मिटा देगी 
उसके बिना तो सृष्टि अधूरी 
संसार का सृजन अधूरा 
परिवार की बागडोर उसके हाथ 
उसके बिना तो हमारे ईश्वर भी अधूरे 
शिव की शक्ति और कृष्ण की राधा है वह 
रामायण की सीता और महाभारत की द्रौपदी है वह
लक्ष्मीबाई और अहिल्याबाई होल्कर है वह
सावित्रीबाई फुले और मदर टेरेसा है वह
इंदिरा गांधी और सुषमा स्वराज है वह
मैरी काॅम और लता मंगेशकर है वह
कला - संगीत और अभिनय की महारथी है वह
कमला हैरिस भी है बेनजीर भुट्टो भी है 
क्या नहीं है वह
असीमित क्षमता से भरी 
उसे मत दबाओ 
दासी मत बनाओ 
उसे सफलता का परचम फहराने दो 
फलने - फूलने और उड़ान भरने दो 
उसे गर्भ में मत मारो 
संसार में आने दो 
तहे दिल से स्वागत हो 
आधी आबादी की ताकत पहचानो 
तुम एक टुकड़ा दोगे 
वह पूरा आसमान देंगी 
हाॅ यह जरूर करो 
उसे न कमजोर समझो न दबाकर रखो 
अबला नहीं सबला है वह 

नारी का अधिकार

नारी से नर
इसी से हैं संसार 
नारी ही सृष्टि की संपादिका
पूरा भार लेकर चलने वाली
वह पृथ्वी है
वह माता है
वह संसार की संचालिका है 
परिवार की धुरी है
वह बेटी है
वह बहन है
वह पत्नी है
वह माँ है
फिर भी वह परदे के पीछे है
उसका असतित्व?
उसका स्वाभिमान ??
उसकी महत्ता ?
शायद समझ नहीं पाया समाज
तभी तो गर्भ में ही हत्या 
इतना बडा पाप
एक जीव को 
एक सृष्टि की संचालिका को
अगर ऐसा व्यवहार होता रहा
तब संसार की
तब समाज की
सारी व्यवस्था ही गडबडा जाएंगी 
 वह बहुत घातक है
सम्मान कीजिए
हर उस औरत का
जो आपके साथ जुडी है
इसकी वह अधिकारी है

Friday, 7 March 2025

एक अकेला

वह इस दुनिया से बिदा ले चुका था 
चिता पर आग लग चुकी थी 
पहले नहलाया फिर फूलों से सजाया 
चार कंधों पर राम - राम करते यात्रा निकल पड़ी 
पीछे कुछ लोग और
बस थोड़ी देर और 
सब एक-एक कर जाने लगेंगे 
आया था अकेला 
गया भी अकेला 
जिनके लिए किया 
वह भी कुछ न कर सके 
अब तीसरी , दशमा,  और तेरही करेंगे 
लोग आएंगे और खाएंगे 
कुछ चर्चा होगी 
कुछ ऑसू बहाएंगे 
कुछ सहानुभूति दिखाएंगे 
कोई बखान तो कोई बुराई 
न जीते जी छोड़ा
न मरने के बाद 
भोज की भी चर्चा 
दान की भी चर्चा 
उसके बाद सब भूल जाएंगे 
लोग- लोग करते जीवन बीता 
लोग कहाँ याद रखते हैं 
जिंदा के पीछे पड़े रहते हैं 
पता नहीं क्या मजा आता है 
ये लोग कहाँ से आते हैं 
जीवन को झंड बनाते हैं 
झंड है फिर भी इसी झुंड में रहना है 
कहने को तो अकेले 
होते बहुतेरे 

Monday, 3 March 2025

सपनों का घर

सपना था एक अदद घर बनवाने का
अपने घर में रहने का 
ऊब गये थे भटकते - भटकते 
कभी यहाँ कभी वहाँ 
कुछ रास न आता 
बड़ी अनिश्चिता थी 
करते क्या ??
मजबूरी भी थी 
पैसे भी तो चाहिए 
लग गए जोड़ने - घटाने 
हिसाब बैठाने 
बरसों लग गए 
आखिर वह समय भी आया 
एक अपना घर भी हुआ 
सपना तो पूर्ण हुआ 
अपना कोई न था उसमें 
सबके अलग-अलग घोंसले 
वह मजा अब नहीं 
जो लगता है अपने घर में नहीं था 
अब तो लगता है 
क्या अपना क्या पराया 
बिना अपनों के उन सपनों का क्या 
वह घर क्या जिसमें रहने वाला कोई न हो 
सपना भी अपनों बिना फीका 

Sunday, 2 March 2025

अब दर्द क्यों ??

मैं सहता रहा 
सब कुछ बर्दाश्त करता रहा 
कभी असहमति नहीं दिखाई 
सहज रुप से सब होता रहा
ऐसा कब तक चलता 
सबकी एक सीमा होती है 
सहने की भी तो होती है
भीतर से टूट रहा था
बिखर रहा था 
अपने को ठगा महसूस कर रहा था 
हाॅ कोई कदम नहीं उठा रहा था 
विरोध नहीं कर पा रहा था 
वह समय भी आ गया 
कभी न कभी आना ही था 
कितना टलता और कितना टालता 
आखिर टूट गया सब 
टूटना अखर रहा है 
ऑखों में चुभ रहा है 
एकाधिकार जो खत्म हो गया 
टूटेगे तो चुभेंगे भी 
अब दर्द क्यों ???

Saturday, 1 March 2025

माॅ गंगा

अब तो सब भीड़ खत्म हो गई 
माॅ गंगा ने सबको स्वीकारा
सबके पापों को अपने में समाहित किया 
अपनी संतान में कोई भेदभाव नहीं किया
जो भी उनके पास आया उसे स्नेह जल से गोद में लिया
दुलराया,  प्यार दिया , अपने ऑचल में लिया 
यह कब तक करेंगी वह 
पाप इंसान करें धोये वह 
कुछ कर्तव्य तो इंसानों का भी बनता है 
माता तो स्नेह से सींच रही है 
पहले भी अब भी हमेशा से 
किसी की मनौती तो किसी की सुहाग की प्राथना 
केवल वह भगीरथ की नहीं 
सबको तार रही है 
माता अपनी संतान का भला चाहती है हमेशा 
तब संतान भी अपना कर्तव्य पालन करें