Thursday, 4 December 2025

पल को जीओ

मैं बैठी थी गुमसुम 
अतीत की यादों में खोई 
चिंतन - मनन करती 
तभी छोटा सा नन्हा सा आया 
अपनी डगमग चलती चालों से 
हंसता हुआ चला आ रहा था 
पैर उलझे गिर पड़ा 
जोर से रोना शुरू किया 
चुप कराया गोद में ले 
फिर मचला और उतरा 
गोद में बैठ रहना गंवारा नहीं 
ठुमक - ठुमक फिर चला 
हंसता - खिलखिलाता 
मानो कह रहा हो 
गिरा तो क्या 
उठने से क्यों डरना 
चलना क्यों छोड़ना 
छोड़ना हो तो अतीत को छोड़ो 
हंसते मुस्कराते आगे बढ़ो 
बैठना क्यों 
डर से चिंता से 
रुकावटे आती रहेगी 
चोट लगती रहेगी 
हम तब भी चलेगे 
न चला तो जिंदगी चल देंगी 
हम पीछे रह जाएंगे 
लोग धकियाते आगे निकल जाएंगे 
तो उठो 
तो चलो 
तो हंसो 
तो आगे बढ़ो 
तो अतीत को भूलो 
पल को जीओ 

औरत और समाज

दूसरी औरत 
यह तमगा आसान नहीं है 
दुनिया की नजरों में घर उजाड़ने वाली 
पुरुष को फंसाने वाली 
वह कितनी भी काबिल क्यों न हो 
सम्मान की अधिकारी नहीं हो सकती 
यह समाज है 
कुछ भी हो 
दोषी तो औरत ही होती है 
बलात्कार हुआ हो 
परित्यक्ता हो 
अविवाहित हो 
विधवा हो 
अंतरधर्मीय- अंतर्जातीय विवाह हो 
बस एक पक्ष की गलती 
कभी फंसा लिया 
कभी मनहूस कदम कि आते ही खा गई 
कभी कपड़े छोटे पहने 
कभी अकेली बाहर क्यों निकली 
कभी झगड़ालू इसलिए ससुराल में रह न सकी 
कभी बाहर चक्कर होगा 
ऐसे न जाने कितने 
पुरुष बेटा , पति , ससुर, जेठ 
और तो और 
तोहमत लगाने में महिलाएं भी कम नहीं 
गॉसिप का चर्चा भी यही 
फलां की बेटी 
फलां की तमाम - ढिकान 
सब स्वर्ग से उतरे हुए लोग 
दुध से धुला हुआ दुधिया चरित्र 
तभी तो किसी का भी ये चरित्र हनन कर सकते हैं 
जीना मुश्किल कर देते हैं 
मनगढ़ंत कहानियां बना डालते हैं 
वो भी जो आप अपने बारे में नहीं जानते 
अकेली औरत को तो किसी से बात करने में भी डर
समाज बदल रहा है ??
बदतर हो रहा है 
मौमबत्ती लेकर प्रतीक्षारत रहते हैं 
कब मातम मनाने जाएं  
कब कुटिल चर्चा को बल मिले 
धिक्कार है समाज को
वह भी तब जब 
सबके घरों में बहन - बेटियां है 
जब तक ऊंट पहाड़ के नीचे नहीं आता तब तक
खुदा न खास्ता अगला शिकार आप हो 
तब पीड़ा का पता चलेगा 
इंसान हो तो इंसान बनो 
ऊपर वाले से डरो 
इतना मजा मत लो कि ईश्वर सजा देने पर ऊतारू हो जाएं
आप अपनी जिंदगी जीओ 
दूसरे में दखलअंदाजी क्यों 
परमात्मा हैं 
समाज के  हर व्यक्ति को सोचना पड़ेगा 
नहीं तो दिशा और दशा दोनों बदलेगी 
दोषी भी आप ही होंगे 

Tuesday, 2 December 2025

बेटी बचाओ

बेटी बचा ली
आने दिया इस संसार में
उसे प्यार दिया
अपनापन दिया
बेटे के बराबर दर्जा दिया
कोई भेदभाव नहीं किया

बेटी पढा ली
उसको पंख फैलाना है
ऊंची उड़ान भरनी है
सपनों को साकार करना है
आत्मनिर्भर बनाना है

अब वह सक्षम है
अपने पैरों पर खडी है
अपने फैसले स्वयं ले रही है

फिर भी चिंता है
क्योंकि वह बेटी है
वह असुरक्षित है
घर से लेकर सडक तक
कहीं भी सुरक्षित नहीं है

सरकार का तो नारा है
बेटी बचाओ , बेटी पढाओ
पर इन राक्षसों से हैवानो से
कौन बचाएगा
इससे तो अच्छा होता
उसे इस बर्बर संसार में आने ही नहीं दिया जाता
जब जलना है
मरना है
बलात्कार होना है